पूर्व महाराजा रणजीत सिंह जूदेव समथरगढ़ नहीं रहे : गरिमा पूर्ण व्यक्तित्व के धनी थे महाराजा : देवेंद्र सिंह आर्य

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यह बहुत ही दुखद है कि समथर गढ़ के महाराजा रणजीत सिंह जूदेव अब इस संसार में नहीं रहे हैं।।महाराजा रणजीत सिंह जूदेव भारतवर्ष के उन राजा महाराजाओं में से रहे हैं जो देश की आजादी के समय 1947 में राज कर रहे थे । आज इतिहास की इस एक महत्वपूर्ण कड़ी का अंत हो गया । मुझे महाराजा रणजीत सिंह खटाना जी के साथ कई कार्यक्रमों में शामिल होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। उनको सुनने का अवसर भी मिला। कांग्रेस के मजबूत स्तंभ थे । बुंदेलखंड में उनका बहुत सम्मान था।समथर गढ़ विधानसभा क्षेत्र से स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात जनप्रतिनिधि भी रहे। तथा उत्तर प्रदेश के गृहमंत्री रहे थे। उनके पार्थिव शरीर को दर्शनार्थ रखा गया है। आज 9 मार्च 2023 को उनका अंतिम संस्कार होगा। मेरे मित्र श्री महाराज सिंह कसाना जी एडवोकेट के साथ सपत्निक उनकी रियासत तथा किले में जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
किले को घूम कर देखा भी।
उस समय हम उनके किलेदार श्री राजेंद्र सिंह पीलवान से भी मिले। जिनके ऊपर किले की सुरक्षा का दायित्व पीढियों से रहा है। विशाल छाती एवं ललाट, सुडौल शरीर, मजबूत कंधे और भुजाएं हमने प्रत्यक्ष देखी।
आज जब इतिहास की एक महत्वपूर्ण कड़ी का अंत हो गया है तो इस अवसर पर हम महाराजा को अपनी विनम्र श्रद्धांजलि देते हुए यह उचित मानते हैं कि उनके वंश के इतिहास के बारे में भी कुछ जाना समझा जाए। सत्रहवीं सताब्दी में बुंदेलखंड छोटे छोटे राज्यों में विभक्त था ,दतिया के भगवान राय के काल में (संवत १६२६-१६५६) समथर राज्य अस्तित्व में आया ,दतिया के महाराजा इन्द्रजीत सिंह के शासन काल में समथर राजधर की उपाधि से गुर्जर राज्य की स्थापना हुयी , मर्दन सिंह को समथर की किलेदारी सौपी गयी ,समथर स्टेट धीरे धीरे दतिया के अधीन सुद्रढ़ राज्य के रूप में स्थापित हो गया ,कई शाशकों ने इस राज्य की प्रगति में योगदान दिया ,झाँसी गजेटियर के अनुसार जो इस बात की पुष्टि भी करता है की समथर के स्वतंत्र राज्य की नीव चंद्रभान वीर गुजर और उनके पोते मदन सिंह, दतिया के राजा के द्वारा डाली गई थी ।
यह सर्वविदित है कि महाराजा रणजीत सिंह जूदेव भारतीय राजनीति में प्रमुख स्थान रखते थे। झाँसी क्रांति के समय में समथर राज्य अंग्रेजों के अधीन था ,झाँसी क्रांति के पूर्व से ही समथर राज्य मराठों की उदीयमान शक्ति का सहयोगी रहा है ,चूकि झाँसी राज्य मराठों के सम्बंधित था इसलिए समथर राज्य किसी प्रकार महारानी झाँसी का विरोध नहीं करना चाहता था , समथर राज्य के महाराजा भी कट्टर भारतीयता से ओत प्रोत थे ,उन्होंने मराठों का साथ पकड़ा किसी मुग़ल बादशाह का नहीं ,जबकि बांदा ,अवध आदि के नवाबों ने मुगलों का साथ दिया था .. १८५७ की क्रांति के समय समथर में महाहिंदुपति का शासन था ,जो अवयस्क थे और शासन का भार राजमाता पर था ,कुशल दीवान घाटमपुर वाले उनके सहयोगी थे , महारानी लक्ष्मीबाई झाँसी से कालपी के लिए समथर राज्य से होकर गुजारी थी तथा समथर राज्य के दतावली गाव में रुकी थीं ,समथर एक क़स्बा है और उत्तर प्रदेश के झांसी जिले में एक नगर पालिका है भारत की जनगणना2001 में समथर की आबादी 20,227 थी. पुरुषों और महिलाओं की जनसंख्या 47% से 53% . समथर की साक्षरता दर औसत 55% है, 59.5% की राष्ट्रीय औसत से कम है: पुरुष साक्षरता 66% है, और महिला साक्षरता 43% है. .समथर में, जनसंख्या का 16% की उम्र 6 वर्ष से कम है. पूर्व में स्थित समथर समथर गढ़ के रूप में जाना जाता था. . समथर महान गुर्जर योद्धाओं के अधीन एक रियासत थी।
इस प्रकार इतिहास का एक महानायक संसार से प्रस्थान कर गया है। उनके पश्चात शून्य पैदा हुआ है जिसकी भरपाई कभी नहीं हो पाएगी। वे जीती जागती गरिमा पूर्ण व्यक्तित्व की मूर्ति थे जिन्होंने भी उनका साथ पाया वही उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहा। ऐसे विशिष्ट गुणों से संपन्न महाराजा रणजीत सिंह जूदेव के प्रस्थान पर समस्त उगता भारत समाचार पत्र परिवार की ओर से उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

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