28 मई जयंती पर विशेष : सावरकरवादी चिंतन और भारतीय इतिहास की गंगा
सावरकर जी की जयंती के अवसर पर इस बार प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी देश के नए संसद भवन का उद्घाटन कर रहे हैं।
सावरकर जी का इतिहास चिंतन बड़ा अनुपम है। उन्होंने सोई हुई हिंदू जाति को जगाने के लिए इतिहास की गौरवशाली व्याख्या प्रस्तुत की।
‘सावरकर समग्र’ के खंड 2 के पृष्ठ 435 पर वह लिखते हैं :- ‘जिस कालखंड में बुद्ध धर्म और वैदिक धर्म के बीच कुछ-कुछ धार्मिक और अधिकांश राजनीतिक कारणों से जो लड़ाइयां छिड़ीं, जिसमें अंत में बौद्धों को पराजित होना पड़ा था, इन लड़ाइयों के दौरान उस समय जिस राष्ट्रीय संकट का पहाड़ टूटने वाला था, उसका निवारण कर लिया गया। आगे के कालखंड में हिंदू राष्ट्र की समन्वय प्रक्रिया के तहत इसी भगवान बुद्ध को दसवें अवतार के रूप में समाविष्ट कर लिया गया। इसलिए हिंदू राष्ट्र का इतिहास पढ़ते समय हिंदू संगठकों को ऐसी ही समन्वय बुद्धि से इतिहास को पढ़ना चाहिए। ….आज की परिस्थितियों में जितना निंदनीय है अथवा जो कुछ देश के लिए घातक है, बस उतना ही आज त्याज्य है। जो कुछ भी आज देश के लिए हितकारी है, वह सब आचरण करने योग्य है। इतिहास की पिछली घटनाओं का उल्लेख करते समय भी इस बात की सावधानी बरती जानी चाहिए कि हम आपसी कलह की चिंगारी को फिर से नाहक ही हवा न दे पाएं। इससे यथासंभव बचना चाहिए। जिन घटनाओं के वर्णन मात्र से हमारे आज के हिंदू संगठन और मजबूत होते हैं, हिंदुओं में आपसी प्रेम सहयोग एक राष्ट्रीयता की भावना में वृद्धि होती हो, ऐसी ही हम सबके गौरव की बातों का उल्लेख आज के लेखन में किया जाए। जो राष्ट्रीय राम कहानी आज की दृष्टि से लाभदायक हो सकती है, उनका उल्लेख भी आज के लेखन में किया जाए।’
सावरकर जी के इस कथन का अभिप्राय यह नहीं कि हम अपने इतिहास में आए झूठे विवरणों को भी इसलिए स्वीकार करलें कि इससे सामाजिक समरसता को स्थापित करने में सहायता मिलेगी। उनके इस कथन का अभिप्राय स्पष्ट है कि वे उस गौरवशाली इतिहास परंपरा को अक्षुण्ण रखने के समर्थक हैं जिससे हिंदू राष्ट्रवाद की अवधारणा को बलवती करने में सहायता मिलती हो।
यहां पर हम इतिहास लेखन की उस विकृत परंपरा की ओर संकेत करना चाहेंगे जिसमें हमारे वैदिक धर्मरक्षक महान शासक पुष्यमित्र शुंग को बौद्ध धर्म विरोधी सिद्ध कर उसे राजा का हत्यारा बताकर अपमानित करने का षड्यंत्र रचा गया।
पुष्यमित्र शुंग पर आरोप लगाया गया कि उसने राजा ब्रहद्रथ की हत्या करने का पाप किया था।
यहां पर हमें पुष्यमित्र शुंग के बारे में सत्य को समझने की आवश्यकता है। यह सत्य है कि महात्मा बुद्ध वैदिक धर्म के उद्धारक थे। वह वेद व्यवस्था के समर्थक थे परंतु उनके अनुयायियों ने कालांतर में एक अलग संप्रदाय का संस्थापक सिद्ध कर उन्हें वेद विरोधी बनाने का भी राष्ट्रघाती प्रयास किया। ब्रह्द्रथ अशोक के वंशज के रूप में उन दिनों मगध पर शासन कर रहा था। अशोक पर अपने शासनकाल के दौरान बौद्ध धर्म का रंग इस कदर चढ़ गया था कि उसने 84 हजार मठों का निर्माण करा दिया था। कलिंग युद्ध के पश्चात उसने अपनी सेना को भी बौद्ध धर्म अपनाने और अहिंसावादी बन जाने की शिक्षा देकर उसे कायर बना दिया था। अपने पूरे शासन तंत्र को उसने बौद्ध धर्म के लिए समर्पित कर दिया था। इससे भारत के क्षत्रिय धर्म की बड़ी हानि हुई। वीरता के स्थान पर कायरता की बातें होने लगी।
अशोक की इस प्रकार की कायरतावादी सोच और नीतियों का विरोध करने के लिए उस समय वैदिक धर्मी लोग सक्रिय हो रहे थे। पतन की जिस कहानी का सूत्रपात अशोक कर रहा था उसका प्रतिरोध करने के लिए और देश की मौलिक वैदिक वीर क्षत्रिय परंपरा की स्थापना के लिए भी काम करने वाले लोग सक्रिय हो रहे थे। विदेशी आक्रमणकारी सिकंदर के आक्रमण के 90 वर्ष पश्चात ब्रह्द्रथ के काल में जब पतन की निम्न अवस्था आई तो विदेशी ग्रीक हमलावर मनिंदर अशोक द्वारा निर्मित किए गए मठों में बौद्ध भिक्षुओं के रूप में अपने सैनिकों को भेजने में सफल हो गया था। उसके इस घातक षडयंत्र की भनक हमारे उस समय के शासक ब्रहद्रथ के महान सेनापति पुष्यमित्र शुंग को लग गई थी। इस शासक के शासनकाल तक उस समय का बहुत बड़ा भारत बौद्ध मतावलंबी बन चुका था। अब आप अपनी कल्पना कीजिए कि कायरता वादी सोच की उस रंगत को उतारने के लिए उस समय कितने बड़े स्तर पर योजनाएं बनाई गई होंगी और क्रांति की आवश्यकता अनुभव करते हुए कितने बड़े स्तर पर कार्य किया गया होगा ? सचमुच उस समय पुष्यमित्र शुंग के नेतृत्व में बड़ी क्रांति हुई थी।
पुष्यमित्र शुंग के समक्ष उस समय दो बड़ी चुनौतियां काम कर रही थीं। एक तो राजा बृहद्रथ की कायरता उसकी आंखों में चुभती थी। दूसरे विदेशी हमलावर मनिंदर की गुप्त योजनाओं को समझ कर उसका समूल नाश करना उसके लिए बड़ी चुनौती थी। ग्रीक राजा मनिंदर उस समय बौद्ध धर्म गुरुओं से संपर्क साधे हुआ था और उनसे इस विदेशी राजा ने स्पष्ट कर दिया था कि यदि वह उसे भारत को जीत लेने देंगे तो वह स्वयं बौद्ध मत स्वीकार कर लेगा। राष्ट्रद्रोह की सीमाओं को लांघते हुए उस समय के बौद्ध धर्म गुरुओं ने अपने सारे मठ विदेशी हमलावर राजा मनिंदर को अपनी योजना को सिरे चढ़ाने के लिए उपलब्ध करा दिए।
पुष्यमित्र शुंग को जब इस प्रकार की गतिविधियों की जानकारी हुई तो उसने अपने राजा से इन गतिविधियों की जांच कर देशद्रोही लोगों के विरुद्ध कार्रवाई करने की अनुमति मांगी। परंतु राजा ने उसे अनुमति नहीं दी । तब राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत वह महान सेनापति स्वयं ही इन राष्ट्रद्रोहियों का सामना करने के लिए चल दिया।
अपनी कार्यवाही के दौरान पुष्यमित्र शुंग ने अनेक देशद्रोही बौद्धों को भी गिरफ्तार किया। कितने ही विदेशियों को मौत के घाट उतारा। जब पुष्यमित्र शुंग अपने इस विजय अभियान को पूर्ण करके राजधानी लौटा तो उस समय राजा अपनी सेना का निरीक्षण कर रहा था। उसके द्वारा की गई इस कार्यवाही पर राजा ने अपना क्रोध और विरोध व्यक्त किया। इस बात को लेकर दोनों में वहीं पर कहासुनी हुई । राजा ने अपने सेनापति को उस समय मारने का असफल प्रयास किया। अपनी प्राण रक्षा करते हुए पुष्यमित्र शुंग ने इतना जोरदार प्रहार किया कि उसमें राजा ब्रहद्रथ मारा गया।
निराशावादी और भ्रामक इतिहास लेखन में तथ्यों के साथ खिलवाड़ करते हुए देशद्रोही बन गए राजा को बहुत ही न्याय प्रिय और देशभक्त दिखाने का प्रयास किया गया है। जबकि पुष्यमित्र शुंग जैसे महान सेनापति को राष्ट्रभक्त के स्थान पर राजद्रोही दिखाने का अक्षम्य अपराध किया गया है। इतिहास लेखन के इसी घटिया नमूने को कॉन्ग्रेस ने नेहरू भक्ति या गांधी भक्ति के रूप में देश पर लादने का प्रयास किया। इससे इतिहास के महान देशभक्तों के साथ अन्याय हुआ।
सावरकर इस प्रकार के इतिहास लेखन के विरोधी थे । आज जब हमारी नई संसद का उद्घाटन सावरकर जी की जयंती के अवसर पर हो रहा है तो हमें अब यह अपेक्षा करनी चाहिए कि इसके पश्चात राष्ट्र नायकों का अभिनंदन करने वाला इतिहास शीघ्र ही हमारे स्कूलों के पाठ्यक्रम में लगेगा। वास्तव में, ऐसे इतिहास लेखन को ही सावरकर जी को सच्ची श्रद्धांजलि देना माना जाएगा। आज राष्ट्र को सावरकरवाद की आवश्यकता है।
जिसका अर्थ है स्वाभिमानी ,स्वावलंबी, समर्थ ,सक्षम और विश्व गुरु भारत।
डॉ राकेश कुमार आर्य
(लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं।)