श्री दुर्गा सप्तशती पाठ पर आपत्ति तो कुरान अध्ययन पर सहमति क्यों
- दिव्य अग्रवाल
उत्तर प्रदेश सरकार आने वाले नवरात्रि के पवित्र दिनों में मंदिरों के अंदर श्री दुर्गा सप्तशती व् श्री रामायण के पाठ का आयोजन करने जा रही है इस घोषणा के उपरान्त इस पवित्र धार्मिक कार्य पर राजनीति आरम्भ हो चुकी है । बहुत से राजनेताओ व स्वयं घोषित बुद्धिजीवियों को आपत्ति होने लगी है । विडंबना यह है की जब सरकारें पूरे वर्ष कुरान के अध्ययन हेतु मदरसों को अनुदान देती है , मदरसों व मस्जिदों के मौलवियों का वेतन देती हैं तब आपत्ति क्यों नहीं होती । जब सरकारें सनातनी मंदिरो के आयकर से, एक भी रुपया आयकर न देने वाले मदरसों पर धन वर्षा करतीं है तब भी किसी को कोई आपत्ति नहीं होती। आज मंदिरो की स्थिति यह है की पुजारियों को न तो वेतन मिलता है और न ही जीवन व्यापन करने हेतु पूजा पाठ के आयोजन मिलते हैं । सनातनी समाज इतना निरंकुश व् पाश्चात्य संस्कृति के दलदल में फस चूका है की पवित्र नवरात्रो में धार्मिक अनुष्ठान करने के स्थान पर संगीत , नृत्य , आधुनिक पार्टीज आदि के दिखावे में ही पड़ा रहता है । ऐसी स्थिति में यदि उत्तर प्रदेश सरकार सनातन की व्यवस्था को पुनः जाग्रत करने का प्रयास कर रही है तो इसमें गलता क्या है । विचार भारत के सभ्य समाज को करना है की योगी आदित्यनाथ महराज जैसे सन्यासी के उत्तम निर्णयों के साथ चलना है या मजहबी तुष्टिकरण करने वाले विधर्मियो का साथ देना है । अतः जिन लोगों को भी श्री दुर्गा सप्तशती व श्री रामायण के पाठ से आपत्ति है या ऐसा सोचते हैं की सरकारी धन धार्मिक कार्यो पर खर्च नहीं होना चाहिए तो निश्चित ही सबसे पहले उन लोगों को मदरसों व मस्जिदों को दिए जाने वाले सरकारी अनुदान का लिखित विरोध कर सरकारी धन को बचाकर एक जिम्मेदार नागरिक होने का प्रमाण देना चाहिए ।
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