मौत से कमाई, लगातार
मौत से कमाई, लगातार
आलोक पुराणिक
दिल्ली एनसीआर समेत भारत के कई इलाके कई सालों से प्रदूषण से जूझ रहे हैं, पंजाब में गेंहू की फसल के बाद बचा हुआ आइटम पराली के जलने की खबरें हर साल आती हैं। फिर नेता बताते हैं कि इसके लिए उनका विरोधी नेता जिम्मेदार है। पराली चल रही है, नेतागिरी भी फुलटू चल रही है। मुफ्तखोरी की पालिटिक्स में कुछ समय बाद संभव है कि हर पार्टी प्रदूषण से मरने वाले के लिए मुफ्त कफन की घोषणा कर दे-वेलफेयर स्टेप। कोई पार्टी यह भी कह सकती है कि हम तो रेशम का कफन दे देंगे। मुफ्त कफन योजना शुरु होते ही कफन की फैक्ट्रियों में इजाफा हो जायेगा। इस तरह से रोजगार अवसरों में बढ़ोत्तरी का क्रेडिट भी तमाम राजनीतिक दल ले सकते हैं। कफन घोटाला हो जाये तो फिर टीवी चैनलों के मजे आ जायेंगे। दे दनादन कवरेज, सुबह से शाम तक कफन कांड चलेगा।.
मुल्क में क्या दुनिया में तीन तरह के लोग होते हैं।
एक समस्या पैदा करते हैं।
दूसरे समस्या पर रोते हैं और रोते ही रहते हैं।
तीसरे समस्या से कमाते हैं और कमाते जाते हैं।
और दिल्ली दुनिया की बदतरीन प्रदूषित राजधानी है।
अब इस पर रोया जा सकता है, इससे कमाया जा सकता है।
एयरप्यूऱीफायर वाले इस रिपोर्ट का हवाला देकर एयरप्यूरीफायर बेचना शुरु कर चुके हैं। मर जाओगे, हमारा एयर प्यूरीफायर खऱीदो। हेमा मालिनी भी बतायेंगी हां, खऱीदो खऱीदो जरुर खरीदो।
दिल्ली में दंगों से भी कमाई हो जाती है। एक इंश्योरेंस कंपनी का मार्केटिंग मैनेजर बता रहा था कि अब कंसेशनल रेट पर दंगा इंश्योरेंस निकालना पड़ेगा। दंगा इंश्योरेंस कराने को बंदा दौड़कर आये, इसके लिए जरुरी है कि शहर में दंगे लगातार होते रहें, ऐसा मैंने इँश्योरेंस वाले से कहा।
इंश्योरेंस वाले ने कहा-तो करा देंगे रेगुलर दंगे। क्या दिक्कत है, नार्मल दंगे होते हैं, इन दंगों से रोजगार –सृजन हो जायेगा इंश्योरेंस के धंधे में।
दंगों से तो कई नेताओं का, कई टीवी चैनलों का रोजगार सृजन हो गया है। कई बेरोजगार टाइप के नेता, जिन्हे कोई नहीं पूछता था। अब टीवी पर आकर कौमी एकता के भाषण दे रहे हैं। कई टीवी चैनलों को कुछ एक्साइटिंग सा ना मिल रहा था, बहुत दिनों से दंगों ने कई टीवी रिपोर्टरों को रोजगार दे दिया।
दिल्ली दुनिया की बदतरीन प्रदूषित राजधानी-हमें शर्म नहीं आती।
हम हेमा मालिनी का आह्वान देखने लगते हैं कि फलां एयर प्यूरीफायर लाओ या फलां वाटर प्यूरीफायर लाओ।
मूलत बेशर्म किस्म के लोग हैं हम। बेशर्मी का स्तर बढ़ा लिया जाये, तो सब कुछ नार्मल लगता है। प्रदूषण नार्मल हो गया है। दंगे भी नार्मल हो जायेंगे, बस थोड़े रेगुलर हो जायें, तो ये भी हमारे कैलेंडर का हिस्सा हो जायेंगे और फिर खरीद लेंगे दंगा इंश्योरेंस।
प्रदूषण से होनेवाली मौतों पर कोई राजनीतिक दल ना शरमाता। राजनीतिक दल वोट कमा लेते हैं, प्यूरीफायर वाले नोट कमा लेते हैं, टीवी चैनल टीआरपी कमा लेते हैं। अब मरने के लिए आम आदमी है, तो यह उसका प्राबलम है कि वह राजनेता, प्यूरीफायर कारोबारी या टीवी एंकर क्यों ना हुआ। दिल्ली एनसीआर में सुबह कोहरा हो जाता है, प्रदूषण की वजह से। अब तमाम हारर फिल्मों-सीरियल वालों को यहां बुलाया जा सकता है शूटिंग के लिए। कुछ रकम कमा लेगी सरकार।
समस्याएं बहुतों के लिए कमाने के लिए ही हैं। मरने के लिए तो आम इंसान है ना।(युवराज )
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