बिखरे मोती : संत प्रवृत्ति के व्यक्तियों के संदर्भ में –

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संतो को संसार में,
भेजता है करतार।
जाओ सृष्टि संवार दो,
करना तुम उपकार॥2225॥

सन्त तो झरने जान ज्ञान के,
जहाँ प्रक्तै सुख दे।
अज्ञान अभाव अन्याय को,
देखत ही हर लें॥2226॥

संसार में कैसे रहो :-

हृदय में सद्‌भाव रख,
अपना हो संसार।
दुर्गणों को त्याग दे,
निज प्रतिबिम्ध बिहार॥2227॥

आनन्द की प्राप्ति कैसे हो :-

आनन्द – धन की खोज में,
व्याकुल हो गए नैन।
नेकी कर हरि नाम ले,
तब ही मिलेगा चैन॥ 2228॥

पाँच तलों के मकान में,
हँस रहे बेचैन।
दीवा जला हरि ओ३म्‌ का,
जो चाहे सुख चैन॥ 2229॥

पूँजी बने माँ बाप की,
और होबै गुणवान।
निभावै जिम्मेदारियाँ,
दुर्लभ ऐसी संतान॥ 2231॥

रसना पै हरि नाम हो,
और कर में माल।
खो जाऊँ तेरे ध्यान में,
जिस दिन आवे काल॥2232॥

बड़ा अचम्भा होता है,
रे देख के दुनियादारी।
जिन्हें सहारा समझा था,
वे बन रहे जिम्मेदारी॥2230॥

यह ‘मैं’ ही उलझा रहा,
‘मैं’ को ढूँढ़ा नाय।
पहले मैं को ढूँढ़ ले,
वह स्वतय: मिल जाय॥2233॥

जुड़ना है जुड़ ईश से ,
माया से मुख मोड़ ।
माया भ्रमित कर रही,
एक दिन जावै छोड़॥2234॥

चल हंसा उस देश को,
जो पीहर कहलाय ।
देश विराने में आ गया,
फिर पीहर को जाय॥2235॥

देवयान मारग तेरा,
मत मंज़िल को भूल।
बगिया में काटे घने,
चुनो फूल ही फूल॥2236॥

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निर्णय तो सही वक्त पर अवसर खो पछताय सूखी फसल वर्षा हुई सारी व्यर्थ ही जाय ॥ 2237

धरती में रस बहुत है,
बीद से बाहर आय।
जिसके जो संस्कार है,
वैसा ही बन जाय ॥2238॥

ब्रहम ऋता बुद्धि बने,
तब हरि जाना जाय ।
भय शोक चिंता मिटे,
मोद ही बढ़ता जाय॥2239॥

ब्रह्म ऋता अर्थात् ऋतम्भरा से भी अधिक पवित्र बुद्धि।

पेड़ पै फल पकने लगे,
लगी पक्षियों की भीड़।
गुणी की खुशबू फैलती,
शोभित होता नीड़॥2240॥

आनन्द को सब भटकते,
जग में मिलता नाम ।
आनन्द तो प्रभु नाम में ,
मिलतान ध्यान लगाय॥2241॥

नाम तेरे में सुकून जो,
माया मैं नहीं मिल पाय।
जो सिमरे हरि नाम को,
सीधा स्वर्ग को जाय॥2242॥
क्रमशः

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