*तपस्वी जीवन*
*तपस्वी जीवन*
स्मृतिकार कहते हैं कि जिस मार्ग से सम्राट यात्रा कर रहा हो और उसी मार्ग पर सम्राट को गुरुकुल का ब्रह्मचारी आता हुआ दिखाई दे तो सम्राट को उस ब्रह्मचारी के लिए उस मार्ग को खुला छोड़ देना चाहिए।
जिस आयु में आपके बच्चे आपके साथ खेल खेलते हैं मेला घूमने जाते हैं अपनी इच्छानुसार माँ से रसोई में पकवान बनवाते हैं थोड़ी सी समस्या आती है तो माँ के आँचल में छिप जाते हैं बचपन के पूरे सुखों का आनन्द भोगते हैं जी भरकर बिस्तर पर धूप आने तक सोते हैं। और उठकर आपसे ब्रेड, चाऊमीन, चाय, डोसा माँगने लगते हैं और आप भी उनकी इच्छा पूर्ण करने में लग जाते हैं।
ठीक उसी समय गुरुकुल के विद्यार्थी अपने दो वस्त्रों कटिवस्त्र और उत्तरीय में तपस्वी जीवन व्यतीत कर रहे होते हैं उनकी दिनचर्या पौष की कड़ाकेदार सर्दियों में भी प्रातः ४:०० से प्रारम्भ हो जाती है प्रभु प्रार्थना, आचार्य का आशीर्वाद, व्यायाम, यज्ञ आदि से निवृत्त होकर ऋषियों के ग्रंथों का अध्ययन करने लग जाते हैं। पूरा दिन आचार्य के निर्देशन में ही निकल जाता है। रात्रि में ९:३० तक विश्राम होता है।
अष्टाध्यायी के ४००० सूत्रों को कंठस्थ करना और व्याकरण के अध्ययन काल तक उन्हें स्मरण रखना करना बहुत टेढ़ी खीर होती है कुछ भी क्रियाकलाप चल रहा हो उसमें भी ब्रह्मचारी सूत्र दोहराते रहते हैं और साथ साथ अन्य ग्रंथों का भी अध्ययन करते रहते हैं ।
दिन का आरंभ ( प्रातरग्निं प्रातरिन्द्रं हवामहे) और अंत (यज्जाग्रतो दूरमुदैति दैवं तदु सुप्तस्य तथैवैति ) वेद की ऋचाओं से ही होता है। अधिकांश समय मौन रहते हुए ही बीतता है। जो भी भोजन बनता है उसी को प्रसाद समझकर ग्रहण करते हैं। न्यूनतम साधनों में ही जीवन निर्वाह करते हैं जैसा पढ़ते हैं तदनुरूप आचरण करते हैं दोष हो जाने पर दंड पाते हैं, प्रायश्चित करते हैं तब जाकर जान पाते हैं कि जीवन का लक्ष्य क्या है ? सनातन धर्म क्या है ? राष्ट्र के प्रति आचार्य के प्रति, माता पिता के प्रति, ऋषियों के प्रति हमारे क्या कर्तव्य हैं।
और एक आपके बच्चे हैं! जो उठते ही आपके मोबाइल पर आपके ही द्वारा सुबह सुबह से ही सुनने लगते हैं
“कुंडी लगा ले सइयां आ तुझे जन्नत दिखाऊँगी”
नंगे नंगे दृश्य देखकर गाली गलौच सुनकर, एक दूसरे को गाली देकर उल्टा सीधा कचरा खाकर उल्टा सीधा पढ़कर बिना संयम के मौज मस्ती करते हुए सो जाते हैं और फिर रात्रि में विपरीत लिंगी के सपने देखते हैं और अपने शरीर का नाश कर रहे होते हैं ।
आपके बच्चों के स्कूल काॅलेज में क्या क्या चल रहा है आप सबसे भलीभांति परिचित हैं। ऐसी स्थिति में निर्माण नहीं विनाश ही होता है, और हो रहा है आप देख ही रहे हैं।
बचपन के सुखों को तिलाञ्जलि देनी पड़ती है,
तब जाकर जीवन ज्ञान से सुगंधित हो पाता है।
चित्र – चिम्मन आर्य आर्षवेद गुरुकुल मुरसदपुर ग्रेटर नोएडा के ब्रह्मचारी 🙏