ओबीसी को सबल और सशक्त बनने के लिए मोदी सरकार ने अहम फैसले लिए, पर उन्हें वोट बैंक नहीं बना सके

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कमलेश पांडे

गौर करने वाली बात यह कि ओबीसी आरक्षण और एससी-एसटी प्रोमोशन के अलावा मुस्लिम तुष्टीकरण में जब से बीजेपी ने अन्य पार्टियों की लाइन पकड़ी है, तब से उसके राष्ट्रवाद और हिंदुत्व पर सवर्ण समाज व प्रबुद्ध लोगों का उतना भरोसा नहीं रहा, जितना पहले हुआ करता है।

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष हंसराज गंगाराम अहीर ने गत दिनों मोदी सरकार में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की उपलब्धियों की जानकारी दी। जिससे स्पष्ट है कि ओबीसी को सबल और सशक्त बनने के लिए मोदी सरकार ने अहम फैसले लिए। वर्षों से लंबित फैसले घण्टों में लिए, इसके बावजूद भी उन्हें वो स्थायी वोट बैंक न बना सके। अविभाजित वोट बैंक न बना सके। और तो और, उनके वोट भी उम्मीदों के अनुरूप हर जगह पर समान रूप से न मिल सके। जबकि मोदी सरकार में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल में ओबीसी के अलावा दलित-आदिवासियों की भी अच्छी तादात है।

गौर करने वाली बात यह कि ओबीसी आरक्षण और एससी-एसटी प्रोमोशन के अलावा मुस्लिम तुष्टीकरण में जब से बीजेपी ने अन्य पार्टियों की लाइन पकड़ी है, तब से उसके राष्ट्रवाद और हिंदुत्व पर सवर्ण समाज व प्रबुद्ध लोगों का उतना भरोसा नहीं रहा, जितना पहले हुआ करता है। शायद यही वजह है कि कभी 2 दर्जन राज्यों में अपनी या अपने गठबंधन की सरकार बनाने वाली भाजपा अब बमुश्किल से लगभग 1 दर्जन राज्यों तक सिमट चुकी है। ऐसा इसलिए कि जिस प्रतिबद्धता के साथ सवर्ण व प्रबुद्ध। वोटर उससे जुड़े थे, वैसी प्रतिबद्धता बीजेपी से लाभान्वित ओबीसी, एससी-एसटी-पसमांदा मुसलमान नहीं दिखला सके। वहीं, समर्पित सवर्ण और प्रबुद्ध वोटर भी सभी पार्टियों की चाल, चरित्र व चेहरा एक ही होने की बात समझकर जब उदासीन होने लगे, तो भाजपा का राजनीतिक ग्राफ राज्यों से गिरने लगा, कुछेक अपवादों को छोड़कर।

बता दें कि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष हंसराज गंगाराम अहीर द्वारा हाल ही में एक प्रेस वार्ता का आयोजन न्यू महाराष्ट्रा सदन नई दिल्ली में किया गया। जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की उपलब्धियों की जानकारी देते हुए पत्रकारों को बताया कि देश के पिछडे़ वर्ग को न्याय देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी तथा उनकी सरकार ने जो निर्णय लिये तथा न्याय दिया है, उसके पूर्व अन्य पार्टियों के सत्ता पक्ष के लोगों ने इस पर कभी विचार भी नहीं किया था। इसलिए मोदी सरकार के निर्णय सराहनीय व युगान्तकारी रहे हैं।

इस बात में कोई दो राय नहीं कि। देश के पिछड़े वर्गों में योग्यता, कुशलता, कारीगरी और मेहनती लोगों की कोई कमी नहीं है। इस वर्ग की अधिकांश जातियां कृषि व हस्तकला क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं, जिसमें मजदूर भी हैं और कुशल कारीगर भी। वे अपने व्यवसाय से समाज सेवा करते हैं। उनके मेहनत से समाज की जरूरतें पूरी होती हैं। बावजूद इसके यह वर्ग आर्थिक और शिक्षा के क्षेत्र में विकास से वंचित रखा गया था।। जिन्हें प्रधानमंत्री मोदी ने न्याय दिलाया।

एक अनुमान के मुताबिक, भारत में 50 प्रतिशत से अधिक लोग पिछड़ा वर्ग से हैं। भारत रत्न बाबा साहब डा.भीमराव अम्बेडकर के विचार एवं संविधान के अुनसार सामाजिक विषमता दूर करने हेतु प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने एक मूल मंत्र दिया, जो ’’सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास’’ का आह्ववान करता है। सचमुच में उनका यह स्वप्न साकार हो रहा है, जिससे साबित होता है कि मोदी सरकार के नौ साल के दौरान ओबीसी को सबल और सशक्त बनने का मौका मिला है।

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देना

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देना मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धि है। ऐसा करके उसने मंडल के समानांतर कमंडल उठाने के पाप को धो दिया है। वाकई वर्षों से यानी 1993 से राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की स्थापना होने के बाद पहली बार इस राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने वर्ष 2018 में संवैधानिक दर्जा देते हुए इस आयोग की गरिमा बढ़ाई तथा पिछड़ों के हित में प्रभावी तरीके से आयोग को कार्य करने का अवसर दिया।

ऑल इण्डिया कोटा स्कीम के अंतर्गत एमबीबीएस और एमडी के दाखिले में ओबीसी आरक्षण

राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (नीट) द्वारा आयोजित एम.बी.बी.एस.और एम.डी. की पढ़ाई के लिए अखिल भारतीय कोटे के अन्तर्गत राज्यों द्वारा योगदान दी गयी सीटों में एस.सी/एस.टी को ऑल इण्डिया कोटे की सीटों में वर्ष 2007 से 22.5 प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा था, परन्तु ओबीसी का आरक्षण शून्य था। यह मामला माननीय सर्वोच्च न्यायालय में चल रहा था। परन्तु देश के इतिहास में प्रथम बार प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने सबका साथ सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास के फार्मूले को आगे बढ़ाते हुए 26 जुलाई, 2021 को कैबिनट की बैठक में कानूनी अड़चनों पर विराम लगाते हुए निर्णय लिया कि नीट द्वारा आयोजित एम.बी.बी.एस. और एम.डी. की पढ़ाई के लिए अखिल भारतीय कोटे के अन्तर्गत राज्यों द्वारा योगदान दी गयी सीटों में ओबीसी को 27 प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया जायेगा। परिणाम यह हुआ कि प्रत्येक शैक्षणिक सत्र 2021-22 में एम.बी.बी.एस. में 1500 और एम.डी. की पढ़ाई में 2500 ओबीसी विद्यार्थियों को दाखिला मिलना शुरू हुआ।

केन्द्रीय विद्यालय और नवोदय विद्यालय और सैनिक स्कूल के दाखिले में ओबीसी के बच्चों को ओबीसी 27 प्रतिशत आरक्षण

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने केन्द्रीय विद्यालय और नवोदय विद्यालय में ओबीसी के छात्र/छात्राओं को प्रवेश में 27 प्रतिशत आरक्षण देने का काम किया है, जो शैक्षणिक सत्र 2020-21 से लागू हुआ। शैक्षणिक सत्र 2020-21 से 2022-23 तक केन्द्रीय विद्यालय में 129414 (एक लाख उन्तीस हजार चार सौ चौदह) ओबीसी के बच्चों का दाखिला दिया गया। नवोदय विद्यालय में शैक्षणिक सत्र 2021-22 से 2022-23 तक 59243 (उनसठ हजार दो सौ तैतालीस) ओबीसी के बच्चों का दाखिला दिया गया।

सैनिक स्कूल में ओबीसी के बच्चों का दाखिला

शैक्षणिक सत्र 2021-22 के दौरान देश के 33 सैनिक स्कूलों में 32.91 प्रतिशत प्रवेश में आरक्षण देते हुए ओबीसी के बच्चों का दाखिला दिया गया। देश के इतिहास में पहली बार मोदी सरकार ने बेटी और बेटे को समान अवसर प्रदान करने हेतु बेटियों को सैनिक स्कूल में दाखिला देना शुरू किया है।

केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ओबीसी के छात्र/छात्राओं का दाखिला

केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 2014-15 की तुलना में 2020-21 में ओबीसी छात्रों के नामांकन में 32.6 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। ओबीसी छात्राओं के मामले में 2014-15 की तुलना में 2020-21 में 40.4 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है।

राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों में ओबीसी के बच्चों का दाखिला

राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों के मामले में, 2014-15 की तुलना में 2020-21 में ओबीसी छात्रों के नामांकन में 71 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। ओबीसी छात्राओं का नामांकन 2014-15 से दोगुना से अधिक हो गया है।

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग वित्त निगम द्वारा ओबीसी को दिये गये लाभ

वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए 1,94,810 लाभार्थियों के लिए 678.05 करोड़ रुपये की वार्षिक कार्य योजना को मंजूरी प्रदान की गई है। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग वित्त और विकास निगम प्रधानमंत्री दक्षता और कुशल संपन्न हितग्राही (पीएम-दक्ष) योजना के अंतर्गत कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रमों का कार्यान्वयन कर रहा है।

बैंकों द्वारा विभिन्न योजनाओं के तहत ओबीसी को भरपूर लाभ

विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत बैंक ओबीसी को लाभ दे रहा है। उदाहरण के तौर पर प्रधानमन्त्री जन धन योजना के तहत यूनियन बैंक ने वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान 61.70 लाख ओबीसी के लोगों के जन-धन खाते खोले गये और उन खातों में 2208.90 करोड़ रूपये जमा पाये गये। प्रधानमन्त्री मुद्रा ऋण योजना के तहत यूनियन बैंक ने वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान 619 करोड़ रूपये ओबीसी को दिये गये। प्रधानमन्त्री जन धन योजना के तहत पंजाब नेशनल बैंक ने वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान 77.74 लाख ओबीसी के लोगों के जन धन खाते खोले गये और उन खातो में 3578.4 करोड़ रूपये जमा पाये गये। प्रधानमन्त्री मुद्रा ऋण योजना के तहत पंजाब नेशनल बैंक ने वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान 1073 करोड़ रूपये ओबीसी को दिये गये। फसल ऋण और किसान ऋण योजना के तहत पंजाब नेशनल बैंक ने वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान 16000 करोड़ रूपये का प्रावधान ओबीसी के लिए किया गया।

पेट्रोल पम्प और गैस एजेन्सी के आबन्टन में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया गया

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने जांच के दौरान पाया है कि मोदी सरकार के दौरान बड़े पैमाने पर ओबीसी को पेट्रोल पम्प और गैस एजेन्सी के आबंटन हुए हैं। उदाहरण के तौर पर इण्डियल ऑयल कारपोरेशन द्वारा 31 जनवरी, 2023 तक 1193 गैस एजेन्सी ओबीसी को आबंटित किये गये। वर्ष 2014 में इण्डियल ऑयल कारपोरेशन द्वारा ओबीसी के लिए 3790 पेट्रोल पम्प का विज्ञापन निकाला गया था। मोदी सरकार के दौरान इण्डियल ऑयल कारपोरेशन द्वारा वर्ष 2018 में ओबीसी के लिए 9629 पेट्रोल पम्प का विज्ञापन निकाला गया था।

आईआईटी में ओबीसी श्रेणी के गरीब छात्रों की ट्यूशन फीस माफ

आईआईटी में ओबीसी श्रेणी के उन छा़त्रों की ट्यूशन फीस पूरी माफ होती है जिनकी वार्षिक पारिवारिक आय 1.00 लाख रूपये से कम है। इसके अलावा, उन ओबीसी छात्रों की दो तिहाई ट्यूशन फीस मांफ होती है, जिनकी वार्षिक पारिवारिक आय 1.00 लाख से 5.00 लाख रूपये है।

केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल में 27 प्रतिशत से अधिक मन्त्री

मोदी सरकार ने अपने मंत्रिमंडल में पिछड़ी जाति के 27 मंत्री लगभग 35 प्रतिशत से अधिक शामिल करते हुए पिछड़़े वर्ग को न्याय और सम्मान दिया।

ऐसा नहीं है कि मोदी सरकार ने सिर्फ पिछड़ों के लिए ही कार्य किया हो। उन्होंने दलितों, आदिवासियों और पसमांदा मुसलमानों के लिए भी काम किया। मोदी युग में देश को एक दलित राष्ट्रपति मिला, तो दूसरा आदिवासी राष्ट्रपति। विभिन्न सरकारी योजनाओं का लाभ पसमांदा मुसलमानों ने भी खूब उठाया। सवर्णों के लिए भी 10 प्रतिशत आरक्षण इसी सरकार ने दिए। बावजूद इसके, मोदी वन और मोदी टू सरकार की राजनीतिक चुनौती कम नहीं हुई। एक के बाद एक राज्य से उनकी सरकार उखड़ती चली गई। जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर को छोड़कर।

ऐसा इसलिए कि जो राष्ट्रवाद और हिंदुत्व सबको एक समान नागरिक संहिता बनाकर जोड़ता, उसको तो सिर्फ लॉलीपॉप मिले, लेकिन कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों की आरक्षण और प्रोमोशन वाली जातीय बीमारी से जब भाजपा भी संक्रमित हो गई और मोदी व भागवत के मुस्लिम तुष्टीकरण सरीखे सुर्खियों वाले बयानों से और कतिपय हिन्दू कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न पर भाजपा-संघ के नेताओं की चुप्पी या उनकी प्रशासनिक विवशत से जब “प्रतिबद्ध हिन्दू कार्यकर्ता” न्यूट्रल गियर पर चलने लगे, तो पार्टी विद डिफरेंस के नारे देने वाली भाजपा खुद कमजोर होने लगी। पहले राजस्थान और छत्तीसगढ़, और अब हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक से जो सख्त सियासी संदेश आये हैं, उसके दृष्टिगत भाजपा यदि नहीं चेती तो 2024 में उसका राजनैतिक संघर्ष और बढ़ेगा, कम नहीं होगा।

भाजपा यदि पार्टी विद डिफरेंस है तो उसे सबसे पहले भारतीय संविधान के उन शरारतपूर्ण प्रावधानों को हटाने के लिए सच्चे मन से प्रयत्न करना चाहिए, जो ब्रिटिश मानसिकता के फुट डालो और शासन करो के सिद्धांतों को बढ़ावा देती आई हैं। आरक्षण और अल्पसंख्यक की अवधारणा तो सिर्फ उदाहरण मात्र है। और भी ऐसी कई बातें हैं, जिनकी जरूरत न्यू इंडिया को नहीं है। वह 10 सालों तक केंद्रीय सत्ता में रहेगी, लेकिन राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के उदात्त जनसरोकारों के प्रति जब वह जनमत कायम नहीं कर सकी, इसे कमजोर करने वाली संवैधानिक बुराइयों की शिनाख्त करके उसमें संशोधन करने की दूरदर्शिता नहीं दिखा सकी, तो फिर उसके सत्ता में होने या न होने से क्या फर्क पड़ता है। इसलिए अब भी 8 महीने का वक्त है, भाजपा नए भारत के सपनों के अनुरूप नया संविधान गढ़े, अन्यथा वह और उसके मुद्दे पुनः इतिहास के कूड़ेदान की शोभा बढ़ाएंगे। क्योंकि राहुल गांधी ने एक बार फिर से धर्मनिरपेक्षता का राग अलापने शुरू कर दिए हैं, जिसके चलते कभी उसे राजनीतिक अछूत पार्टी करार दिया जाता था।

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