भारतीय धर्म और धर्मग्रंथों के प्रति दुष्प्रचार* भाग 3
प्रस्तुति Dr DK Garg
वेदों /हिंदू धर्म ग्रंथ और गोमांस | शास्त्रों में गोमांस भक्षण
प्रश्न: क्या वेदों में गोमांस भक्षण की आज्ञा है?
एक दिन मेरी बातचीत दिल्ली के एक सुप्रसिद्ध समाजसेवी से हो रही थी,बात बात में उसने बताया कि वह वेद को धर्मग्रंथ स्वीकार नहीं करता क्योंकि वेद में गौ मांस खाने का प्रावधान है।
सच क्या है?
गोमेध शब्द का अनर्थ करके कुछ धर्म विरोधियों ने ये दुष्प्रचार किया है कि वैदिक काल से ही भारत में गोमांसाहार का प्रचलन था। आइये वेदों का आश्रय लेकर पशुहिंसा और गोमांस भक्षण की सत्यता जानने का प्रयास करते हैं।
मेध अर्थ वध नहीं होता। मेध शब्द बुद्धिपूर्वक किये गए कर्म को व्यक्त करता है। प्रकारांतर से उसका अर्थ मनुष्यों में संगतीकरण का भी है। जैसा कि मेध शब्द के धातु (मूल ) मेधृ -सं -ग -मे के अर्थ से स्पष्ट होता है।
यजुर्वेद में अश्व को नहीं मारने का स्पष्ट उल्लेख है। शतपथ में अश्व शब्द राष्ट्र या साम्राज्य के लिए आया है।
राष्ट्रं वा अश्वमेध: अन्नं हि गौ: अग्निर्वा अश्व: आज्यं मेधा: (शतपथ १३।१।६।३)
राष्ट्र या साम्राज्य के वैभव, कल्याण और समृद्धि के लिए समर्पित यज्ञ ही अश्वमेध यज्ञ है।
गौ शब्द का अर्थ पृथ्वी भी है। पृथ्वी तथा पर्यावरण की शुद्धता के लिए समर्पित यज्ञ गौमेध कहलाता है। “अन्न, इन्द्रियाँ,किरण,पृथ्वी आदि को पवित्र रखना गोमेध” “जब मनुष्य मर जाय, तब उसके शरीर का विधिपूर्वक दाह करना नरमेध कहाता है।”
वेदों में गौ मांस भक्षण का स्पष्ट निषेध
वेदों में पशुओं की हत्या का विरोध तो है ही बल्कि गौ- हत्या पर तो तीव्र आपत्ति करते हुए उसे निषिद्ध माना गया है | यजुर्वेद में गाय को जीवनदायी पोषण दाता मानते हुए गौ हत्या को वर्जित किया गया है।।
घृतं दुहानामदितिं जनायाग्ने मा हिंसी:
यजुर्वेद १३।४९
सदा ही रक्षा के पात्र गाय और बैल को मत मार।
आरे गोहा नृहा वधो वो अस्तु
ऋग्वेद ७ ।५६।१७
ऋग्वेद ने गौहत्या को जघन्य अपराध घोषित करते हुए मनुष्य हत्या के तुल्य मानता है और ऐसा महापाप करने वाले के लिये दण्ड का विधान करता है।
सूयवसाद भगवती हि भूया अथो वयं भगवन्तः स्याम
अद्धि तर्णमघ्न्ये विश्वदानीं पिब शुद्धमुदकमाचरन्ती
ऋग्वेद १।१६४।४०
अघ्न्या गौ जो किसी भी अवस्था में नहीं मारने योग्य हैं, हरी घास और शुद्ध जल के सेवन से स्वस्थ रहें जिससे कि हम उत्तम सद् गुण,ज्ञान और ऐश्वर्य से युक्त हों।
वैदिक कोष निघण्टु में गौ या गाय के पर्यायवाची शब्दों में अघ्न्या, अहि और अदिति का भी समावेश है। निघण्टु के भाष्यकार यास्क इनकी व्याख्या में कहते हैं
अघ्न्या – जिसे कभी न मारना चाहिए
अहि – जिसका कदापि वध नहीं होना चाहिए
अदिति – जिसके खंड नहीं करने चाहिए
इन तीन शब्दों से यह भलीभांति विदित होता है कि गाय को किसी भी प्रकार से पीड़ित नहीं करना चाहिए। प्राय: वेदों में गाय इन्हीं नामों से पुकारी गई है।
अघ्न्येयं सा वर्द्धतां महते सौभगाय
ऋग्वेद १ ।१६४।२७
अघ्न्या गौ- हमारे लिये आरोग्य एवं सौभाग्य लाती हैं |
सुप्रपाणं भवत्वघ्न्याभ्य:
ऋग्वेद ५।८३।८
अघ्न्या गौ के लिए शुद्ध जल अति उत्तमता से उपलब्ध हो।
यः पौरुषेयेण क्रविषा समङ्क्ते यो अश्व्येन पशुना यातुधानः
यो अघ्न्याया भरति क्षीरमग्ने तेषां शीर्षाणि हरसापि वृश्च
ऋग्वेद १०।८७।१६
मनुष्य, अश्व या अन्य पशुओं के मांस से पेट भरने वाले तथा दूध देने वाली अघ्न्या गायों का विनाश करने वालों को कठोरतम दण्ड देना चाहिए।।
विमुच्यध्वमघ्न्या देवयाना अगन्म
यजुर्वेद १२।७३
अघ्न्या गाय और बैल तुम्हें समृद्धि प्रदान करते हैं।
मा गामनागामदितिं वधिष्ट
ऋग्वेद ८।१०१।१५
गाय को मत मारो। गाय निष्पाप और अदिति अखंडनीया है।।
अन्तकाय गोघातं
यजुर्वेद ३०।१८
गौ हत्यारे का संहार किया जाये।।
यदि नो गां हंसि यद्यश्वम् यदि पूरुषं
तं त्वा सीसेन विध्यामो यथा नो सो अवीरहा
अर्थववेद १।१६।४
यदि कोई हमारे गाय,घोड़े और पुरुषों की हत्या करता है, तो उसे सीसे की गोली से मार दो।
वत्सं जातमिवाघ्न्या
अथर्ववेद ३।३०।१
आपस में उसी प्रकार प्रेम करो, जैसे अघ्न्या – कभी न मारने योग्य गाय – अपने बछड़े से करती है।।
धेनुं सदनं रयीणाम्
अथर्ववेद ११।१।४
गाय सभी ऐश्वर्यों का उद्गम है।।
ऋग्वेद के ६ वें मंडल का सम्पूर्ण २८ वां सूक्त गाय की महिमा बखान रहा है —
1.आ गावो अग्मन्नुत भद्रमक्रन्त्सीदन्तु
प्रत्येक जन यह सुनिश्चित करें कि गौएँ यातनाओं से दूर तथा स्वस्थ रहें।
2.भूयोभूयो रयिमिदस्य वर्धयन्नभिन्ने
गाय की देख-भाल करने वाले को ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
3.न ता नशन्ति न दभाति तस्करो नासामामित्रो व्यथिरा दधर्षति
गाय पर शत्रु भी शस्त्र का प्रयोग न करें।
- न ता अर्वा रेनुककाटो अश्नुते न संस्कृत्रमुप यन्ति ता अभि
कोइ भी गाय का वध न करे।
5.गावो भगो गाव इन्द्रो मे अच्छन्
गाय बल और समृद्धि लातीं हैं।
- यूयं गावो मेदयथा
गाय यदि स्वस्थ और प्रसन्न रहेंगी तो पुरुष और स्त्रियाँ भी निरोग और समृद्ध होंगे।
- मा वः स्तेन ईशत माघशंस:
गाय हरी घास और शुद्ध जल क सेवन करें | वे मारी न जाएं और हमारे लिए समृद्धि लायें।
वेदों में मात्र गाय ही नहीं बल्कि प्रत्येक प्राणी के लिए प्रद्रर्शित उच्च भावना को समझने के लिए और कितने प्रमाण दिएं जाएं ?
प्रस्तुत प्रमाणों से सुविज्ञ पाठक स्वयं यह निर्णय कर सकते हैं कि वेद किसी भी प्रकार कि अमानवीयता के सर्वथा ख़िलाफ़ हैं और जिस में गौ – वध तथा गौ- मांस का तो पूर्णत: निषेध है।
अतः स्पष्ट है कि, वेदों में गोमांस का कहीं कोई विधान नहीं है।।