भारत अमेरिका संबंधों का चल रहा है स्वर्ण युग
उमेश चतुर्वेदी
कभी भूखे भारत को पेट भरने की चिंता सताती थी, तब भारत के अपने लोगों की भूख मिटाने के लिए अमेरिका की चिरौरी करनी पड़ती थी। लाल रंग वाले अपने बेस्वाद गेहूं को देने के बदले में अमेरिका आंख दिखाता था, तरह-तरह की शर्तें थोपता था। यह पिछली सदी के पचास और साठ के दशक की बात है। तब तीसरी दुनिया के देश रहे भारत के प्रति अमेरिका का व्यवहार एक तरह से उपेक्षा भरा होता था। लेकिन उसी अमेरिका का रवैया अब बदल गया है। भारत के प्रधानमंत्री के स्वागत में दुनिया का सर्वशक्तिमान माने जाने वाला अमेरिकी राष्ट्रपति का आधिकारिक निवास व्हाइट हाउस तीसरी दुनिया रहे भारत के प्रधानमंत्री के सम्मान में भोज देता है, प्रधानमंत्री की मौजूदगी में अमेरिका की मशहूर गायिका करोड़ों भारतवासियों के रोम-रोम को स्वाभिमान से भर देने वाले ‘जन गण मन’ का ना सिर्फ पाठ करती है, बल्कि गान के समापन के बाद भारत के प्रधानमंत्री का पांव छूने के लिए झुक जाती है।
बदले भारत की ताकत और उसके प्रति दुनिया के बढ़ते सम्मान के प्रतीक हैं ये दृश्य। कभी तिरस्कार करने और कभी धमकी देने वाले अमेरिका का रवैया अब बदला है तो इसकी वजह है भारत की वह मेधा, जिसने अमेरिका में जाकर सॉफ्टवेयर क्रांति का नेतृत्व कर रही है, वजह है भारत के मेहनतकश, जिन्होंने अमेरिकी धरती पर भी अपनी मेहनत से आर्थिक साम्राज्य खड़ा किया है और एक वजह है भारत का मौजूदा नेतृत्व, जो अब दुनिया की ताकतों के सामने आंख में आंख मिलाकर बात करता है। अब वह पिछलग्गू, दब्बू या रिरियाता नेतृत्व नहीं है। उपेक्षित और कमजोर भारत से सशक्त और वैश्विक स्तर पर सम्मानित हो रहे भारत की इस लंबी यात्रा के कारक अतीत का हर पल है, अतीत का नेतृत्व भी है। लेकिन इसकी मजबूत नींव रखी गई थी साल 1998 में, जब तत्कालीन वाजपेयी सरकार ने अमेरिका की परवाह ना करते हुए पोखरण में परमाणु परीक्षण करके दुनिया को संदेश दे दिया था कि भारत अब किसी का मोहताज नहीं रहा। तब तक भारत रिकॉर्ड अन्न उत्पादन के चरम को छू चुका था, नरसिंह राव द्वारा शुरू किए।
गए उदारवाद के चलते कभी सोना गिरवी रखने वाले भारत की आर्थिकी बदलने लगी थी, जिसे वाजपेयी सरकार ने जारी रखा। साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी की सरकार आई तो मोदी ने अपने वैचारिक और राजनीतिक पुरखे वाजपेयी की नीतियों को ना सिर्फ आगे बढ़ाया, बल्कि पारंपरिक उदारवादी छवि छोड़ ताकत के साथ वैश्विक मंचों पर अपनी बात कहनी शुरू की। नतीजा सामने है। बीते 20 जून से 24 जून तक की प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के दौरान उभरे कुछ दृश्यों ने भारत की ताकत को ही प्रदर्शित किया। प्रधानमंत्री जब व्हाइट हाउस के भोज के लिए पहुंचे तो दुनिया के सबसे ताकतवर माना जाने वाला अमेरिकी राष्ट्रपति उनकी अगवानी के लिए खड़ा था। मोदी को खुद जो बाइडन और उनकी पत्नी लेकर अंदर गए। भारत के इस सम्मान के पीछे हिचकोले खा रही दुनिया की आर्थिकी के बीच तनकर खड़ी भारत की विकास दर तो है ही, दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुकी देसी आर्थिकी भी है। दुनिया की चौथी बड़ी भारतीय सेना, अंतरिक्ष में लगातार बढ़ती भारत की भागीदारी, मेक इन इंडिया की बढ़ती धमक, आत्मनिर्भर
भारत से उपजा आत्मविश्वास जैसे तत्व भी हैं।
व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति बाइडन की ओर से मोदी के भव्य स्वागत के साथ ही दोनों नेताओं के बीच 22 जून को हुई ऐतिहासिक शिखर बैठक का होना मामूली बात नहीं है। जिसके बाद मोदी ने अमेरिकी संसद, जिसे कांग्रेस कहा जाता है, को संबोधित किया। इसके बाद आए अमेरिकी विदेश विभाग के प्रधान उप प्रवक्ता वेदांत पटेल के बयान को देखा जाना चाहिए, जिससे भारत-अमेरिकी रिश्तों की जैसे वह व्याख्या कर देता है। पटेल ने कहा कि यह हमारे दौर का कोई सामान्य पल नहीं है। पटेल यही नहीं रूके, उन्होंने आगे कहा, ‘यह भारत के साथ अमेरिका के संबंधों और साझेदारी को गहरा और मजबूत करने के कदमों और प्रयासों के बारे में है। हमारा मानना है कि पिछले हफ्ते की यात्रा बहुत सफल रही। पटेल ने कहा कि दोनों देशों के बीच कई घोषणाएं की गईं, जिनमें सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन को मजबूत करने के कदम भी शामिल हैं। आपने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री और हमारे दोनों देशों को इंजन के साझा-उत्पादन के साथ-साथ विश्वविद्यालय अनुसंधान साझेदारी के बारे में बात करते हुए भी देखा।
यह भारत के लिए कम गर्व की बात नहीं है कि उसका प्रधानमंत्री दुनिया की उन चार महत्वपूर्ण हस्तियों में शामिल हो गया है, जिन्होंने अमेरिकी संसद कांग्रेस के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित किया। इसके पहले सिर्फ ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे विंस्टन चर्चिल, इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला ही अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित कर चुके हैं। प्रधानमंत्री मोदी की इस अमेरिकी यात्रा के दौरान भारत और अमेरिका के बीच कई मसलों पर समझौते हुए। इससे भारत को कई फायदे हुए हैं। सबसे पहले बात करते हैं रक्षा मामलों की। भारत और अमेरिका के बीच हुए समझौते के मुताबिक, अब भारत में ही लड़ाकू जेट इंजनों का संयुक्त उत्पादन होगा। इसके तहत जीई एयरोस्पेस ने भारतीय वायुसेना के हल्के लड़ाकू विमानों तेजस के लिए संयुक्त रूप से लड़ाकू जेट इंजनों का उत्पादन करने के लिए हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड से समझौता किया। इसके तहत भारत में जीई एयरोस्पेस के एफ 414 इंजनों का संभावित संयुक्त उत्पादन होना है। इसकी वजह से जहां अमेरिकी तकनीक तक भारत की पहुंच बढ़ेगी, वहीं भारत में निर्माण होने की वजह से ये इंजन भारत के लिए सस्ते भी पड़ेंगे।
इसके साथ ही भारत ने जनरल एटॉमिक्स के एम क्यू-9 हथियारबंद ड्रोन की खरीद का भी समझौता किया। इससे ना सिर्फ हिन्द महासागर, बल्कि चीन के साथ सीमा पर भी भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और निगरानी क्षमता और मज़बूत होगी। यहां जान लेना चाहिए कि एम क्यू-9 हथियारबंद ड्रोन 500 प्रतिशत अधिक पेलोड ले जा सकता है और पहले के एमक्यू-1 प्रीडेटर की तुलना में यह नौ गुना ज़्यादा ताकतवर है। मोदी के अमेरिकी दौरे के दौरान दोनों देशों के बीच अंतरिक्ष मामले में भी समझौते हुए। इसके तहत भारत और अमेरिका साल 2024 में एक भारतीय अंतरिक्ष यात्री को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर भेजने के लिए सहयोग करने जा रहे हैं। इसके साथ ही भारत आर्टेमिस समझौते में शामिल होने जा रहा है, जिसमें समान विचारधारा वाले देशों को सिविल मामलों के लिए होने वाले अंतरिक्ष खोज में एक साथ जोड़ता है। इस दौरान अमेरिका के अंतरिक्ष शोध केंद्र नासा और भारत का अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के बीच अंतरिक्ष स्टेशन पर शोध के लिए सहमति भी बनी है।
मोदी के दौरे के वक्त भारत और अमेरिका के बीच एक और महत्वपूर्ण समझौता सेमीकंडक्टर निर्माण को लेकर भी हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस दौरान अमेरिकी चिप-निर्माता कंपनी माइक्रोन टेक्नोलॉजी को भारत आमंत्रित किया। मोदी ने प्रक्रिया प्रौद्योगिकी और उन्नत पैकेजिंग क्षमताओं के विकास के लिए भी अमेरिकी कंपनी एप्लाइड मैटेरियल्स को आमंत्रित किया। इसके साथ ही उन्होंने दुनिया की सबसे बड़ी मोटर निर्माण कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक को भारत में विमानन और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में बड़ी भूमिका निभाने के लिए भी बुलावा दिया।
मोदी के अमेरिकी दौरे पर कूटनीतिक दिशा में भी बड़े काम हुए हैं। दोनों देशों के नागरिकों के बीच संबंधों को बढ़ावा देने के लिए अमेरिका बेंगलुरू और अहमदाबाद में दो नए वाणिज्य दूतावास खोलेगा, जबकि भारत सिएटल में एक मिशन स्थापित करेगा। इसके साथ ही अमेरिका अब ऐसा एच-1बी वीजा देने को तैयार है, जिसे देश में रहकर ही रीन्यू किया जा सकेगा। यह एक अहम फ़ैसला है, जो अमेरिका में
रहने वाले हज़ारों भारतीय पेशेवरों को अपने वर्क वीजा के नवीनीकरण के लिए विदेश यात्रा की परेशानी के बिना अपनी नौकरी जारी रखने में मददगार साबित होगा। यहां याद करना चाहिए कि अमेरिका का एच-1बी वीजा गैर-अप्रवासी वीजा है, जो अमेरिकी कंपनियों को विदेशी श्रमिकों को उन विशेष कामों में नौकरी देने की अनुमति देता है, जिनके लिए सैद्धांतिक या तकनीकी विशेषज्ञता की जरूरत होती है। विशेषकर तकनीकी और प्रौद्योगिकी कंपनियां भारत और चीन जैसे देशों से हर साल ऐसे हज़ारों कर्मचारियों को नियुक्त करने के लिए इसी वीजा पर निर्भर हैं। जाहिर है कि इससे भारत के हजारों पेशेवरों को फायदा मिलेगा।
प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद अमेजन के प्रमुख जहां भारत में 15 अरब डालर निवेश को तैयार हुए हैं, वहीं गूगल भारत में डिजिटलाइजेशन के लिए दस अरब डालर निवेश करने को तैयार हुआ है।
प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिका दौरे और उस दौरान उन्हें मिले सम्मान के साथ ही रक्षा, अंतरिक्ष और दूसरे क्षेत्रों में हुए समझौतों से जाहिर है कि दुनिया बदल रही है और इस बदलती दुनिया में भारत की धमक बढ़ रही है। शायद यही वजह है कि विदेश मंत्री एस जयशंकर मोदी के इस दौरे को ना सबसे विशेष, बल्कि अलग बता रहे हैं। यह भूखे देश के प्रधानमंत्री की यात्रा नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर और आत्मविश्वास से लबरेज भारत की यात्रा है। ऐसे में दुनिया की उम्मीदें बढ़नी ही हैं और मोदी के अमेरिका दौरे में ये उम्मीदें दिखी भीं।
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