महाअधिवेशन के भव्य आयोजन से भूपेश बघेल का कद कांग्रेस पार्टी में बढ़ गया है
उमेश चतुर्वेदी
रायपुर में हुआ कांग्रेस महाधिवेशन राजनीतिक तौर पर कितना सफल हुआ, कांग्रेस की भावी चुनावी सफलता और विपक्षी खेमे में उसकी स्वीकार्यता पर इसका आकलन निर्भर करेगा। लेकिन कांग्रेसी राजनीति में एक शख्स ऐसा है, जिसका कद इस महाधिवेशन के बाद बढ़ना तय है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर कांग्रेस के गांधी-नेहरू परिवार की मिजाजपुर्सी का विपक्षी खेमे की ओर से चाहे जितना भी आरोप लगा हो, लेकिन इस महाधिवेशन की कामयाबी के बाद कांग्रेसजनों की नजर में उनका कद बढ़ गया है। इसका फायदा वे आगामी विधानसभा चुनावों में उठाने की कोशिश करेंगे।
कांग्रेस अपने गठन के 138वें साल में प्रवेश कर चुकी है। इस अवधि में उसके 85 महाधिवेशन हो चुके हैं। रायपुर से सटे नवा रायपुर में हुए 85वें अधिवेशन के जैसे इंतजाम रहे, कम से कम उससे कांग्रेसी खेमे में संतुष्टि का भाव नजर आ रहा है। इसकी वजह है, महाधिवेशन का सफल आयोजन। कांग्रेस में सक्रिय आज की पीढ़ी के बीच अब तक हैदराबाद अधिवेशन की जमकर चर्चा होती थी। उस अधिवेशन का इंतजाम आंध्र प्रदेश के दिग्गज कांग्रेसी नेता वाई राजशेखर रेड्डी ने किया था। महज डेढ़ साल पहले ही उन्होंने अपने दम पर आंध्र प्रदेश की सत्ता पर कांग्रेस को काबिज कराया था। 2004 में केंद्रीय राजनीति में कांग्रेस की वापसी में भी आंध्र प्रदेश ने बड़ी भूमिका निभाई थी। तब आंध्र प्रदेश की 42 सीटों में से कांग्रेस ने अकेले 29 और उसकी सहयोगी कम्युनिस्ट पार्टियों ने दो सीटें जीती थीं। लोकसभा के साथ हुए विधानसभा चुनाव की 294 सीटों में से कांग्रेस ने जहां वाईएसआर की अगुआई में 185 सीटें जीती थीं, वहीं उसकी सहयोगी कम्युनिस्ट पार्टियों को पंद्रह सीटों पर जीत हासिल हुई थी। इसके साथ ही कांग्रेस ने सरकार बनाई थी। जाहिर है कि दोनों जीतों और अरसे से आंध्र की सत्ता पर काबिज तेलुगू देशम को पराजित करने का असर दो साल बाद हुए हैदराबाद कांग्रेस महाधिवेशन पर दिखा। वाईएसआर ने महाधिवेशन को कामयाब बनाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी।
लेकिन कांग्रेसी हलकों में माना जा रहा है कि भूपेश बघेल ने हैदराबाद अधिवेशन की सुनहली यादों को अपने इंतजामों के जरिए कम से मौजूदा पीढ़ी के कांग्रेसियों के दिल-ओ-दिमाग से निकाल दिया है। इस अधिवेशन को रायपुर में कराने का प्रस्ताव भूपेश बघेल ने दिया था। कांग्रेस के पहले परिवार से अपनी नजदीकी के चलते इसे आयोजित कराने के लिए आलाकमान की सहमति लेने में भी कामयाब रहे। कांग्रेसी हलकों में कहा जा रहा है कि उनके आयोजन को खराब करने की कोशिश भी हुई। प्रवर्तन निदेशालय के छापे भी इस दौरान चलते रहे। कांग्रेसियों का कहना है कि प्रवर्तन निदेशालय का छापा महाधिवेशन का इंतजाम देख रहे कारोबारी के घर भी पड़ा। लेकिन वह पीछे नहीं हटा। जिससे आयोजन पर असर नहीं पड़ा। कांग्रेसी जानकार कहते हैं कि इसके सफल आयोजन के पीछे भूपेश बघेल की अपनी टीम का हाथ रहा। जिसमें दो पूर्व पत्रकार समेत कुछ अधिकारी शामिल हैं। लगातार तीन दिनों तक चले महाधिवेशन में देशभर से करीब पंद्रह हजार कांग्रेसी जुटे। आखिरी दिन सभा भी हुई। उस दिन रायपुर में करीब एक लाख से ज्यादा की भीड़ जनसभा में जुटी। कांग्रेस संगठन का भीड़ जुटाने में सरकारी तंत्र का आरोप भाजपा ने लगाया है। लेकिन विधानसभा चुनावी वर्ष में इतनी भीड़ जुटना कांग्रेसी मामूली बात नहीं मानते। इसकी वजह से माना जा रहा है कि भूपेश बघेल एक बार फिर कांग्रेस आलाकमान का भरोसा जीतने में कामयाब रहे। कांग्रेस में उनके विरोधी टीएस सिंहदेव कुछ महीने तक बगावती तेवर अख्तियार किए हुए थे। माना जा रहा है कि कांग्रेस महाधिवेशन की सफलता के बाद उनका असर कम होगा।
महाधिवेशन के बाद छत्तीसगढ़ की कांग्रेसी राजनीति में भूपेश बघेल का कद के बढ़ने का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आखिरी दिन की रैली में कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने आयोजन की ना सिर्फ तारीफ़ की, बल्कि बघेल को बधाई भी दी। बघेल कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के नजदीकी माने जाते हैं। प्रियंका के स्वागत में बघेल ने प्रियंका की राह में गुलाब की पंखुड़ियों का गलीचा बिछा दिया। इसकी आलोचना होनी थी और हुई भी। इसे राजनीतिक हलकों में अच्छे संदर्भ में नहीं लिया गया। आने वाले दिनों में भारतीय जनता पार्टी इसे मुद्दा जरूर बनाएगी। लेकिन लगता नहीं कि भूपेश बघेल को इसकी परवाह है। उन्हें अपने आलाकमान को प्रसन्न करना था और वे कामयाब रहे हैं। उनकी तारीफ में प्रियंका का यह कहना कि छत्तीसगढ़ मॉडल देश को रास्ता दिखा रहा है और इसी कारण से यहां छापे पड़ रहे हैं, भूपेश बघेल की कुर्सी के सलामत रहने और आगामी विधानसभा चुनाव उनकी ही अगुआई में लड़ने का स्पष्ट संदेश हैं।
इस महाधिवेशन पर होने वाले खर्च कांग्रेस विरोधी दलों के निशाने पर रहेंगे ही। इस महाधिवेशन के लिए देश भर से पंद्रह हजार से ज्यादा लोग रायपुर में जुटे। भूपेश बघेल की टीम ने सबके ठहरने का बेहतर इंतज़ाम किया। अधिवेशन स्थल पर वाईफाई, अस्पताल, प्रदर्शनी, लाउंज, आरामकक्ष और पार्टी के सर्वोच्च नेताओं के लिए अस्थायी दफ्तर बनाया गया था। इस आयोजन में चाहे बड़ा नेता हो या छोटा कार्यकर्ता, सबके लिए भूपेश की टीम ने एक समान भोजन का इंताजम किया था। इस आयोजन पर सरकारी धन का भी खर्च हुआ। सभी आगंतुकों को छत्तीसगढ़ मॉडल को लेकर किताबें और उपहार आदि भी दिए गए। इससे महाधिवेशन में शामिल कांग्रेसी गदगद हैं। इसके चलते माना जा रहा है कि इस आयोजन के जरिए बघेल ने कांग्रेस में लम्बी लकीर खींच दी है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी के लिए आगामी विधानसभा चुनावों में उन्हें चुनौती देने के लिए नए हथियार तलाशने होंगे।
छत्तीसगढ़ कांग्रेस के बीच भूपेश बघेल की रणनीतिकार की छवि 2018 में सत्ता में वापसी के साथ ही बन गई थी। माना जा रहा है कि महाधिवेशन के बाद पूरी कांग्रेस उनके लिए ऐसा सोचने लगी है। ऐसे में दो बातें तय हैं, एक कि कांग्रेस छत्तीसगढ़ का अगला विधानसभा चुनाव भूपेश बघेल की ही अगुआई में लड़ेगी। वहीं भारतीय जनता पार्टी की चुनौती भी बढ़ गई है। इसलिए भूपेश को पटखनी देने के लिए उसे अपनी तरकश से नए तीर निकालने होंगे।