अवगुण मेरे विसार दे, कर दे भव से पार

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बिखरे मोती

अवगुण मेरे विसार दे, कर दे भव से पार

अवगुण मेरे विसार दे,
कर दे भव से पार ।
मन लगे भक्ति मे,
करो अर्ज स्वीकार॥2056॥

चोला बदले आत्मा,
नये दरे जा नाम ।
चौरासी में घूमता,
भूला हरि का नाम॥2057 ॥

अन्तःकरण की शुद्धि के संदर्भ में –

शुद्ध अन्तःकरण की,
केवल भक्ति से होय ।
दया धर्म जप तप करें,
कलमष सारे खोय॥ 2058॥

कविता के संदर्भ में –

चेतना में डूबे कवि,
कविता निःसृत होय ।
राम – बाण सी औषधि,
घर के कलमष धोय॥ 2059 ॥

शेर

जब प्रेम आंसू बनकर ढुलकता है –

किसी के ग़म में,
दिल रोता है और सुबकता है।
अजीब मंजर है,
जब प्यार आसू बन ढुलकता है ॥2007 ॥

दृष्टि की पहचान के संदर्भ में –

मच्छर बिच्छू सांप का,
होय जहरीला दंश ।
दुष्ट की वाणी में सदा,
होय जहर का अंश॥2061॥

वाणी से पहचान हो,
कौआ है या हंस ।
विद्या में यदि शील हो,
ख्याति पावै वंश॥2062॥

गैरो और अपनो से शत्रुता के संदर्भ में –

गैरो से हो शत्रुता,
तन होता है क्षीण ।
अपनो से शत्रुता,
हृदय होय विदीण॥ 2063॥

जब पतन सन्नीकट हो के संदर्भ में –

पतन हुए समभाभलय,
बढ़े क्रोध – अहंकार ।
रावण दुर्योधन सभी,
खपा गये परिवार॥2064॥

परमानन्द को कौन प्राप्त होता है ?

दुःख से चाहे छूटना,
सब चाहे आनन्द ।
ब्रह्मनिष्ठ पुण्यात्मा,
पावै पूर्णानन्द॥ 2065॥

जीवन कैसा हो?

परिवार भले ही छूट जाए,
पर छूटे ना धर्म ।
अनुकरण हो राम का,
धन्य होय यह जन्म ॥2066 ॥
क्रमशः

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