आधुनिक वेदना
देखो ये आ गये
हाथों में मोबाइल सेट
बालों में जेल ।
पतली सी उँगलियाँ
बड़े- बड़े नेल ।।
लोक लाज मर्यादा
बिल्कुल हैं खा गये ।
देखो ये आ गये।
बाइक पर सवार हैं
बड़े होशियार हैं ।
एक , दो , तीन नहीं
पूरे चार-चार हैं ।।
मन की मुरादें
चौराहे पर पा गये।
देखो ये आ गये ।
हाथों में फटी कॉपी
आधा है पेन ।
ऊपर से नीचे तक
बिल्कुल मेनटेन ।।
कोई भी दिख जाये
सब पर ललचा गये।
देखो ये आ गये ।
मम्मी पापा हारे हैं
रात में पधारे हैं ।
मुँह में दबा गुटका
बाहर तक फुहारें हैं ।
पीक के निशान सब
दीवारों पर छा गये ।
देखो ये आ गये ।
अनिल कुमार पाण्डेय
ए-265 आई टी आई,
मनकापुर, गोण्डा (उ प्र)