जो अष्टांग योग से अपने जीवन को शुद्ध कर लेता है, वह ब्रह्म वैज्ञानिक बन जाता है..आचार्य प्रभामित्र
महरौनी(ललितपुर)..महर्षि दयानंद सरस्वती योग संस्थान आर्य समाज महरौनी के तत्वावधान में विगत 2 वर्षों से संचालित मंत्री आर्यरत्न शिक्षक लखनलाल आर्य द्वारा आयोजित आर्यों का महाकुंभ में दिनांक 1वा 2अक्तूबर 2022को “ब्रह्म विज्ञान” विषय पर मुख्य वक्ता आचार्य प्रभामित्र अरण्य कुंज आश्रम पंचकूला ने कहा कि संसार के सभी ज्ञान विज्ञान ब्रह्म विज्ञान में समाहित है। इसे ईश्वरीय ज्ञान या वेद ज्ञान भी कहते हैं।ब्रह्म =ईश्वर को शास्त्र में तत्र निरातिशयम_ सर्वज्ञ विजम् अर्थात् सब सत्य विद्यायों का अतिशय करके सब का बीज है।
ब्रह्म से सब सत्य विद्या उत्पन्न हुई हैं।
ब्रह्म का स्वरूप – सत चित आनंद है।
जिसकी सत्ता है, चेतन है, और आनंद भी है। निराकार – जिसका कोई आकर नहीं है। इस भौतिक इंद्रियों से दिखाई नहीं देता है। ज्ञान चक्षु से दिखाता है। सर्वज्ञ – सब कुछ जानने बाला है। ईश्वर मन के भी मन है।
सर्वशक्तिमान – ब्रह्म अपने कार्य में किसी की सहायता नहीं लेता है , ब्रह्म 5 प्रकार के कार्यों को करता है, श्रृष्टि का बनाना ,चलाना और विनाश करना,वेद ज्ञान देना,और जीवात्माओं को उचित कर्म फल देना।
इस प्रकार अपने कार्यों को ब्रह्म विज्ञान पूर्वक अपने सामर्थ से ही करता है।
न्यायकारी और दयालु – ब्रह्म जब न्याय करता है तो उसके पीछे दया ही होती है। बुरे कर्मो को जीव जब करता है। तो उसका परिणाम दु:खरूप देकर परमात्मा न्याय करता है। तब जीव दुःखी होकर आगे पाप न करने का व्रत लेता है, यही परमात्मा की दया है।
न्याय और दया दोनों साथ साथ होता है।
अजन्मा – जो कभी जन्म नहीं लेता है। सदा अपने ही स्वरूप में बना रहता है।
अनंत – जिसका अंत नहीं होता है।
अनादि – जिसका न आरंभ होता है।
अनुपम – जिस ब्रह्म की किसी प्रकार की उपमा नहीं दी जा सकती है।
सर्वाधार – जो सबका आधार है। सर्वेश्वर – सभी पथार्थों का स्वामी है।
सर्वव्यापक – ब्रह्मांड के सभी पदार्थो में उपस्थित है । ओतप्रोत है।
सर्वांतरायमी – जीव और प्रकृति या श्रृष्टि सभी की आत्मा है, सब कुछ जानने वाले हैं।
अजर – जड़ा या बुढ़ापा से रहित,अमर – जो कभी मृत्यु को प्राप्त नहीं होता है।अभय – जिसे किसी प्रकार का भय नहीं होता है।नित्य – सदा रहने वाला एक रस , पवित्र – अत्यंत शुद्ध, और श्रीष्टि करता है ।
इस प्रकार से ब्रह्म को जान कर और उसी की उपासना करना चाहिए । तभी मानव को शुद्ध ब्रह्म विज्ञान प्राप्त होता है।
कार्यक्रम में आचार्या आवृति प्रभा पंचकूला, कमला हंस, ईश्वर देवी, अदिति आर्या और दया आर्या हरियाणा ने सुंदर भजनों की प्रस्तुति दी। व्याख्यान में प्रो डॉ व्यास नंदन शास्त्री वैदिक बिहार, अनिल नरूला दिल्ली,प्रेम सचदेवा दिल्ली,युद्धवीर आर्य,भोगी प्रसाद म्यांमार,चंद्र कांता आर्या,प्रो डॉ वेद प्रकाश शर्मा बरेली,परमानंद सोनी आर्य भोपाल,सुमन लता सेन शिक्षिका,आराधना सिंह शिक्षिका,रामसेवक निरंजन शिक्षक,रामकुमार सेन अजान,महेश खटीक शिक्षक,अवधेश प्रताप सिंह बैंस,पारसमणी पुरोहित,अवध बिहारी तिवारी केंद्रीय शिक्षक,विवेक सिंह शिक्षक गाजीपुर,सहित सम्पूर्ण विश्व से आर्य जन जुड़ रहे हैं। कार्यक्रम का संचालन मंत्री आर्यरत्न शिक्षक लखन लाल आर्य एवम आभार प्रधान पुरुषोत्तम मुनि वानप्रस्थ ने किया।