हिन्दू महासभा से…
आज राष्ट्र के समक्ष विभिन्न ज्वलंत समस्याएं हैं। देश में सर्वत्र अराजकता की सी स्थिति है। राजनीतिज्ञ धर्महीन, धर्मनिरपेक्ष होकर पथभ्रष्ट हो गये हैं। लोगों का राजनीति और राजनीतिज्ञों से विश्वास भंग हो चुका है, क्योंकि राजनीति और राजनीतिज्ञ आज व्यक्ति का शोषण कर रहे हैं और अधिकारों का दोहन कर रहे हैं। जबकि उनसे अपेक्षा शोषण की नहीं, अपितु पोषण की थी।
कश्मीर का केसर ए.के. 47 की बारूद उगल रहा है तो आसाम की चाय ईसाईकरण के रंग में रंगकर कड़वी हो चुकी है। पूर्वोत्तर को पुन: तोडऩे का षडय़ंत्र रचा जा रहा है तो सुदूर दक्षिण में धर्म पर सीधे-सीधे आक्रमण हो रहा है, नारी शोषण व भयानक अत्याचारों का शिकार हो रही है।
इस देश का मूल निवासी और बहुसंख्यक हिंदू जो विश्व की एकमात्र प्राचीन और गौरवमयी वैदिक संस्कृति का धवजवाहक है और उत्तराधिकारी है, अपने ही देश में उपेक्षा और अवहेलना की राजनीतिक कैंची से काटा जा रहा है।
इन सबके उपरांत भी ‘नीरो’ बांसुरी बजा रहा है। जो उसे जगाने का कार्य कर रहे हैं वे साम्प्रदायिक कहे जा रहे हैं और जो इस देश की संस्कृति को विनष्ट करने का कुकृत्य कर रहे हैं वे आधुनिकतावादी कहे जाकर पूजित हो रहे हैं, यह हमारे दुर्भाग्य की सूचक स्थिति है।
हिन्दू महासभा का दायित्व
ऐसे समय में ‘अखिल भारत हिंदू महासभा’ के दायित्व बहुत बढ़ जाते हैं। हमें अब हिंदू को जगाना ही होगा और आज देश की राजनीतिक सत्ता प्राप्ति के लक्ष्य की ओर बढऩा ही होगा। हम लक्ष्य निर्धारित करके आगे बढ़ें। नारों के आधार पर नहीं, अपितु यथार्थ के धरातल पर ठोस कार्य करके हम आगे बढ़ें।
नारों के आधार पर हिन्दू की भावनाओं को जिन लोगों ने धारा 370 को हटाने, राम मंदिर निर्माण करने और समान नागरिक संहिता बनाने का नारा दिया, हमने उनकी परिणति देख ली। इसलिए हमें उनसे शिक्षा लेनी होगी और सत्ता की ओर बढऩे के लिए यथार्थ के धरातल पर शनै: शनै: पग आगे बढ़ाने होंगे।
हमें स्मरण रखना होगा कि सूर्योदय से पूर्व उषाकाल होता है आशा और नये प्रभात की सूचक उषा को हमें भारत के राजनीतिक गगन मंडल में इस अपने पवित्र राजनीतिक दल की स्थिति को सुदृढ़ता प्रदान करके प्रमाणित करना होगा। जो लोग नकारात्मक ऊर्जा का प्रयोग करते हुए इस संगठन को ‘एक’ नहीं होने दे रहे हैं-वे न केवल संगठन के अपितु हिन्दुत्व के भी शत्रु हैं। इनकी निजी महत्वाकांक्षाएं संगठन का और हिन्दुत्व का अहित कर रही हैं। जिससे देश के भीतर प्रखर राष्ट्रवाद का हिन्दू महासभा का लक्ष्य भाजपा ने अपने दोगले राष्ट्रवाद के रूप में अपना लिया है। भाजपा और आर.एस.एस. जैसे संगठन नहीं चाहते कि भारत में हिन्दू महासभा आगे बढ़े।
सौभाग्य से कुछ हिन्दू महासभाई इस ओर सजग हैं और उचित दिशा में उचित निर्णय ले रहे हैं। यह हिंदू राष्ट्र के उदय होने के लिए एक शुभ संकेत है। मैं अपने राष्ट्रीय नेतृत्व से विनम्र निवेदन करता हूं कि-
(1) धर्मसभा
हमारी इस हिंदू महासभा में एक अंग ऐसा भी हो जो ‘धर्मसभा’ के नाम से जाना जाए। इस सभा का कार्य धर्म के नैतिक नियमों को स्थापित कराकर मानवता और प्राणिमात्र का हित साधन हो तथा राज्य में शासक वर्ग को धर्मानुसार व्यवहार करने के लिए बाध्य करने की शक्ति भी इसके पास हो। इसमें देश के विभिन्न धार्मिक विद्वानों को सम्मिलित किया जाए।
(2) राज्यसभा
इस सभा में पूरे देश से ऐसे विशेषज्ञों को सम्मिलित किया जाए जो विभिन्न विषयों में प्रवीण हों तथा उसके विशेषज्ञ हों। यथा-चिकित्सा क्षेत्र, विज्ञान क्षेत्र, तकनीकी क्षेत्र, विधि क्षेत्र, विज्ञान क्षेत्र, तकनीकी क्षेत्र, विधि क्षेत्र, उद्योग क्षेत्र, कृषि क्षेत्र, तीनों सेनाओं के विशेषज्ञ इत्यादि। ये अपने-अपने विषयों की विशेष जानकारी रखते हुए सरकार को समय-समय पर सूचित एवं सचेत करें।
(3) सांसद योग्यतम् हों
इसके लिए आवश्यक है कि हम ऐसी व्यवस्था देश में विकसित करने पर बल दें कि कोई भी अपराधी लोकतंत्र के पावन मंदिर संसद में पैर न रख सके। चुनाव सुधारों पर हम बल दें। ऐसी व्यवस्था हम करें कि योग्यतम् व्यक्ति ही चुनकर हमारी संसद में पहुंच सकें। इसके लिए अपने राजनीतिज्ञों और जनप्रतिनिधियों के लिए हम राजनीतिक आचार संहिता लागू कराने पर बल दें। जितना योग्य जनप्रतिनिधि होगा और जितनी अधिक ईमानदारीपूर्ण राजनीतिक निष्ठा उसके भीतर होगी-उतना ही वह राष्ट्रभक्त होगा।
(लेखक की पुस्तक ‘वर्तमान भारत में भयानक राजनीतिक षडय़ंत्र : दोषी कौन?’ से)
पुस्तक प्राप्ति का स्थान-अमर स्वामी प्रकाशन 1058 विवेकानंद नगर गाजियाबाद मो. 9910336715