रहमान की व्यर्थ की भारत यात्रा

rehman-malikपाकिस्तान के गृहमंत्री रहमान मलिक की यात्रा पर आए और चले गये, एक पड़ोसी देश के गृहमंत्री की इस यात्रा का कुल मिलाकर निष्कर्ष इतना ही निकल सकता है। उन्होंने पाकिस्तान के पूर्व सैनिक शासक की उस बैठक की याद दिला दी जिसमें उन्होंने ताज नगरी आगरा में बैठकर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से वार्ता की थी और बिना किसी संयुक्त वक्तव्य के दिये ही वह झटके से स्वदेश लौट गये थे।
पाकिस्तान के गृहमंत्री ने भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पाकिस्तान यात्रा का निमंत्रण यह कहकर दिया कि उन्हें पाकिस्तान और विशेषत: प्रधानमंत्री के गांव चटवाल गांव के लोग देखने के लिए उत्सुक हैं। यह अच्छा ही रहा कि पाकिस्तान के गृहमंत्री की और उनके देश के नेतृत्व की मानसिकता को समझकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने विनम्रता से यह कहकर इस आमंत्रण को अस्वीकार कर दिया कि मेरे देश के लोग मुंबई हमलों के दोषियों के खिलाफ पाकिस्तान को कार्यवाही करते देखने को उत्सुक हैं। प्रधानमंत्री ने एक कूटनीतिक किंतु विनम्र शैली में देश के लोगों की भावना से पड़ोसी देश को अवगत करा दिया। यह अच्छा ही होगा कि प्रधानमंत्री पड़ोसी देश की यात्रा को तब तक ना करें जब तक कि वह 26/11 के दोषियों के विरूद्घ कार्यवाही नही करता है। पाकिस्तान भारत की सम्प्रभुता को समाप्त करने की घृणास्पद सोच के साथ जन्मा था और यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वह आज तक अपनी उसी सोच पर कायम है। पाकिस्तान के गृहमंत्री ने भारत में कदम रखने से पूर्व 26/11 की तुलना बाबरी मस्जिद विध्वंस से की और फिर यहां आकर उससे पलटे, फिर जाते समय यात्रा के दौरान की गयी बातों से पलटे, इस प्रकार अंतद्र्वन्द्व से ग्रस्त रहे रहमान पलटी खाते खाते आए पलटी खाते-2 यहां रहे और पलटी खाते-खाते ही चले गये। यह उनकी नेतृत्व क्षमता की कमजोरी थी या भारत के प्रति विद्वेष भाव का उनके हृदय में उबलते लावा का प्रमाण था? भारत के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे पड़ोसी देश के गृहमंत्री से एक संयुक्त वक्तव्य भी नही दिला पाए, इससे स्पष्ट होता है कि उन्होंने भी अपने पड़ोसी समकक्ष को बुलाने में जल्दी की। बिना होमवर्क के जब कोई कार्य किया जाता है तो ऐसे ही परिणाम आया करते हैं।
अब देश के विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद फरमा रहे हैं कि पाकिस्तान से भी अधिक खतरा भारत को चीन से है। उनकी बात में दम हो सकता है, लेकिन जो नेता केवल वार्ता की मेजों पर फोटो खिंचवाने के लिए अपने समकक्षों को बुला बुलाकर मेजों पर जबरन बैठा रहे हैं और फिर अपनी पीठ अपने आप थपथपायें क्या उनसे देश को खतरा नही है? सलमान साहब से अपेक्षा की जाती है कि वे इस विषय में भी चिंतन करेंगे। इस समय देश को संकटों का सामना करना पड़ रहा है इसमें तो दो राय नही है, लेकिन इन संकटों को हम बचकानी बातों से और बढ़ावा ना दें, यह हमारे लिए बहुत आवश्यक है। कुल मिलाकर सारी तस्वीर में से यदि पीएम द्वारा विनम्रता के साथ कूटनीतिक अंदाज में पाकिस्तानी गृहमंत्री के द्वारा उन्हें दिये गये निमंत्रण को उनके द्वारा अस्वीकार कर देने की बात ही एक सुखदायी अहसास है, बाकी सारा व्यर्थ और अनर्थ ही रहा। पीएम को चाहिए कि आगे से ऐसी बोगस यात्राओं को आयोजित करने से बचने का पूरा प्रबंध किया जाए। राष्ट्र की ऊर्जा और समय को व्यर्थ और अनर्थ की बहस में तो हम संसद में ही व्यय होते देखते रहते हैं, कम से कम ऐसी यात्राओं के आयोजनों में तो इसका ध्यान रख ही लिया जाए। वैसे भी अब प्रत्येक मौके पर राजनीतिक शिष्टाचार का पूरा ध्यान रखने का समय है। पड़ोसी देश की नीयत कभी भी भारत के प्रति अच्छी नही रही, वह चीन के साथ देश को घेरना चाह रहा है। सलमान साहब! अकेले चीन के बारे में न चेताकर यदि देश को पाक-चीन दुरभिसंधि के विषय में चेताते तो और अच्छा होता।

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