माउंटबेटन से किए गुप्त समझौते को पटेल से भी छुपाया था नेहरू ने : डॉ राकेश कुमार आर्य
महरौनी (ललितपुर)। महर्षि दयानंद सरस्वती योग संस्थान आर्य समाज महरौनी के तत्वावधान में विगत 2 वर्षों से ‘भारत को समझो’ अभियान के अंतर्गत चलाई जा रही वैचारिक श्रंखला में
‘सरदार वल्लभ भाई पटेल की वर्तमान में प्रासंगिकता’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए सुप्रसिद्ध इतिहासकार एवं लेखक डॉ राकेश कुमार आर्य ने कहा कि सरदार वल्लभभाई पटेल स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात भारतीय एकता और अखंडता के सबसे बड़े रक्षक बनकर उभरे थे। भारत की सभी रियासतों का एकीकरण करना उनकी सबसे बड़ी सफलता थी।
सरदार वल्लभ भाई पटेल की पुण्यतिथि 15 दिसंबर के अवसर पर इतिहास के कई रहस्यों से पर्दा उठाते हुए डॉ आर्य ने कहा कि
लोगों में यह जनधारणा तथ्यों के विपरीत है कि एल जिस समय देश के प्रधानमंत्री के बनाने का निर्णय लिया जाना था उस समय 15 में से 12 राज्यों ने सरदार पटेल को देश का प्रधानमंत्री बनाने का निर्णय लिया था, जबकि 2 राज्यों ने नेहरू का समर्थन किया था। डॉ आर्य ने कहा कि 15 राज्यों के स्थान पर सही तथ्य यह है कि 15 राज्यों की कांग्रेस कमेटियों में से 12 कमेटियों ने सरदार पटेल के पक्ष में निर्णय लिया था, और दो प्रांतीय कमेटियों ने कांग्रेस वर्किंग कमेटियों ने नेहरू के पक्ष में अपना समर्थन व्यक्त किया था। हमें राज्य के स्थान पर कांग्रेस वर्किंग कमेटियों का ही उल्लेख करना चाहिए।
सुप्रसिद्ध इतिहासकार आर्य ने कहा कि हैदराबाद रियासत के नवाब ने उस समय बरार, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश को भी अपने राज्य में मिलाने की योजना पर काम करना आरंभ कर दिया था। इतना ही नहीं वह यूएनओ में जाकर अपने लिए अलग देश की मान्यता का निवेदन भी करने जा रहा था। इसके अतिरिक्त अपनी सेना, अपनी पुलिस आदि के विषय में भी बड़े स्तर पर उसकी कार्य योजना मूर्त रूप लेने की तैयारी कर रही थी। जिसे उस समय नेस्तनाबूद कर सरदार पटेल ने देश पर भारी उपकार किया था। कृष्णानंद सागर शर्मा की पुस्तक ‘विभाजन कालीन भारत के साक्षी’ के हवाले से बोलते हुए डॉ आर्य ने कहा कि नेहरू मूल रूप से मुसलमान थे और उन्हें एक एग्रीमेंट के तहत लॉर्ड माउंटबेटन ने इसीलिए देश का पहला प्रधानमंत्री बनाना उचित समझा था कि वह मुसलमान थे । सरदार वल्लभभाई पटेल से इस गुप्त समझौते को अलग रखा गया था। इस समझौते में सुभाष को आजादी के बाद भी मिलने पर अंग्रेजों को सौंपने का उल्लेख भी किया गया था।
सरदार पटेल की निर्भीकता, निष्पक्षता सोमनाथ मंदिर के बनाने में भी स्पष्ट दिखाई दी थी। इसी प्रकार जूनागढ़ की रियासत को भी उन्होंने बड़ी सूझबूझ के साथ भारत के साथ विलय करने में सफलता प्राप्त की थी। वे तिब्बत के प्रति चीन के दृष्टिकोण को भी गहराई से समझते थे और यह मानते थे कि चीन यदि तिब्बत को निगल गया तो भविष्य में वह हमारे लिए खतरनाक होगा।
उक्त विषय को बढ़ाते हुए सुप्रसिद्ध वैदिक विद्वान और सारस्वत अतिथि पंडित नागेश चंद्र शर्मा ने कहा कि सरदार वल्लभ भाई पटेल के कारण ही आज इतने बड़े भारत को देख रहे हैं। यदि वह नहीं होते तो भारत कई टुकड़ों में बट गया होता।
डॉ वेद प्रकाश शर्मा ने इस अवसर पर कहा कि सरदार वल्लभभाई पटेल की निष्पक्षता और निडरता हमारे राष्ट्र की राजनीति का स्थाई गुण बनना चाहिए। जबकि श्री अनिल नरूला ने सरदार वल्लभभाई पटेल के आदर्श जीवन को देश के विद्यालयों के पाठ्यक्रम में सम्मिलित कराने पर बल दिया।
कार्यक्रम में प्रधान प्रेम सचदेवा दिल्ली ,युद्धवीर सिंह हरियाणा, माता आर्या चंद्रकांता ” क्रांति”हरियाणा, सुरेश कुमार गर्ग गाजियाबाद, चंद्रशेखर शर्मा जयपुर, रामकुमार पाठक शिक्षक,, सुमनलता सेन आर्य शिक्षका,, आराधना सिंह शिक्षका,परमानंद सोनी भोपाल, अवधेश प्रताप सिंह बैंस,रामसेवक निरंजन शिक्षक,राम किशोर विश्वकर्मा शिक्षक,रामकुमार दुबे शिक्षक,, विमलेश कुमार सिंह, आदि ने भी अपने विचार रखे। ‘भारत को समझो’ अभियान के अंतर्गत इस वैचारिक श्रंखला से देश-विदेश के अनेक लोग लाभान्वित हो रहे हैं। कार्यक्रम के प्रारंभ में कमला हंस ,दया आर्या, ईश्वर देवी ,आदिति आर्य ने सुंदर भजनों की प्रस्तुति द्वारा श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
संचालन भारतीय इतिहास के पुनर्लेखन समिति के राष्ट्रीय संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखनलाल आर्य ने किया उन्होंने केंद्र सरकार से मांग की कि सरदार वल्लभभाई पटेल के जीवन के जुड़े वास्तविक रहस्य और तथ्यों को स्पष्टता पूर्वक लिखवा कर देश की युवा पीढ़ी को उससे अवगत कराया जाए। प्रधान मुनि पुरुषोत्तम वानप्रस्थ ने सब के प्रति आभार जताया।