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भाग 1
डॉ डी के गर्ग
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प्रश्न : निरंकारी मिशन क्या हिन्दू धर्म का एक हिस्सा है ?
२ निरंकारी मिशन क्या एक परिवार की धरोहर है ?
३ निरंकारी मिशन वास्तव में है क्या ?

निरंकारी मिशन का इतिहास : १९वीं शताब्दी के समय पंजाब पर जब महाराजा रणजीत सिंह का राज था। उसी दौरान सिख धर्म में बहुत सी पौराणिक रूढ़िवादी मान्यताओं का प्रवेश होने लग गया था जो वास्तव में वैदिक धर्म और सिख धर्म दोनों के ही विरोधी थी, ऐसे समय पर विशुद्ध सिखी के प्रचार हेतु ‘निरंकारी‘ नामक एक संस्था सिख सुधार हेतु सोने के कारोबारी ‘बाबा दयाल जी‘ द्वारा 1929 चलाई गयी।
आजादी से पूर्व ‘विशुध्द निरंकारी दरबार रावलपिंडी‘ से एक व्यक्ति को उसकी घोर शराबी लत के कारण निकाल दिया गया वो शराबी-कबाबी गाँव अधवाल, जिला कैबलपुर, पश्चिमी पाकिस्तान निवासी ‘भाई बूटा सिंह‘ था। भाई बूटा सिंह ने अपने ही जैसे एक व्यक्ति जो पेशावर में डबल रोटी और कुलचे तैयार करने का काम करता था, ‘अवतार सिंह‘ को अपने साथ मिलाकर निरंकारी नाम से ही मंडली बना ली परन्तु पेशावर, रावलपिंडी तथा पोठोहार में पूर्व से ही विशुध्द सिखी के प्रचार व प्रसार होने के कारण यहाँ इन दोनों की दाल ना गल सकी।
सन् १९४७ में भारत का बटवारा हो गया। इससे ४ वर्ष पूर्व ही भाई बूटा एक भयानक रोग से ग्रस्त होकर मर गया। अवतार सिंह उस समय सन् १९४७ में मुस्लिमों द्वारा किया जार रहे अत्याचारो के भय से भयभीत होकर दिल्ली आ गया और यहाँ पर ‘रोटी खाइये शक्कर से, दुनियां लूटिये मक्कर से‘ की कहावत के अनुसार पहाड़गंज, दिल्ली में एक मकान किराए पर लेकर ‘विशुध्द निरंकारी‘ की आड़ में ही अपना गुरूडम तथा दंभ-पाखंड फैलाना शुरू कर दिया। उस समय भोले-भाले लोगो को बहका कर निरंकारी की आड़ में चलाया गया ये पाखण्ड वर्तमान में ‘सन्तनिरंकारी मिशन‘ के नाम से जाना जाता हैं। २४ अप्रैल १९८० को बाबा गुरुबचन सिंह जी की हत्या होने के बाद इसकी कमान बाबा हरदेव सिंह जी को गुरु गद्दी सौंपी गयी जिनका मई २०१६ को उनका निधन कनाडा में एक सड़क दुर्घटना में हुआ।
निरंकारी मिशन विश्लेषणः
निरंकार का अर्थ – निरंकार शब्द (पंजाबीः ਨਿਰੰਕਾਰय संस्कृतः निराकारा से) का अर्थ है बिना आकार का। ईश्वर को उसके गुणों के आधार पर अनेको नाम से जाना जाता है जिनमे एक नाम ईश्वर का निराकार भी है। क्योकि ईश्वर का कोई आकार नहीं है। र्नि और आङ्पूर्वक (डुकृञ् करणे) इस धातु से ‘निराकार’ शब्द सिद्ध होता है। निराकारः यानि जिसका आकार कोई भी नहीं और न कभी शरीर-धारण करता है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘निराकार’ है।
निरंकारी मिशन नाम से स्वतः प्रतीत होता है कि इस मिशन की स्थापना का मुख्य उद्देश्य जन मानस को ईश्वर की मूर्ति पूजा के विरूद्ध ज्ञान द्वारा निराकार ईश्वर के विषय में बताना है। परन्तु इसके विपतित निरंकारी मिशन का ये कहना है कि ये मिशन कोई धर्म या धार्मिक संस्थान नही है, बल्कि एक समाज सेवी संस्था है।
निरंकारी मिशन ने कभी यह स्वीकार नहीं किया कि ये हिन्दू धर्म का हिस्सा नही है और ना ही ये किसी नए धर्म की कही है।
इस मिशन की अपनी दुनिया है, जिसमे एक परिवार का मुखिया या उसका वारिस ही सदगुरु होता है जो हजारो शिष्यों की भरी भीड़ को एक साथ १-२ घंटे में ब्रह्मज्ञान का उपदेश देता है फिर ये उपदेश एक पत्रिका में छाप दिए जाते है और शिष्य को ब्रह्मज्ञान प्राप्त हो जाता है और शिष्य इधर उधर वही रट्टा लगाये रहता है।
इनका कहना है की ये सभी धर्मो को मानते है इनकी अपनी कोई स्पष्ट विचारधारा, धर्मग्रंथ नही है। ये मिशन क्या है इसकी स्पष्ट परिभाषा नहीं है।
निरंकारी मिशन में गुरुडम प्रथा : ये निरंकारी अपनी एक अलग दुनिआ बसाने में लगे हुए है ी स्वयं को निरंकारी समाज कहते है। गुरु की दीक्षा लेते है और किसी शाश्त्रार्थ से बचने को कहते है की हमारा कोई धर्म नहीं है। ऐसा है तो निरंकारी मिशन किसलिए बनाया ?अपने नाम के विपरीत इनका आचरण है जिसमे गुरु मुक्ति दिला देगा ,कोई धर्म कर्म की जरुरत नहीं , लाखो की संख्या में गुरु की तुक्केबाजी के प्रवचन सुनो और धन्य हो जाओ ।
एक परिवार की प्राइवेट संपत्ति : इस मिशन में एक योजना के तहत बाबा, फिर बेटा, उसकी पत्नी, बहु सब अपनी बारी-बारी से इस मिशन के धर्म गुरु यानि स्वयंभू सद्गुरु बनते रहे है। मतलब ये कि ये पंथ भी गुरुडम प्रथा का एक हिस्सा है। एक चपरासी कलर्क तक की नौकरी के लिए शिक्षा, योग्यता आवश्यक होती है लेकिन इस मिशन में सद्गुरु होने जाने के लिए एक विशेष परिवार में पैदा होना जरुरी है।
निरंकारी मिशन के अब तक छः गुरु हुए हैं। इनके नाम हैं- संतबाबा बूटा सिंह, अवतार सिंह, बाबा गुरबचन सिंह, बाबा हरदेव सिंह, माता सविंदरहरदेव और माता सुदीक्षा, वर्तमान में बाबा हरदेव सिंह की छोटी बेटी सुदीक्षा इस संगठन की प्रमुख हैं।
इस परिवार के सदस्य विदेशो में रहते है, वही इनके वह बैंक खाते है और मिशन से प्राप्त पैसा उनकी शाही ठाट बाट में प्रयोग होता है।अवतार सिंह के पश्चात् उसके बेटे ‘गुरबचन सिहं‘ ने उसके नकली गुरूडम की कमान संभाल ली और अपनी पत्नी ‘कुलवंत कौर‘ को अपने चेलो से ‘राज माता‘ कहलवाना व पत्रिका आदि में लिखवाना शुरू करवा दिया था।
पूरा परिवार अवतार: इनके शिष्य गुरु के अनुयायी गण थोड़ा भी सोचने-जानने- समझने की कोशिश नहीं करते कि आजकल वर्तमान में मात्र निराकार-निरंकार समाज में ही अवतारसिंह (मृत) भी अवतार, गुरुबचन सिंह (मृत) भी अवतार और वर्तमान में हरदेवसिंह भी अवतार और क्रमशः इनकी गद्दी पर जो जो भविष्य मे भी बैठने वाले हैं, क्रमशः वे सभी अवतार हैं। यह अवतार की परिभाषा जानकारी कहां से आई ? किस ग्रन्थ में ऐसी मान्यता है? इन शिष्य अनुयायियों को क्या इतना भी नहीं सोचना चाहिए?

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