देह, आत्मा, जगत की, कभी एकता न होय

बिखरे मोती-भाग 88

कृपा जीवन बदल देती है, रंक को राजा बना देती है। दिखने में कृपा मामूली लगती है किंतु गुणकारी और प्रभावशाली इतनी होती है कि जिंदगी का कायाकल्प कर देती है। देखने में तो लाइटर की चिंगारी भी बड़ी सूक्ष्म होती है, किंतु जब वह चूल्हे की अग्नि बनकर जलती है तो न जाने कितने प्राणियों को जीवन देती है। ठीक इसी प्रकार कृपा भी महान कल्याणकारी होती है।
जितने प्राणी त्रिलोक में,
राखै सभी का ध्यान।
जैसी जिसकी जरूरतें,
पूरी करै भगवान ।। 889 ।।
व्याख्या :-भगवान का सभी प्राणियों में अपनापन है, प्रेम है, पर किसी भी प्राणी में आसक्ति नही है, किंतु फिर भी वे हाथी से चींटी पर्यन्त संपूर्ण प्राणियों का पालन पोषण करते हैं। कौन प्राणी कहां है और किस प्राणी को कब किस वस्तु आदि की जरूरत पड़ती है, इसको जानते हुए परमात्मा उस वस्तु को आवश्यकतानुसार यथोचित तरीके से उस प्राणी के पास पहुंचा देते हैं। प्राणी पृथ्वी पर हो, समुद्र में हो, आकाश में हो अथवा स्वर्ग में हो, अर्थात त्रिलोक मंर वह कहीं भी हो परमपिता परमात्मा अपने प्राणियों का हर प्रकार से ध्यान रखते हैं। इसलिए परमात्मा सबसे बड़ा रक्षक और पालक कहलाता है।
देह, आत्मा, जगत की,
कभी एकता न होय।
पिंजरे में पंछी फंसा,
अपने नीड़ को रोय ।। 890 ।।
व्याख्या :-ध्यान रहे, शरीर की सजातीयता संसार के साथ है, जबकि आत्मा की सजातीयता परमात्मा के साथ है। इसलिए आत्मा की शरीर और संसार के साथ भावात्मक एकता कभी हो ही नही  सकती है। आत्मा तो परमात्मा से मिलने के लिए इस देह रूपी पिंजरे में ऐसे तडफ़ती है, जैसे बंद पिंजरे में कोई पक्षी अपने घोंसले को रोता है, तडफ़ता है। स्मरण रहे, आत्मा का धाम यह संसार अथवा देह नही है, अपितु आनंद लोक है, भगवान धाम है। वह वहीं जाने के लिए भीतर-भीतर रोता है किंतु उसके रूदन को कोई बिरला व्यक्ति ही सुनता है।
साधारण परिवार में,
जन्मते प्रतिभावान।
गौरव बने इतिहास के,
अनेकों हैं प्रमाण ।। 891 ।।
व्याख्या :-प्राय: संसार में देखा गया है कि असाधारण प्रतिभा के धनी लोग साधारण परिवारों में जन्मते हैं। जैसे नेपोलियन बोना पार्ट, सिकंदर महान, नेल्सन मंडेला, टॉमस एडीसन, टाल्सटाय, गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद, स्व. प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, डा. भीमराव अंबेडकर, नेताजी सुभाष चंद बोस, राजगुरू, सुखदेव भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, महारानी लक्ष्मी बाई, कल्पना चावला, नील आर्म स्ट्रांग बचेन्द्रीपाल, एडमन्ड हिलेरी, विजयसिंह पथिक, लौहपुरूष सरदार बल्लभ भाई पटेल इत्यादि।
मन, बुद्घि में तो भूल है,
आवें नित नये विचार।
जीवन में नही भूलते,
जिसे आत्मा करे स्वीकार ।। 892 ।।
व्याख्या :-मन बुद्घि में होने वाली बात प्राय: भूली जाती है। मन बुद्घि से समय-समय पर तरह-तरह के निर्णय और विचार परिवर्तित होते रहते हैं किंतु जब स्वीकृति आत्मा से होती है तो वह बात जीवनपर्यन्त भूली नही जाती है। स्वीकृति स्वयं आत्मा से होती है। जैसे मैं ब्राह्मण हूं, गुर्जर हूं, मैं विवाहित हूं, अमुक स्त्री मेरी पत्नी है, अमुक व्यक्ति मेरा पति है इत्यादि। ध्यान रहे, स्वीकृति वाली बात में कोई संदेह भी नही होता है और विपरीत भावना भी नही होती है। यदि विपरीत भावना है तो इसका अर्थ है कि आत्मा ने अपनी पूर्ण स्वीकृति प्रदान नही की थी। अर्थात पूरी तरह अपनाया नही था।
क्रमश:

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