बिखरे मोती : यदि भगवद् धाम की चाह है –

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बिखरे मोती

यदि भगवद् धाम की चाह है –

भक्ति का पाथेय ले,
चल मंजिल बड़ी दूर।
यही सफर में काम दे,
मत चाटे जग धूर॥2193॥

प्रभु कृपा का पात्र बनना है तो-

पल पल तेरा कीमती,
वृथा मति गवाय।
भक्ति भलाई में लगा,
दाता खुश हो जाय॥ 2194॥

श्रेय मार्ग ही प्रभु – मिलन की रहा है-

माया भोग भ्रमित करें,
मत होना गुमराह।
श्रेय- मार्ग ही श्रेष्ठ है,
प्रभु- मिलन की रहा॥2195॥

जब परमात्मा की कृपा बरसती है तो-

अदने को आला करे,
दाता दे बेतोल।
सांस – सांस पर नाम भज,
ओ३म -ओ३म ही बोल॥2196॥

कौन किसकी शाक्ति है:-

मन की शक्ति एकाग्रता,
प्राणों की प्रणायाम।
आत्मा को आनन्द है,
देहो को व्यायाम॥2197॥

मूरख की पहचान :-

मूरख की पहचान है,
सोचै नहीं परिणाम।
जीवन भर रहता दु:खी,
करता उल्टे काम॥2198॥

सौबत का असर-

जैसी संगति में रहो,
वैसा पड़े प्रभाव।
भेड़ों में शावक रहे,
भूले निजी स्वभाव॥2199॥

आनन्द की प्राप्ति कब होती है-

शान्ति संयम संतोष से,
मिलता है आनन्द।
पहले संचित कर इन्हे,
तब मिले परमानन्द॥2200॥

तत्वार्थ:- शान्ति संतुष्टि और सन्तुलन से ही आनन्द की प्राप्ति होती है। इसलिए आनन्द चाहने वालों को पहले इन्हें अर्जित करना चाहिए ।

आनंद का स्रोत तेरे घट में है, बाहर नही:-

पहले राग घाट में बजै,
फिर बाजे में आय।
घट माहि आनन्द है,
मत कहीं ढूंढन जाय॥2201॥
क्रमशः

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