ब्रह्म पारायण यज्ञ का आर्यसमाज से क्या सम्बंध है?

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-प्रियांशु सेठ

आजकल आर्यसमाज में पारायण यज्ञों की चर्चा जोरों पर है। हमारे कुछ आचार्य गणों का सुझाव है कि पारायण यज्ञ वैदिक है। इससे वेदमंत्रों की रक्षा होती है। इसमें प्रमुख रूप से आचार्य शिवदत्त पाण्डेय/शुचिषद् मुनि जिनसे पौराणिकता की बू आती है, को कुछ तथाकथित लोगों ने सिर चढ़ा रक्खा है। दरअसल ऐसे ही लोग आर्यसमाज में आपसी मतभेद पैदा करके अपना रास्ता काट लेते हैं। श्री शिवदत्त जी तो यहां तक लिख दे रहे हैं कि आर्यसमाज के बड़े-बड़े विद्वानों ने पारायण यज्ञ का कहीं पर विरोध व निषेध तक नहीं किया है। इसके अतिरिक्त झूठ की हद पार करके श्री तथाकथित आचार्य जी लिखते हैं- “मेरी जानकारी के अनुसार पहला चतुर्वेद पारायण यज्ञ सन् 1948 के अप्रैल मास में एटा में स्वतंत्रता संग्राम में विजई होने पर विजय यज्ञ के रूप में किया गया था। इसके ब्रह्मा पदवाक्यप्रमाणज्ञ पंडित ब्रह्मदत्त जिज्ञासु थे…।” अस्तु!

मैं पूछना चाहता हूं, यह श्री शिवदत्त पाण्डेय ने आर्यसमाज को कितना पढ़ लिया? रही बात वेदमंत्रों की रक्षा की तो क्या ऋषि-मुनियों या महापुरुषों ने भी पारायण यज्ञ कराकर वेदों की रक्षा की थी? पंडित ब्रह्मदत्त जिज्ञासु जी पारायण यज्ञ के समर्थक थे व इस यज्ञ में ब्रह्मा थे, इस बात का जरा हमें प्रमाण दीजिए। अब हम आर्यसमाज के बड़े-बड़े विद्वानों की पारायण यज्ञ पर राय भी देख लेते हैं-

  1. पंडित ब्रह्मदत्त जिज्ञासु जी के शिष्य वेद-वेदांग निष्णात श्री पं० युद्धिष्ठिर जी मीमांसक- “न यह श्रौत है, न गृह्य, न स्मार्त। जैसे दुर्गा सप्तशती के प्रत्येक श्लोक से या तुलसी रामायण की प्रत्येक चौपाई से यत्र-तत्र हवन होते हैं तद्वत् ही यह (पारायण यज्ञ) भी है।”

  2. हैदराबाद आर्य सत्याग्रह संग्राम के संचालक व विद्वान् संन्यासी श्री स्वामी स्वतंत्रानंद जी महाराज- “वेद पारायण यज्ञ नाम का कोई यज्ञ नहीं है। अपढ़ लोगों ने ऋषि के यज्ञ लिखने की आड़ में यह दुष्कार्य आरंभ कर रखा है। इसका निवृत्त होना आवश्यक है अन्यथा वैदिक धर्म की हानि होगी तथा साधारण जनता में भ्रम उत्पन्न होगा।”

  3. सार्वदेशिक धमार्य सभा के भूतपूर्व प्रधान, वेद-शास्त्र निष्णात व लब्ध प्रतिष्ठित लेखक स्वामी वेदानंद जी तीर्थ- “किसी समय मैं इन यज्ञों को कराता रहा लोक प्रवाह में बह कर। किंतु अब मैं इनके अनुकूल नहीं रहा। अपठित लोगों ने इसका प्रचलन किया और अपठितों के लिए।”

  4. वैदिक कर्मकांड के मर्मज्ञ विद्वान् त्रिदेव तीर्थ श्री स्वामी मुनीश्वरानंद जी सरस्वती- “आर्यसमाज से इस टकापंथीय आडंबर (पारायण यज्ञ) को मिटाने के लिए पर्याप्त शक्ति लगानी पड़ेगी।”

  5. संयुक्त-प्रांतीय आर्य प्रतिनिधि सभा के मंत्री तपस्वी आर्यनेता श्री पं० रामदत्तजी शुक्ल (एम०ए०, एल०एल०बी०)- “पारायण रीति श्रौत यज्ञ परंपरा से भिन्न एक कल्पित पद्धति है। अग्निहोत्र से लेकर अश्वमेध पर्यंत यज्ञ करने का विधान आर्यों के लिए महर्षि दयानंद ने ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका प्रतिज्ञा भाग में किया है। पारायण यज्ञ के लिए आधार प्रमाण प्राप्त नहीं होता।”

उपरोक्त सम्मतियां आर्यजगत् की ख्यातिप्राप्त मासिक पत्रिका “वेद प्रकाश” के 1968 मई अंक से लिए गए हैं। वर्तमान में आर्यसमाज के कुछ तथाकथित लोगों ने यज्ञ को व्यवसाय बना डाला है। आर्यसमाज के लिए एक बात ध्यान रखने योग्य है, वो यह कि तथाकथित नेताओं द्वारा इन नकारात्मक विचारों (पारायण यज्ञ, बहुकुंडीय यज्ञ आदि) का स्वागत करते हुए अपने सिद्धांतों पर बराबर कुल्हाड़ी चलाना आर्यसमाज के अच्छे भविष्य का परिचायक नहीं है।

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