बिखरे मोती : भक्ति, शक्ति और शान्ति के संदर्भ में

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भक्ति,शक्ति,शान्ती,
हर एक जन की चाह।
प्रभु – कृपा से ही मिले,
जब हो नरम निगाह॥ 2135॥

प्रभु – भक्ति के संदर्भ में

प्रभू- भजन में भूलकै,
मत करना प्रमाद।
ब्रह्म – मुहूर्त में उठाे,
करो प्रभु को याद॥2136॥

हे मनुष्य तो आनन्द लोक से आया है और तेरा गणत्वय भी वही है –

आया आनन्द-लोक से,
जाना आनन्द लोक।
शुचिता रख तू कर्म मे,
जो चाहे परलोक॥2137॥

भक्ति,शक्ति, शान्ति प्रभु कब वापस ले लेते हैं –

भक्ति ,शक्ति शान्ति,
ईश्वर के उपहार।
वापिस भी ले ले हरि,
मत करना अहंकार॥2138॥

दुष्ट तो सोया भला,
सकरीय चतुर सुजान।
खुशबू बिखरी ही भली,
बदबू रख अन्जान॥2139॥

संसार में मूर्त से अमूर्त और स्थूल से सूक्ष्म अधिक शक्तिशाली है –

सृष्टि में स्थूल से,
सूक्ष्म अति महान।
जैसे जीव और ब्रह्म है,
मन बुद्धि और प्राण॥2140॥

शक्ति – स्रोत प्रकृति के दो तत्त्व आग और पानी-

प्रकृति के तत्व दो,
एक पानी एक आग।
शक्ति – स्रोत संसार में,
जाग सके तो जाग॥2141॥

प्रेम अमृत है जो सारी सृष्टि को एकता के सूत्र में पीरोए हुए है-

प्रेम – पाश दिखता नहीं,
डोर बड़ी मजबूत।
जीव – ब्रह्म को बांधती,
ताकत बड़ी अकूत॥2142॥

जड़ता (अज्ञान) और अहंकार के संदर्भ में –

जड़ता और अहंकार से,
जो जितना है दूर।
उतना ही भगवान से,
वह प्राणी है दूर॥2143॥

मोक्ष धाम की तैयारी कैसी हो-

बोलन को तो सत्य है ,
आचरण को है धर्म।
मोक्ष धाम ही ध्येय है,
करने को शुभ कर्म॥2144॥
क्रमशः

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