बड़े दिन से ईसा मसीह का नहीं है कोई लेना देना : डॉ राकेश कुमार आर्य

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महरौनी ललितपुर। महर्षि दयानंद सरस्वती योग संस्थान महरौनी के तत्वावधान में विगत 2 वर्षों से युवा पीढ़ी को भारत और वैदिक धर्म के बारे में विशेष जानकारी देने के चल रहे अभियान के अंतर्गत “भारत को समझो” मिशन के राष्ट्रीय प्रणेता एवं सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ राकेश कुमार आर्य ने कहा कि बड़े दिन से ईसा मसीह का कोई लेना देना नहीं है। इसके बारे में सच यह है कि यह भारत के इतिहास के महानायक और महाभारत युद्ध में प्रतिष्ठित रहे भीष्म पितामह से जुड़ा हुआ है।
डॉक्टर आर्य ने कहा कि महाभारत के युद्ध के समय भीष्म पितामह का दसवे दिन अवसान हुआ था और वे मृत्यु शैया पर 58 दिन रहे थे।
युद्ध के उपरांत जब युधिष्ठिर उनके पास गए थे तो उन्होंने उनसे कहा था कि आप 50 दिन पश्चात मेरे पास आना तब सूर्य उत्तरायण दक्षिणायन से उत्तरायण गति में आ जाएगा मैं उसी समय अपने प्राण त्याग करना उचित मानता हूं। डॉक्टर आर्य ने कहा कि सूर्य की दक्षिणायन से उत्तरायण गति का शुभारंभ 22 दिसंबर को होता है। परंतु उसकी स्पष्ट जानकारी 25 दिसंबर को होती है। बस, इसी दिन भीष्म पितामह ने प्राण त्याग किए थे। तब युधिष्ठिर ने अपने मंत्रियों, सेनापतियों, अन्य विदेशी शासकों और गणमान्य लोगों की उपस्थिति में श्री कृष्ण जी के साथ मिलकर भीष्म पितामह का अंतिम संस्कार किया था। वह महाभारत काल के सबसे बड़े व्यक्तित्व थे इसलिए इसको बड़े दिन के नाम से मान्यता प्राप्त हो गई।
डॉ आर्य ने कहा कि ईसा मसीह को लेकर आजकल ईसाई जगत में भी यह चर्चा बड़ी प्रमुखता से चल रही है कि उनका व्यक्तित्व केवल काल्पनिक है ईसा मसीह नाम का कोई व्यक्ति संसार में आज तक नहीं हुआ। दूसरी बात यह भी है कि यदि ईसा मसीह के जन्म से ही ईसवी सन चला है तो फिर उनका जन्म 1 जनवरी को होना चाहिए। उससे पहले 25 दिसंबर को उनका जन्म होना अपने आप में कई प्रकार के प्रश्न पैदा करता है।
इस अवसर पर डॉ आर्य ने कहा कि हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि अंग्रेजों के ईस्वी सन के मकड़जाल में फंसकर हमने 14 जनवरी को गलत ढंग से मकर संक्रांति बनानी आरंभ कर दी है। वास्तव में मकर संक्रांति 22 दिसंबर को ही आती है। क्योंकि इसी दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है और उसकी किरणों में धीरे-धीरे तेजी आनी आरंभ हो जाती है। जिससे मानसून की प्रक्रिया का बीजारोपण भी इसी दिन हो जाता है। हमें इस पर्व से यह समझना चाहिए कि इसका बहुत ही वैज्ञानिक और ऐतिहासिक महत्व है। दुर्भाग्य से इसे आज का हिंदू समाज भूला पड़ा है। “भारत को समझो” अभियान के अंतर्गत ऐसे पृष्ठों को जनता के सामने उजागर करना हमारा विशेष उद्देश्य होना चाहिए।
इस विषय पर अन्य व्यक्तियों में प्रसिद्ध वैदिक विद्वान प्रोफेसर व्यास नंदन शास्त्री जी ने भी अपने विचार व्यक्त किए और कहा कि महाभारत के उद्योग पर्व और अनुशासन पर्व में इस प्रकार की स्पष्ट साक्षी है कि महाभारत का युद्ध कब हुआ और भीष्म पितामह कितनी देर में मृत्यु शैय्या पर रहे। डॉक्टर आर्य द्वारा आज इन्हें बहुत स्पष्टता से वर्णित किया गया है। इसी प्रकार के विचार डॉ वेद प्रकाश शर्मा, अनिल कुमार नरूला ,आर्य चंद्रकांता , युद्धवीर सिंह, देवी सिंह आर्य, शिक्षिका सुमनलता सेन आर्य , शिक्षिका आराधना सिंह, शिक्षक अवधेश प्रताप सिंह बैंस ,श्रीमती दया आर्य आदि ने भी व्यक्त किए।
कार्यक्रम का सफल संचालन भारतीय इतिहास पुनर्लेखन समिति एवं भारत को समझो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक
आर्य रतन शिक्षक लखनलाल आर्य द्वारा किया गया। प्रधान मुनि पुरुषोत्तम वानप्रस्थ ने सभी वक्ताओं के प्रति अंत में आभार व्यक्त किया।

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