शिक्षा बच्चे को श्रेष्ठ नागरिक बनाने वाली होनी चाहिए : कुसुमाकर

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भागीरथ पब्लिक स्कूल संस्था के संस्थापक वयोवृद्ध ज्ञानवृद्ध श्री कुसुमाकर सुकुल ने उगता भारत के साथ बातचीत में कहा कि शिक्षा संस्कार किसी भी राष्ट्र को सशक्त और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनाने का सबसे बड़ा साधन है। उन्होंने कहा कि भारत की आदर्श शिक्षा प्रणाली जिसमें गुरु शिष्य के पारस्परिक संबंध श्रद्धा के आधार पर टिके होते थे और गुरु अपने बच्चों का निर्माण पिता के भाव से करता था संसार की सबसे श्रेष्ठ शिक्षा प्रणाली थी पूर्णविराम जिसमें गुरु अपने शिष्य को श्रेष्ठ से श्रेष्ठ बनाने का प्रयास करता था। उसका यह संकल्प अपने शिष्य को द्विज बनाने और आर्यत्व अर्थात श्रेष्ठत्व की शिक्षा देने में पूर्ण होता था।


उन्होंने कहा कि प्राचीन काल में भारत की शिक्षा प्रणाली मानव निर्माण से राष्ट्र निर्माण और राष्ट्र निर्माण से विश्व निर्माण के संकल्प के साथ समन्वित थी। उसमें किसी भी प्रकार के स्वार्थों को प्राथमिकता नहीं दी जाती थी। उस प्रकार की शिक्षा प्रणाली से घरों का परिवेश तो शांतिपूर्ण रहता ही था समाज का, राष्ट्र का और विश्व का परिवेश भी शांतिपूर्ण और स्वार्थ शून्य होता था। आज हमें उन्हीं मूल्यों को स्थापित करने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि मनु हो या और हमारे धर्माचार्य ऋषि महर्षि रहे हों उन सब ने मानव निर्माण पर ध्यान दिया है। भारत प्राचीन काल से ही मानव निर्माण से राष्ट्र निर्माण की ओर बढ़ने वाला देश रहा है। हमें आज इसी प्रकार की योजना पर काम करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि केवल भारत ही एक ऐसा देश है जिसका धर्म ग्रंथ वेद मनुष्य बनने की शिक्षा देता है। यदि हम बालकों को मनुष्य बना दें तो वे श्रेष्ठ नागरिक अपने आप बन जाते हैं। मनुष्य वही है जो विचार पूर्वक धर्मानुसार कार्य करने का अभ्यास होता है। जो व्यक्ति इस प्रकार के गुणों को स्वीकार नहीं करता उसे किसी भी दृष्टिकोण से एक ही अच्छा नागरिक नहीं खा जा सकता।
वरिष्ठ समाजसेवी श्री सर्वेश मित्तल ने उगता भारत के साथ बातचीत में कहा कि सद्विचार मंच, वसुधैव कुटुंबकम और संभावना जैसे संगठनों की आज नितांत आवश्यकता है। इन संगठनों / संस्थाओं के माध्यम से हम भारत की वैदिक संस्कृति का उद्धार कर सकते हैं। सबके सामूहिक प्रयास और संकल्प से ही भारत विश्व गुरु बन सकता है। उन्होंने कहा कि बीमारी की जड़ सांप्रदायिक शिक्षा में है और उन मूल्यों को भारत में थोप देने में है जिनका भारतीयता से दूर दूर का संबंध नहीं है। भारत की परिवार जैसी संस्थाओं को विदेशी हमलावरों और उनके मानस पुत्रों ने बहुत ही घातकता के साथ प्रभावित किया है। आज हमें उन हाथों को पहचान कर शिक्षा में व्यापक सुधार करने की आवश्यकता है।

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