शिव आख्यान* भाग 3
शिव आख्यान
डॉ डी के गर्ग
भाग- 3
ये लेख दस भाग में है , पूरे विषय को सामने लाने का प्रयास किया है। आप अपनी प्रतिक्रिया दे और और अपने विचार से भी अवगत कराये
पहले २ भाग में शिव के दो स्वरूप के विषय में लिखा है ,अब करते है तीसरे शिव की बात जो कि एक काल्पनिक चित्रण है जिसके आधार पर तस्वीर और मुर्तिया बनायी गयी है और उसको शिव का नाम दिया गया है। ये तसवीर या प्रतिमा शरीरधारी राजा शिव की नहीं है और ना ही निराकार शिव ईश्वर की । किसी दार्शनिक चित्रकार ने एक स्वरूप की कल्पना की है जिसके आधार पर उसने वेद में वर्णित ईश्वर शिव के गुणों को समझाया है । निराकार ईश्वर को किसी ने नहीं देखा ,लेकिन काल्पनिक शिव के जो चित्र सामने आता है उसे देखकर महान चित्रकार का बोध होता है जिसने चित्र के माध्यम से ईश्वर के विषय में तथ्यात्मक बात को सरल तरीके से समझाया है , उस पर आज चर्चा करते है।
अवधूत रूपी शिव का वर्णन
काल्पनिक शिव के मानव रुपी शरीर का अलंकारिक चित्रण: दायें हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में डमरु है। सिर पर गंगा और माथे पर अर्ध चन्द्रमा है। उनके तीन नेत्र हैं-वृषभ या नादिया उनकी सवारी है, गले में मुण्ड माला है, वह बाघम्बर धारण किए हैं गले में सर्प लिपटे रहते हैं, देवों के कष्ट हरण के लिए विषपान किया है।तो आइए इसी को प्रतीक मानकर समीक्षा करें।
विश्लेषणः- प्रचलन में शिव का मानव रूपी चित्र: शिव को वास्तव में किसी ने नहीं देखा, न ही शिव पुराण, शिव कथा लिखने वाले ने और ना ही इनको पढ़ने वाले ने। ये तो एक काल्पनिक चित्र है।इसलिए चित्रकार ने जो कल्पना की है उसको समझना जरुरी है कि इस चित्र का वास्तविक सन्देश क्या है ? शिव के जो चित्र मिलते हैं, उनसे प्रतीत होता है कि इन सभी अनेक रूपों का उसमें मिश्रण कर दिया है। शिव ऐसे अवधूत ब्रह्मचारी को भी कहते हैं। जिसने मृत्यु को जीत लिया ।ऐसा महान् इन्द्रिय जीत योगी ही संसार रूपी प्रकृति अथवा पार्वती का स्वामी कहलाने योग्य है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद आदि। सांसारिक विषय रूपी सर्प उससे लिपटे रहकर भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते।
शरीर पर लिपटे हुए सर्पों से तात्पर्य स्पष्ट है कि सांसारिक विषयों और वासनाओं सर्प की भाँति हमारे ऊपर लिपटी होती है लेकिन योगी,तपस्वी का उन पर कोई प्रभाव नही होता है।
शिव की पत्नी के रूप में पार्वती को दिखाया है इसका सीधा अर्थ ये निकलता है कि सर्प का असर इसलिए भी नहीं होता क्योंकि स्वयं प्रकृति तो पार्वती माता के रूप में उनकी पत्नी है। दोनों एक- दूसरे के पूरक है, सहायक है, रक्षक है इसलिए सर्प जो की प्रकृति का हिस्सा है कैसे शिव को क्षति पहुंचा सकते है ?
कुछ विशेष आलांकारिक भावार्थ :
1. कैलाश क्या है ? (अमर कोष व्याख्या रामाश्रयी टीका पृष्ठ 35) के अनुसार―कै़लास = कैलास – क प्रत्यय से लस श्लेषण क्रीडनयोः धातु से इसकी सिद्धि होती है। कम इति जलम्, ब्रह्म व तस्मिन के जले कै़लास= कैलास―क प्रत्यय से लस श्लेषण क्रीडनयो धातु से इसकी सिद्धि होती है―
कम इति जलम् ब्रह्म व तस्मिन के जले ब्रह्ममणि लासः लसनमस्य इति कैलासः।
क अर्थात् ब्रह्म में क्रीड़ा करने का जिसका स्वभाव हो। यहाँ क से अभिप्राय ब्रह्म या ब्रह्मजल से है क्योंकि ‘क‘ नाम ब्रह्म का है। परम योगी साधक उस ब्रह्मजल में निमग्न रहता है। परमानन्द की प्राप्ति होने से वह कैलाश में सदा स्थिर रहता है। यही उसका कैलाशवाश है।
2. पर्वत का वास्तविक रूपः-पर्वत दृढ़ता का प्रतीक है, साधक पर्वत की भाँति अपने व्रत में अड़िग रहता है। पर्वाणि शुभे कर्माणि शुभ मति स पर्वत।
3.त्रिनेत्र का भावार्थ:―यह तीसरा नेत्र उसके माथे में स्थित है जो ज्ञान नेत्र का प्रतीक है इसी ज्ञान नेत्र से वह काम वासना को भस्म कर देता है। अतः वे कभी कामासक्त होकर अनाचार नहीं करते।
4. त्रिशूल―त्रिशूल=तीन शूल=कष्ट अर्थात् तीन कष्ट (1) आदि दैविक (2) आदि भौतिक (3) आध्यात्मिक। ये तीन कष्ट हैं―ये तीनों कष्ट या शूल काँटों के समान कष्टदायक हैं। इसलिए त्रिशूल हैं। परम योगी शिव इन तीनों कष्ट रुपी दुःखों को अपनी दायीं मुट्ठी में कर लेते हैं, यानि अपने वश में कर लेते हैं।
5. डमरु―शिव के बायें हाथ में डमरु है। डमरु शब्द संस्कृत के दमरु का अपभ्रंश है जो दो शब्दों से बना है। ‘दम‘ (दमन करना) ‘रु‘ (ध्वनि) अर्थात् दमन संयम रुपी ध्वनि व्यक्त होती रहती है यानि वह महान संयमी है।
6. गंगा―शिव के माथे पर गंगाजी हैं, मस्तकवर्ती यह गंगा ज्ञान गंगा है। इसलिए सिद्ध है कि शिव ज्ञानी है।
7 चन्द्रमा―शिव के सिर पर अर्ध चन्द्रमा है।यह चन्द्रमा आनन्द और आशा एवं सौहार्द्र की प्रतीक है।
8 विषधर―शिव के चारों ओर विषधर लिपटे हुए हैं। ये विषधर काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, ईष्र्या, द्वेष, पक्षपात आदि के प्रतीक हैं। जिन्हें योगी शिव अपने अन्तःकरण से बाहर फेंककर अनासक्त भाव से विचरण करते हैं।
9 हलाहल पान करने से नीलकंठ है―शिव का हलाहल पान करना इस बात का प्रतीक है कि वह विष समान कटुतर बातों को अपने कंठ से नीचे नहीं जाने देता अर्थात् उनका ह्रदय नितान्त निर्मल है।
10. मुण्डमाला धारण करता है―शिव जो मुण्डमाला धारण करते हैं वह इस बात का प्रतीक है कि उनके कई जन्म हो चुके हैं।
11. शरीर पर भस्म लपेटे हैं―शिव अपने शरीर पर भस्म लपेटे हुए हैं। यह सिद्ध करते हैं कि यह शरीर भस्म होने वाला है। (भस्मान्तं शरीरम्। यजु. ४०ध्१५) आशय यह है कि योगी शिव शरीरादि मोह से विरक्त हैं यानि विलासिता से दूर हैं।
12. नादिया वृषभ या सवारी है―शिव की सवारी नादिया या वृषभ है। यहाँ पर ‘नादिया‘ नाद शब्द का अपभ्रंश है। नाद का अर्थ ध्वनि है, सर्वश्रेष्ठ ध्वनि ओंकार की है।