कुरान में तलवार से धर्मान्तरण का हुक्म !
कुरान में तलवार से धर्मान्तरण का हुक्म !
इस्लाम में किसी प्रकार की जबरदस्ती नहीं है ,और न इस्लाम तलवार के जोर पर किसी को मुसलमान बनाने की शिक्षा देता है . . लोगों ने इस्लाम की अच्छाई से प्रभावित होकर इस्लाम क़बूल किया है . इस्लाम सभी धर्म के लोगों में सद्भावना और मैत्री का सन्देश देता है . अल्लाह की दृष्टि में सभी मनुष्य सामान है . इस्लाम का अर्थ ही शांति है . इसी लिए अल्लाह जालिमों को पसंद नहीं करता .
लोगों को गुमराह करने और इस्लाम का असली रूप छुपाने के लिए इस्लाम के प्रचारक . समर्थक लगभग ऐसी ही बातें कहा करते है। और दुर्भाग्य से मुस्लिम वोटों के लिए तथाकथित सेकुलर इस्लाम को जाने बिना ही ऐसे मक्कार लोगों की हाँ में हाँ मिलाने लगते हैं . लेकिन वास्तविकता इस्लाम के प्रचारकों के दावों के बिलकुल विपरीत है . इतिहास साक्षी है कि जब भी जहाँ भी मुसलमानों की हुकूमत होती है . मुसलमान गैर मुस्लिमों सामने सिर्फ दो ही विकल्प रखते हैं , यातो इस्लाम कबूल करो . या मौत कबूल करो . यही नहीं मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में सामूहिक हत्या . बलात्कार , फिरौती जैसे जघन्य अपराधों की भरमार होना सामान्य सी बात मानी जाती है . मुस्लिम देशों में हमेशा संघर्ष , आतंकवाद और अशांति बनी रहती है . कुछ लोग इसका कारण गरीबी , अशिक्षा , बेरोजगारी , या राजनीतिक व्यवस्था बताते हैं .
लेकिन बहुत जानते होगें कि मुसलमानों का अल्लाह शान्ति की जगह अशांति , आपसी मैत्री की जगह वैमस्य . और प्रेम की जगह हिंसा और आतंक को पसंद करता है . अर्थात अल्लाह अच्छाई को नहीं बुराई को पसंद करता है . और यह बात खुद उस कुरान की आयात और उसकी व्याख्या से साबित होती है .प्रमाण के लिए
1-अल्लाह का ज्ञान कैसा है
मुसलमान कुरान को अल्लाह के द्वारा भेजी गयी किताब बताते है , इनके अनुसार कुरान की हरेक आयत अल्लाह का वचन है , कुरान की इन आयतों में अल्लाह खुद अपनी तारीफ़ में कहता है ,
“वह छुपी और खुली हर बात को जानने वाला तत्वदर्शी और खबर रखने वाला है ” सूरा – अनआम 6:74
“और अल्लाह भूलने वाला नहीं है ” सूरा – मरयम 19:64
and your Lord is never forgetful.} (Maryam 19:64)
2-कुरान की आयतों में रद्दोबदल
परन्तु इस आयत ने अल्लाह की स्मरणशक्ति और सर्वज्ञता की पोल खोल दी है . क्योंकि अल्लाह खुद ही कुरान की आयतें भूल जाता था , और भूली गयी आयात की जगह दूसरी आयत बना देता था , जैसा कि कुरान की इस आयात में अल्लाह ने
कह है ,
” ãóÇ äóäúÓóÎú ãöäú íóÉò Ãóæú äõäúÓöåóÇ äóÃúÊö ÈöÎóíúÑò ãöäúåóÇ Ãóæú ãöËúáöåóÇ Ãóáóãú ÊóÚúáóãú Ãóäøó Çááøóåó Úóáóìٰ ßõáøö ÔóíúÁò ÞóÏöí ”
“हम जो भी आयत मंसूख ( निरस्त ) कर देते हैं ,या भुलवा दी जाती है ,तो उसके अच्छी दूसरी आयत ले आते हैं . ”
“सूरा -बकरा 2:106
“None of Our revelations do We abrogate or cause it to be forgotten, but We substitute something better or similar: knowest thou that God has power over all things?
Qur’an 2: 106].)
3-ननसिख का सही अर्थ
इस आयत में सबसे पहले अरबी का शब्द ” ननसिख – نَنْسَخْ ” आया है , जिसका अर्थ निरस्त करना है यह शब्द अरबी की मूल धातु ( Root Verb ) ” न -स -ख ( ن ـ س ـ خ ) से बनी है . जिसका सही अर्थ रद्द करना (cancell),वापिस लेना स्थानापन्न ( subsitute )करना है अर्थात एक चीज को उसकी जगह से हटा कर उसकी जगह दूसरी चीज रख देना। और नस्ख़ की गयी बात को मंसूख -منسوخ ” कहा जाता है .इस प्रक्रिया को अंगरेजी में ” abrogation ” कहा जाता है ,
, इसके आगे अरबी में 6 वां शब्द ” नुनसिहा – ننسها ” आया है , जिसका सही अर्थ भूल जाना ( forgotten,) होता है , अरबी व्याकरण के अनुसार यह शब्द .प्रथम पुरुष एक वचन अपूर्ण क्रिया (1st person ,singular, imperfect verb) है .लेकिन मुल्ले मौलवी चालाकी से इस शब्द का अर्थ ” भुलवा दी जाती है ( to be forgotten ) कर देते हैं . और यदि अल्लाह को भी कुरान भुलवा दी जा सकती है , तो अल्लाह सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान नहीं बल्कि कोई सामान्य व्यक्ति होगा .
4-कुरान में 113 आयतें मन्सूख़ हैं
इस्लामी मान्यता के अनुसार पूरी कुरान 23 साल में इकट्ठी हुई थी . इस दौरान अल्लाह जब भी कुरान की कोई आयत भूल जाता था ,तो उस आयत की जगह नयी आयत कुरान में शामिल कर देता था ,
इस्लामी विद्वान “अबू बकर मुहम्मद बिन इसहाक बिन खुज़ैमा – : أبو بكر محمد بن إسحاق بن خزيمة ” (837 CE/223 AH[1] – 923 CE/311 AH) .ने अपनी किताब ” अन नासिख़ वल मंसूख – الناسخ والمنسوخ ” में लिखा है कि मौजूदा पूरी कुरान में ऐसी 113 आयतें ऐसी हैं जो निरस्त की गयी आयतों की जगह शामिल की गयी हैं . इनके बारे में कुरान ( सूरा -बकरा 2:106 ) में अल्लाह ने कहा था कि यह आयतें रद्द की गयी आयतों से अच्छी हैं .इस बात से यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि अल्लाह ने कुरान में पहले ख़राब आयतें क्यों क्यों डाली ? जो खराब आयतें हटा कर अच्छी आयते जोड़ने की जरुरत क्यों पड़ गयी ? गलती सुधारना मनुष्य होने का लक्षण है . ऐसा अल्लाह ईश्वर कदापि नहीं हो सकता . कुरान के सिवाय विश्व के किसी धर्म ग्रन्थ में ऐसी मूर्खता की बात नहीं पायी जाती है
5-अच्छी यानी तलवार की आयतें
भुलक्कड़ और अल्प ज्ञानी होने से साथ अल्लाह को अच्छी बातो और कर्मों की जगह बुरी बाते और बुरे कर्म पसंद थे . कुरान में अल्लाह ने कहा की हम बुरी आयतों को रद्द करके अच्छी आयतें लाएंगे , लेकिन अल्लाह ने इसका उल्टा काम किया , अल्लाह ने अच्छी शिक्षा देने वाली आयतों को रद्द करके उनकी जगह जो आयतें कुरान में शामिल कर डालीं उन्हें ” आयतुस्सैफ़ – آية السٌيف ” कहा जाता है . इसका अर्थ ” तलवार की आयतें (verses of sword ) हैं
मिस्र (Egypt) के कुरान और अरबी व्याकरण के विद्वान “अबू जाफर अन नहास -أبو جعفر النحاس “( died 949 / AH 338) ) ने कुरान संबधी अपने शोधग्रन्थ “बयानुल मंसूख फिल्कुरान बि आयतुस्सैफ़ – بيان المنسوخ في القرآن بآية السيف “में कुरान की उन आयतों की सूची दी है ,जिनमे अहिंसा . सदाचार , भाईचारा जैसी अच्छी बातों की शिक्षा दी गयी थी लेकिन उनको रद्द करके कुरान में वह आयतें देदी गयीं ज़िनमे हिंसा , अत्याचार . खूनखराबा , आतंक जैसे अनेकों दुर्गुणों की प्रेरणा दी गयी है . इनकी पूरी सूची इस लिंक में दी गयी है ,(List of Abrogations in the Qur’an)
http://wikiislam.net/wiki/List_of_Abrogations_in_the_Qur%27an
उदाहरण के लिए इन आयतों की तुलना करिये
1.रद्द की गयी आयत
” बेशक जो लोग चाहे वह यहूदी ,ईसाई या तारों को पूजने वाले क्यों न हो ,यदि ईश्वर और उसके न्याय पर विश्वास करके शुभ कर्म करेंगे तो उनको ईश्वर की तरफ से अच्छा प्रतिदान मिलेगा , और न तो उनको कोई भय होगा , और न वह कभी दुखी होंगे ” सूरा -बकरा 2:62
2-बदली हुई आयत
” और जो कोई इस्लाम के अलावा कोई दूसरा धर्म पसंद करेगा तो , तो वह कभी कबूल नहीं होगा , और ऐसे व्यक्ति को अंत में नुकसान उठाना पड़ेगा ” सूरा -आले इमरान 3:85
6-कुरान में तलवार की आयतें क्यों ?
वास्तव में मुसलमानों का अल्लाह न तो कुरान की आयतें भूल जाता था और न लोगों को भुलवा देता था . परन्तु कुरान में शांत्ति और सद्भाव की शिक्षा देने वाली आयतों को रद्द करके उनकी जगह तलवार यानी हिंसा की आयते शामिल करने के पीछे यह कारण है ,
मुहम्मद साहब विश्व के सभी लोगों का धर्म परिवर्तन करा के इस्लामी हुकूमत कायम करना चाहते थे , इसके लिए उन्होंने पहले तो खुद को अल्लाह का रसूल और कुरान को अल्लाह की किताब घोषित कर दिया , फिर लोगों कुरान की आयतें सुना सुना कर लोगों को इस्लाम कबूल करने ,और मुसलमान बनाने की कोशिश करने लगे , लेकिन जब कुरान की बेतुकी , अवैज्ञानिक बातें लोगों ने सुनी तो उन्हों कुरान को अल्लाह की वाणी नहीं , किसी विक्षिप्त व्यक्ति की बकवास मान कर इस्लाम से इंकार कर दिया . तब बौखला कर मुहम्मद साहब ने लोगों को जबरन मुसलमान बनाने के कुरान में यह तलवार की आयतें शामिल करा दीं।
इन आयतों में सभी गैर मुस्लिमों को मुसलमान बनाने के लिए ,लूट , बलात्कार , फिरौती , जनसंहार और आतंकवाद फ़ैलाने को जायज और धार्मिक कार्य बताया गया है , इसीलिए इस्लाम के जन्म से लेकर आज तक इन्हीं आयतों का पालन करते हुए गैर मुस्लिमों को मुसलमान बनाने में लगे हुए हैं . नहीं तो जिस भी व्यक्ति के पास थोड़ी सी भी बुद्धि होगी वह स्वेच्छा से कभी मुसलमान नहीं बनेगा ,
इसलिए जब भी कोई इस्लाम का एजेंट आपके सामने इस्लाम की तारीफ़ करे या आपको इस्लाम की तरफ खींचने का प्रयत्न करे तो आप उसे वही जवाब दें , जो श्री गोविन्द सिंह के 9 साल के पुत्र जोरावर सिंह और 7 साल के पुत्र फ़तेह सिंह ने काजी के सामने तब कहा था , जब सरहिंद के काजी ने उनसे इस्लाम कबूल करने औ कलमा पढने को कहा था , यद्यपि बच्चे छोटे थे , लेकिन उन्होंने कहा था
“हम तेरे प्रस्ताव पर थूकते हैं ,और इस्लाम कबूल करने से मौत को स्वीकार करने को बेहतर मानते हैं ”
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