सेकुलरिज्म को खोज मुहम्मद ने की थी
सेकुलरिज्म को खोज मुहम्मद ने की थी
अधिकांश लोग सिर्फ यही जानते हैं कि इंदिरा गांधी ने 1976 में संविधान का 42 वे संशोधन करके देश को सेकुलर बना दिया था और इस शब्द की यह व्याख्या की थी .”equal treatment of all religions by state “इसका आशय सभी धर्मों को सामान मानना है , यह एक नीति है , लेकिन आपको पता होना चाहिए कि सबसे पहले मुहम्मद ने इस कपट नीति खोज की थी , यद्यपि कुरान , हदीस और किसी अरबी ग्रन्थ में सेकुलरिज्म का कोई समानार्थी शब्द नही है , चूँकि मुहम्मद की इच्छा थी कि उसकी संतानें हमेशा पूरी दुनिया पर राज करती रहें , मुहम्मद के समय अरब के लोग लालची , अँधविश्वासी और अय्याश थे , इसलिए मुहम्मद ने उन अरबों को लूट के माल के हिस्से का और औरतों का लालच देकर जिहादी बना लिया। .लेकिन उस समय अरब में बड़ी संख्या में यहूदी और ईसाई भी थे , और मुसलमानों की संख्या कम थी , और उनको जबरदस्ती मुसलमान बनाना आसान नहीं था ,इसलिए मुहम्मद ने एक कपट नीति अपनायी थी , जिस से उन लोगों को धोखे में रख कर जिहाद होता रहे इस निति का नाम है ,
1-मुहम्मदी सेकुलरिज्म
मुहम्मद ने पहले तो यहूदियों और ईसाईयों से कहा कि हमारा धर्म तो मैत्री . भाईचारा और शांति की शिक्षा देता है , और हम सभी धर्मो को एक सामान समझते है , सबका मालिक एक है , फिर मुहम्मद ने एक आयत सुनाई ,
“तुम लोग किताब वालों (यहूदी ,ईसाई ) से झगड़ा मत करो , उन से कहो हम उस पर ईमान रखते हैं जो हम पर नाजिल हुई , और उस पर भी ईमान रखते हैं ,जो तुम पर नाजिल हुई है , हमारा इलाह और तुम्हारा इलाह एकहि है हम उसी के आज्ञाकारी हैं “सूरा अनकबूत 29 :46
मुहममद ने सोचा कि मधुर चिकनी चुपड़ी बातों के आकर झुण्ड के झुण्ड यहूदी ,ईसाई इस्लाम काबुल करने के लिए दौड़ पड़ेंगे ,लेकिन ऐसा नहीं हुआ ,क्योंकि सभी मुहम्मद के दुष्ट स्वभाव को जानते थे , और समझ गए यह मुहम्मदी सेकुलरिज्म है ,जो पाखंड है ,
और जब मुहम्मद के भाईचारे और शांति का भंडा फूट गया तो वह अपने असली जिहादी रूप में आगया , और कह दिया कि
“हे मुहम्मद बता दो कि कोई “इलाह ” नहीं है सिवाय ” अल्लाह ” के “सूरा -मुहम्मद 47 :19
यहूदी और ईसाई तो पहले से ही एक ही ईश्वर की उपासना करते आये थे और मूर्ति पूजा भी नहीं करते थे ,इसलिए मुहमद की इस आयत का उन पर कोई असर नहीं हुआ , और कोई मुस्लमान नहीं बना , इस ने रुष्ट होकर मुहम्मद ने कहा ,
“हे ईमान वालो अल्लाह का आदेश मानो और रसूल का आदेश मानो ”
नोट -मुहम्मद ने सूरा निसा की यह आयत उस समय कही थी ,जब कुरान की 91 सूरा यानि ( chapters ) यानि अध्याय पुरे हो चुके थे , , कुरान में कुल 114 सूरा हैं , और अवतरण (chronological order )के अनुसार यह सूरा निसा 92 वीं है , यानि आधी से अधिक कुरान बन चुकी थी ,
और जब मूर्ख लोग अल्लाह के साथ मुहम्मद को भी मानने लगे तो मुहम्मद ने एक और चाल चली और कहा , सिर्फ अल्लाह और मुहम्मद पर ईमान लाने से काम नहीं चलेगा क्योंकि मुहम्मद के समय भी कुछ लोग खुद को नबी और रसूल घोषित करने लगे और उनके भी अनुयायी बढ़ने लगे थे ,और यह आयत सुना दी
“वह (मुहम्मद अल्लाह के रसूल और नबियों के समापक हैं
“सूरा अहजाब 33 :40
इस आयत के पीछे दो कारन हैं , पहिला -मुहम्मद की इच्छा थी कि उसकी मौत के बाद उसकी संतानें पीढ़ी दर पीढ़ी दुनिया को लूटते इसके उसने करीब 43 औरतें राखी ताकि उसकी औलाद से अरब भर जाये , मुहम्मद को डर था की अगर भविष्य में उस से बड़ा पाखंडी खुद को रसूल घोषित कर देगा तो मुहम्मद के वंश का नाश कर देगा ,
दूसरा कारन यह है कि मुहम्मद किसी न किसी बहाने लोगों को काफिर साबित करके उनकी हत्या करके उनकी संपत्ति और औरतों पर कब्ज़ा करना चाहता था
दुनिया का हरेक मुस्लिम मुहम्मद की इसी नीति का पालन करता है , चूँकि इंदिरा भी मुस्लिम थी इसलिए उसने संविधान में सेकुलर शब्द जोड़ दिया
कभी आपने इस बात पर ध्यान दिया है कि मुसलमान सिर्फ भारत में ही सेकुलरिज्म की वकालत क्यों करते हैं ? और खुद को सबसे बड़ा धर्मनिरपेक्ष साबित करने और दूसरों को फिरकापरस्त साबित करने में क्यों लगे रहते है चाहते हैं , लेकिन आपने कभी इस बात पर गौर किया कि
मुस्लमान उस देशों में सेकुलरिज्म की वकालत क्यों नहीं करते जहाँ इस्लामी शरीयत लागू है ,आप इस बात को याद रखना कि आज जो मुसलमान सेकुलरिज्म की आड़ में जो दादागिरी कर रहे है और इसे संवैधानिक अधिकार बता रहे हैं यदि इनकी संख्या बढ़ आयी तो यही मुस्लिम आपको राम का नाम नहीं लेने देंगे , क्योंकि इनका सर्व धर्म समभाव ,भाई चारा और सेकुलरिज्म एक पाखंड है , , मुहमद ने यही निति अपनाइ थी .
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ब्रजनंदन शर्मा
(लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)