मेवाड़ के महाराणा और उनकी गौरव गाथा अध्याय – 17 ( क ) पन्ना धाय का बलिदान और महाराणा उदय सिंह

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पन्ना धाय का बलिदान और महाराणा उदय सिंह

पन्ना गूजरी भारत के अमर बलिदानियों और क्रांतिकारियों के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। भारत की क्रांतिकारी बलिदानी गाथा को तब तक पूर्ण नहीं समझना चाहिए जब तक कि पन्ना धाय के बलिदान को उसमें स्थान न दे दिया जाए। पन्ना गुर्जरी ने अपने बेटे चंदन का बलिदान देकर कर्तव्य की पूर्ति करते हुए सारे संसार को यह बताने का सराहनीय कार्य किया कि जब बात देश की हो तो उस समय भावनाओं को स्थान नहीं देना चाहिए । भावनाओं को पीछे छोड़कर राष्ट्र के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देना जीवन की सर्वोत्कृष्ट साधना होती है। जिसे हम पन्ना के जीवंत इतिहास से सीख सकते हैं।
8 मार्च 1490 दिन मंगलवार को चित्तौड़गढ़ के निकट माताजी की पांडोली नामक गांव में हरचंद हांकला के यहां पर पन्ना धाय का जन्म हुआ था। राणा संग्राम सिंह के पुत्र उदय सिंह की धाय मां के रूप में अपने पुत्र चंदन का बलिदान करने के कारण इतिहास में पन्ना को विशेष सम्मानित स्थान प्राप्त हुआ। पन्ना के पति सूरजमल चौहान थे, जो कि कमेरी गांव के रहने वाले थे। पन्ना के पिता और पति दोनों ही वीर पुरुष थे। पन्ना जिन संस्कारों में पली थी , उनमें सर्वत्र देशभक्ति का रंग बिखरा पड़ा था। देशभक्ति का यह रंग पन्ना पर बचपन में ही चढ़ गया था।
उन दिनों राणा संग्राम सिंह भारतीय अस्मिता के प्रतीक बन चुके थे। उनके पास 100 दुर्ग थे, उनकी सेना में एक लाख सैनिक थे। महाराणा संग्राम सिंह की वार्षिक आय ₹10 करोड़ बताई जाती है। उनकी सेवा में सात बड़े हिंदू राजा ,9 राव ,104 सामंत कार्य करते थे। कई मुसलमान अमीर और शहजादे भी उनकी सेवा में रहते थे। इससे पता चलता है कि महाराणा संग्राम सिंह का जीवन राजकीय वैभव से भरा हुआ था।

दामोदर लाल गर्ग कहते हैं …..

पन्नाधाय के लिए दामोदर लाल गर्ग ने एक पुस्तक “राजधात्री पन्ना गूजरी” के प्रारंभ में ही लिखा है :-“गूजर जाति के विषय में हम यहां इसलिए विचार कर रहे हैं क्योंकि हमारे इस ग्रंथ की नायिका वीरमाता पन्नाधाय इसी गुर्जर वंश में उत्पन्न हुई थी। गुर्जर अथवा गुर्जर शब्द किसी जाति विशेष अथवा किसी भूभाग का द्योतक नहीं बल्कि तत्कालीन श्रेष्ठताओं अर्थात वीरता तथा स्वामी भक्ति के आधार पर ही इन लोगों को गुरजन, गुजरान जैसे शब्दों से संबोधित किया गया था। जो कालांतर में अपभ्रंश होकर गुर्जर अथवा गुर्जर के रूप में स्थापित हो गए।”
उन दिनों राजा लोग अपने यहां धाय माता को अपने बच्चों में अतिरिक्त वीरता के गुणों का समावेश करने के उद्देश्य से रखते थे। स्पष्ट है कि इस कार्य के लिए अत्यंत कुलीन परिवार से ही धाय माता को लिया जाता था। गुर्जर समाज की महिलाओं में वीरता के अतिरिक्त गुण होने के कारण ही उन्हें धाय माता जैसा सम्मानजनक स्थान दिया जाता था।
दामोदर लाल गर्ग ने अपनी उपरोक्त पुस्तक के पृष्ठ 15 पर लिखा है कि :- “जवान, स्वस्थ, परिश्रमशील एवं जिसके अंचल में बालक के लिए पर्याप्त दूध हो, ऐसी माताएं ही धाय का पुनीत कार्य कर सकती हैं अथवा जिनके स्तनों में दूध हो वह भी धाय माता बन सकती है। कहने का तात्पर्य है कि सभी जातियों में सुंदर, स्वस्थ और जवान औरतें हो सकती हैं किंतु अभी तक के सर्वेक्षण में देखने में आया है कि गुर्जर जाति की स्त्रियों को ही यह सम्माननीय खिताब मिलता रहा है अन्य जातियों की माताओं को नहीं।”

महाराणा ने सौंप दिया था उदय सिंह पन्ना को

पन्ना गुर्जरी के पिता हरचंद हकला भी अपने आप में एक श्रेष्ठ योद्धा थे। उन्होंने अनेक युद्धों में राणा संग्राम सिंह के साथ भाग लिया था। उन्होंने भी एक युद्ध में अपना बलिदान दिया था। ऐसे स्वामी भक्त बलिदानी की पुत्री पन्ना को धाय माता बनाना सचमुच बहुत ही गौरव की बात थी। रानी कर्मवती से जब उदय सिंह का जन्म हुआ तो रानी तभी से अस्वस्थ रहने लगी थी। उस अवस्था में उदय सिंह के पालन पोषण का काम माता पन्नाधाय को सौंप दिया गया था। रानी कर्मवती अपने पति महाराणा संग्राम सिंह के जीवन काल से ही अपने दो पुत्रों विक्रमादित्य और उदय सिंह के साथ रणथंभौर के किले में निवास कर रही थी। राणा ने यह दुर्ग रानी को जागीर के रूप में प्रदान कर दिया था। रानी के साथ ही पन्नाधाय भी यहीं पर निवास कर रही थी। जब महाराणा संग्राम सिंह बयाना की ओर बाबर के साथ युद्ध करने के लिए जा रहे थे, तब वह रानी कर्मवती और उनके दोनों पुत्रों से मिलने के लिए यहां पर पहुंचे थे।
महाराणा संग्राम सिंह ने अपने छोटे पुत्र उदय सिंह को इसी किले में और इसी अवसर पर पन्ना के संरक्षण में सौंप दिया था। इस अवसर पर उन्होंने कहा था कि “न रानी कर्णावती और न ही किसी दास दासी पर वरन इस पुत्र की रक्षा का विश्वास मुझे एकमात्र तुझ पर है। हाड़ी की कोख से उत्पन्न और तेजी से गोद में पलित युद्ध में संसार को मात देने वाली यह राणा की संतति है, इसलिए हे पन्ना ! इसे मेरी धरोहर मानकर पालन कर। इसके लिए तू ही देवी, तू ही देवता और तू ही इसकी संरक्षिका है। इसका समुचित सार संभाल करते रहना। तेरा पति सूरज जैसे मेरा अंगरक्षक होकर मेरे साथ है, वैसे ही तू भी कुंवर उदयसिंह कि संरक्षिका बनकर रहना।”
पन्नाधाय ने अपने स्वामी महाराणा संग्राम सिंह के इन शब्दों को बड़ी गंभीरता से सुना था। यही कारण था कि उसने जीवन भर उन शब्दों का मूल्य समझ कर उनके अनुसार कार्य करते हुए अपना नाम बलिदानों की अमर परंपरा में सम्मिलित करवाया।

सारा मोल चुकावसी, वचन निभावण काज।

इसी प्रकार रानी कर्णावती ने पन्ना के पति सूरज के वीरगति प्राप्त करने पर उसे ढांढस बताते हुए कहा था कि “हे धात्री ! धैर्य धारण कर । तेरी गोद सूनी नहीं है अपितु तू तो दो – दो बच्चों की माता है। तुझे चंदन और उदय को बड़ा भी तो करना है, क्योंकि यह दोनों अभी अबोध ही हैं। हे पन्ना तू राजकुल की धाय है तुझे ऐसी व्याकुलता शोभा नहीं देती। देख, मेरे स्वामी भी घायल अवस्था में हैं।
स्वामी ने अपने छोटे कुंवर को भी तुझे ही संभलवाया हुआ है, इसलिए तू कोई साधारण मां नहीं है अपितु ‘मेवाड़ मुकुट’ की धाय माता है। तेरा सम्मान और पद मेरे से भी पड़ा है। अरे पन्ना ! तुझे तो गर्व होना चाहिए कि तेरे पिता ने जैसे स्वामी की सेवा करते हुए अपने प्राण न्योछावर किए थे उसी प्रकार आज तेरे पति सूरज ने भी स्वामी की रक्षा में अपने प्राणों का उत्सर्ग किया है। तेरा पति कायर की भांति नहीं मरा अपितु अपनी छाती पर खेल खाकर स्वर्ग सिधारा है। पन्ना तेरे कुल को मेवाड़ कभी भुला नहीं पाएगा।
हां तूने कहा था कि मैं उदय को सूर्य की भांति चमकाऊंगी। इस स्थिति में तू वैसा कैसे कर पाएगी? इसलिए वीर पुत्रों की माता बनकर तू धैर्य धारण कर और महाराणा को दिए वचनों को स्मरण कर । “सारा मोल चुकावसी, वचन निभावण काज।” इसलिए तू हताश मत हो, ध्यान रख, जब तक संसार में मेरे पति का नाम रहेगा तब तक तेरे पति सूरज का सूरज मेवाड़ की ( धर्म ) धरा पर चमकता ही रहेगा। अरी मूर्ख ! तुझे तो अपने पति की वीर गति पर गर्व होना चाहिए।”
पन्ना ने स्वदेश, स्वराष्ट्र, स्वसंस्कृति और स्वधर्म के लिए महाराणा संग्राम सिंह को ही बलिदान देते नहीं देखा था, उसके साथ- साथ उसने अपने पिता और पति को भी इन्हीं उत्कृष्ट भावों और विचारों के लिए निज बलिदान देते देखा था। इस प्रकार वह बलिदानों के बीच पली बढ़ी थी। बलिदानों का मूल्य और बलिदानों की अनिवार्यता ये दोनों ही उसे भली प्रकार समझ में आते थे।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

(हमारी यह लेख माला आप आर्य संदेश यूट्यूब चैनल और “जियो” पर शाम 8:00 बजे और सुबह 9:00 बजे प्रति दिन रविवार को छोड़कर सुन सकते हैं।)

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