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आनन्द की खोज में…

महलों में आनन्द नहीं,
मिलता किसी कुटीर।
आनन्द की खोज में,
गौतम हुए फकीर ।।2202॥

आनन्द कहाँ मिलता है:-

जग सुविधा ही दे सके,
नहीं देता. आनन्दा।
बैठ प्रभु की गोद में,
मिले अतुलित आनन्द।।2203॥

यदि आनन्द की अभिच्षा है तो :-

खो-जा हरि के नाम में,
पा अतुलित आनन्द।
मत भटके संसार में,
यहाँ फन्द ही फन्द॥2204॥

मृत्यु के समय तुम्हारे साथ क्या जायेगा :-

भक्ति- भलाई कर चलों,
यही चलेंगी साथ।
पहुँचे आनन्द-लोक में,
मिले प्रभु का साथा॥2205॥

जिन्हें मोक्ष की चाह है :-

रमण करो हरि ओ३म् में,
जो चाहे हरि-धाम ।
जिनसे प्रमु प्रसन्न हों,
नित्य करों शुभ काम ।।2206॥

क्या है जीवन की सबसे बड़ी गलती :-

सेवा- सिमरन से तेरी,
झोली खाली जया।
महा-विनाष्टि कर चल,
बाद में फिर पछताय॥2207॥

ओ३म् – नाम की मधुरता अतुलित और अनुयमेग है:-

कितना मीठा ओ३म् है,
उपमा नहीं मिल पाया।
गूँगे ने गुड़ खा लिया,
कैसे इसे बताय ॥2208॥

मनुष्य का त्राण कैसे सम्भव है:-

भूले मत हरि ओ३म् को,
जो चाहे कल्याण।
ओ३म् – नाम हृदय रमे,
तब हो तेरा त्राण॥2209॥

आत्मा को सुकून कब मिलता है : –

खुश होवै कब आत्मा,
क्या कभी किया विचारा।
हरि-भजन में डूबती,
या किया कोई उपकार॥2210॥

आत्मा कब निस्तेज होती है:-

सोचा क्या कभी बैठकें,
रूह क्यों हुई मलीन।
या तो हरि से विमुख था,
या पापों मे लीन॥2211॥

संकल्प कब तक अधूरा है:-

पराक्रम पुरुषार्थ बिन,
अधूरा हो संकल्प।
इन दो की पराकाष्ठा,
करती काया कल्प॥2212॥
क्रमशः

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