ईश्वर के 60 विभिन्न नाम और भ्रान्ति निवारण

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By Dr D K Garg
भाग ३ अंतिम

साभार: सत्यार्थ प्रकाश

ईश्वर निराकार और एक ही है लेकिन ईश्वर को उसके कार्यो के अनुसार अलग अलग नामो से पुकारा जाता है। इसलिए निराकार ईश्वर को शरीरधारी बना देना अनुचित है। ये जो विभिन्न तस्वीर ईश्वर के नाम की दिखाई देती है उनमे ईश्वर की शक्ति और छवि को समझने के लिए दिखाया जाता है लेकिन ये कहने की ये तस्वीर जहि ईश्वर है और उसमे प्राण फूकना पाखंड है ,क्योकि ये तस्वीर ईश्वर नहीं हो सकती जिसमे असंख्य गुणों का भण्डार हो और समुन्द्र ,सूर्य ,पृथ्वी आदि के निर्माण की शक्ति हो ,भूकंप से जो धरती हिला देता है उस ईश्वर की शक्ति को पहचान लेना और उसी की स्तुति करना चाहिए।

४१ – ‘बृहत्’ शब्दपूर्वक (पा रक्षणे) इस धातु से ‘डति’ प्रत्यय, बृहत् के तकार का लोप और सुडागम होने से ‘बृहस्पति’ शब्द सिद्ध होता है। ‘यो बृहतामाकाशादीनां पतिः स्वामी पालयिता स बृहस्पतिः’ जो बड़ों से भी बड़ा और बड़े आकाशादि ब्रह्माण्डों का स्वामी है, इस से उस परमेश्वर का नाम ‘बृहस्पति’ है।
42– (पृथु विस्तारे) इस धातु से ‘पृथिवी’ शब्द सिद्ध होता है।’ ‘यः पर्थति सर्वं जगद्विस्तृणाति तस्मात् स पृथिवी’ जो सब विस्तृत जगत् का विस्तार करने वाला है, इसलिए उस ईश्वर का नाम ‘पृथिवी’ है।

43– (मगि गत्यर्थक) धातु से ‘मंगेरलच्’ इस सूत्र से ‘मंगल’ शब्द सिद्ध होता है। ‘यो मंगति मंगयति वा स मंगलः’ जो आप मंगलस्वरूप और सब जीवों के मंगल का कारण है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘मंगल’ है।
44– (भज सेवायाम्) इस धातु से ‘भग’ इससे मतुप् होने से ‘भगवान्’ शब्द सिद्ध होता है। ‘भगः सकलैश्वर्य्यं सेवनं वा विद्यते यस्य स भगवान्’ जो समग्र ऐश्वर्य से युक्त वा भजने के योग्य है, इसीलिए उस ईश्वर का नाम ‘भगवान्’ है।
45– (बुध अवगमने) इस धातु से ‘बुध’ शब्द सिद्ध होता है। ‘यो बुध्यते बोध्यते वा स बुधः’ जो स्वयं बोधस्वरूप और सब जीवों के बोध का कारण है। इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘बुध’ है। ‘बृहस्पति’ शब्द का अर्थ कह दिया ।

46– (ईशुचिर् पूतीभावे) इस धातु से ‘शुक्र’ शब्द सिद्ध हुआ है। ‘यः शुच्यति शोचयति वा स शुक्रः’ जो अत्यन्त पवित्र और जिसके संग से जीव भी पवित्र हो जाता है, इसलिये ईश्वर का नाम ‘शुक्र’ है।

47– (चर गतिभक्षणयोः) इस धातु से ‘शनैस्’ अव्यय उपपद होने से ‘शनैश्चर’ शब्द सिद्ध हुआ है। ‘यः शनैश्चरति स शनैश्चरः’ जो सब में सहज से प्राप्त धैर्यवान् है, इससे उस परमेश्वर का नाम ‘शनैश्चर’ है।

48– (चर गतिभक्षणयोः) आङ्पूर्वक इस धातु से ‘आचार्य्य’ शब्द सिद्ध होता है। ‘य आचारं ग्राहयति, सर्वा विद्या बोधयति स आचार्य ईश्वरः’ जो सत्य आचार का ग्रहण करानेहारा और सब विद्याओं की प्राप्ति का हेतु होके सब विद्या प्राप्त कराता है, इससे परमेश्वर का नाम ‘आचार्य’ है।

49– (बुध अवगमने) इस धातु से ‘क्त’ प्रत्यय होने से ‘बुद्ध’ शब्द सिद्ध होता है। ‘यो बुद्धवान् सदैव ज्ञाताऽस्ति स बुद्धो जगदीश्वरः’ जो सदा सब को जाननेहारा है इससे ईश्वर का नाम ‘बुद्ध’ है।

50– ‘सर्वाः शक्तयो विद्यन्ते यस्मिन् स सर्वशक्तिमानीश्वरः’ जो अपने कार्य करने में किसी अन्य की सहायता की इच्छा नहीं करता, अपने ही सामर्थ्य से अपने सब काम पूरा करता है, इसलिए उस परमात्मा का नाम ‘सर्वशक्तिमान्’ है।

51– (णीञ् प्रापणे) इस धातु से ‘न्याय’ शब्द सिद्ध होता है। ‘प्रमाणैरर्थपरीक्षणं न्यायः।’ यह वचन न्यायसूत्रें के ऊपर वात्स्यायनमुनिकृत भाष्य का है। ‘पक्षपातराहित्याचरणं न्यायः’ जो प्रत्यक्षादि प्रमाणों की परीक्षा से सत्य-सत्य सिद्ध हो तथा पक्षपातरहित धर्मरूप आचरण है वह न्याय कहाता है। ‘न्यायं कर्तुं शीलमस्य स न्यायकारीश्वरः’ जिस का न्याय अर्थात् पक्षपातरहित धर्म करने ही का स्वभाव है, इससे उस ईश्वर का नाम ‘न्यायकारी’ है।

52– (दय दानगतिरक्षणहिसादानेषु) इस धातु से ‘दया’ शब्द सिद्ध होता है। ‘दयते ददाति जानाति गच्छति रक्षति हिनस्ति यया सा दया, बह्वी दया विद्यते यस्य स दयालुः परमेश्वरः’ जो अभय का दाता, सत्याऽसत्य सर्व विद्याओं का जानने, सब सज्जनों की रक्षा करने और दुष्टों को यथायोग्य दण्ड देनेवाला है, इस से परमात्मा का नाम ‘दयालु’ है।

53 – ‘अन्तर्यन्तुं नियन्तुं शीलं यस्य सोऽयमन्तर्यामी’ जो सब प्राणी और अप्राणिरूप जगत् के भीतर व्यापक होके सब का नियम करता है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘अन्तर्यामी’ है।

54– ‘महत्’ शब्द पूर्वक ‘देव’ शब्द से ‘महादेव’ सिद्ध होता है। ‘यो महतां देवः स महादेवः’ जो महान् देवों का देव अर्थात् विद्वानों का भी विद्वान्, सूर्यादि पदार्थों का प्रकाशक है, इसलिए उस परमात्मा का नाम ‘महादेव’ है।

55 (विष्लृ व्याप्तौ) इस धातु से ‘नु’ प्रत्यय होकर ‘विष्णु’ शब्द सिद्ध हुआ है। ‘वेवेष्टि व्याप्नोति चराऽचरं जगत् स विष्णुः’ चर और अचररूप जगत् में व्यापक होने से परमात्मा का नाम ‘विष्णु’ है।
56– (गण संख्याने) इस धातु से ‘गण’ शब्द सिद्ध होता है, इसके आगे ‘ईश’ वा ‘पति’ शब्द रखने से ‘गणेश’ और ‘गणपति शब्द’ सिद्ध होते हैं। ‘ये प्रकृत्यादयो जडा जीवाश्च गण्यन्ते संख्यायन्ते तेषामीशः स्वामी पतिः पालको वा’ जो प्रकृत्यादि जड़ और सब जीव प्रख्यात पदार्थों का स्वामी वा पालन करनेहारा है, इससे उस ईश्वर का नाम ‘गणेश’ वा ‘गणपति’ है।
57– (डुकृञ् करणे) ‘शम्’ पूर्वक इस धातु से ‘शंकर’ शब्द सिद्ध हुआ है। ‘यः शंकल्याणं सुखं करोति स शंकरः’ जो कल्याण अर्थात् सुख का करनेहारा है, इससे उस ईश्वर का नाम ‘शंकर’ है।
58– ‘महत्’ शब्द पूर्वक ‘देव’ शब्द से ‘महादेव’ सिद्ध होता है। ‘यो महतां देवः स महादेवः’ जो महान् देवों का देव अर्थात् विद्वानों का भी विद्वान्, सूर्यादि पदार्थों का प्रकाशक है, इसलिए उस परमात्मा का नाम ‘महादेव’ है।
59– (प्रीञ् तर्पणे कान्तौ च) इस धातु से ‘प्रिय’ शब्द सिद्ध होता है। ‘यः पृणाति प्रीयते वा स प्रियः’ जो सब धर्मात्माओं, मुमुक्षुओं और शिष्टों को प्रसन्न करता और सब को कामना के योग्य है, इसलिए उस ईश्वर का नाम ‘प्रिय’ है।
60– (भू सत्तायाम्) ‘स्वयं’ पूर्वक इस धातु से ‘स्वयम्भू’ शब्द सिद्ध होता है। ‘यः स्वयं भवति स स्वयम्भूरीश्वरः’ जो आप से आप ही है, किसी से कभी उत्पन्न नहीं हुआ, इस से उस परमात्मा का नाम ‘स्वयम्भू’ है।

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