राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा की कॉन्ग्रेस के इतिहास का काला सच , भाग 6

हम सभी भली प्रकार जानते हैं कि महात्मा गांधी ने सरदार भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी साथियों को फांसी से बचाने का गंभीर प्रयास नहीं किया था । इसका कारण केवल एक था कि वह और उनकी पार्टी कांग्रेस इन क्रांतिकारियों को क्रांतिकारी या स्वाधीनता संग्राम का सेनानी न मानकर आतंकवादी मानती थी अर्थात क्रांतिकारियों को गांधीजी उसी दृष्टिकोण से देखते थे जिस दृष्टिकोण से अंग्रेज देखते थे। दुर्भाग्य का विषय है कि कांग्रेस आज तक अपने क्रांतिकारियों का उचित सम्मान नहीं कर पाई है। वह देश को आजाद कराने के लिए केवल और केवल गांधीवादी आंदोलन को ही प्रमुख कारण मानती है और क्रांतिकारियों के आंदोलन की अवहेलना करती है।
देश के क्रांतिकारियों के प्रति उपेक्षा की नीति रखने वाले गांधीजी के बारे में यह भी एक कुख्यात सत्य है कि उन्होंने अब्दुल रशीद को स्वामी श्रद्धानंद की हत्या करने के लिए यंग इंडिया नामक समाचार पत्र में लेख के माध्यम से आतंकी कार्यवाही के लिए उकसाया अथवा प्रोत्साहित किया था।
स्वामी श्रद्धानंद के हत्यारे को अब्दुल रशीद को गांधी ने 1926 में अपना भाई बताया था? उनकी इस प्रकार की सोच से पता चलता है कि वह स्वामी श्रद्धानंद जी जैसे क्रांति पुरुष के प्रति कैसा दृष्टिकोण रखते थे?
अब्दुल रशीद ने भारतवर्ष में शुद्धि का प्रचार करने वाले और उन हिंदुओं को जो मुस्लिम हो गए थे,की घर वापसी कराने वाले स्वामी श्रद्धानंद की चांदनी चौक दिल्ली में हत्या की थी। उस समय गांधी जी ने यह भी कहा था कि स्वामी श्रद्धानंद ने अपनी हत्या के लिए भाई अब्दुल रशीद को अपने आप ही उकसाया था। कुल मिलाकर स्वामी श्रद्धानंद जी के लिए श्रद्धांजलि के 2 शब्द भी गांधी के पास नहीं थे। यह वही स्वामी श्रद्धानंद थे जिन्होंने 8 अप्रैल 1915 को सबसे पहले मिस्टर गांधी के स्थान पर महात्मा गांधी का सम्मानपूर्ण संबोधन गांधी को दिया था और महाविद्यालय ज्वालापुर में उनका भव्य और हार्दिक स्वागत व अभिनंदन किया था।
कांग्रेस का प्रारंभ से ही है प्रयास रहा कि सभी शहीदों के बलिदानों को अपेक्षाकृत कम करके आंका जाएं अथवा अन्य शहीदों को बिल्कुल उपेक्षित कर दिया जाए। अपनी इसी सोच के चलते यह मिथक गढ़ा गया कि गांधीजी ने बिना खड़ग और बिना ढाल के देश को आजादी दिलाई । ऐसा कहकर लाखों बलिदानियों के बलिदान को कांग्रेस ने एक झटके में समाप्त कर दिया।
यही कारण है कि देश के सभी क्रांतिकारियों की उपेक्षा करके कांग्रेस के बड़े नेता नेहरू, राजीव, इंदिरा गांधी इन सब के स्मारक बने हैं। सरदार वल्लभ भाई पटेल के साहित्य पोस्टर पर 1977 तक प्रतिबंध रहा। यह बात आज तक समझ में नहीं आई कि वर्ष 1950 में सरदार पटेल द्वारा गुर्जरों के लिए जो विशेष स्वायत्तता कानून बनाया गया था वह लागू क्यों नहीं किया गया।
जम्मू कश्मीर में रहने वाले गुर्जर आज भी प्राणपण से अपने देश की रक्षा करते हैं चाहे वह मुस्लिम धर्म को ही क्यों न स्वीकार कर चुके हों।कश्मीर के गुर्जरों को अधूरा आरक्षण कांग्रेस ने क्यों दिया?
1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बहादुर शाह जफर का एक रिश्तेदार वलीदाद खान मालागढ़, जिला बुलंदशहर में एक छोटा सा नवाब था। उसका प्रधान सेनापति इंदर सिंह राठी गुर्जर था। बाद में अंग्रेजों ने इस रियासत पर भी कब्जा कर लिया था। तत्कालीन नवाब के प्रधान सेनापति इंदर सिंह राठी गुर्जर का पुत्र हमीर सिंह था। हमीर सिंह का बेटा विजय सिंह पथिक था। विजय सिंह पथिक ने आजीवन भारतवर्ष की स्वतंत्रता के लिए कार्य किया। विजय सिंह पथिक के जीवन को और उनके कार्यों को कांग्रेस ने भुला दिया। यद्यपि इतिहास का यह एक सर्वमान्य सत्य है कि देश में सत्याग्रह की शुरुआत करने वाले विजय सिंह पथिक को गांधी जी स्वयं भी अपना राजनीतिक गुरु मानते थे। गांधी जी और कांग्रेस का मार्गदर्शन करने वाले इस महानायक को इतिहास के पृष्ठों में तनिक सा भी स्थान नहीं दिया गया। कांग्रेस की देश के क्रांतिकारियों और महा नायकों के प्रति कृतज्ञता की स्थिति को देखकर लज्जा को भी लज्जा आ जाएगी । निश्चय ही इन पापों को देखकर कांग्रेस के बारे में आजकल देश के जनमानस की यह सोच बन चुकी है कि उसे जितना भी नीचे गाड़ा जा सके उतना गाड़ दिया जाना चाहिए।
देश के जनमानस को जैसे-जैसे कांग्रेस का यह सच पता चलता गया वैसे वैसे ही उसका मोह भंग इस संगठन से होता चला गया। अब सोशल मीडिया के माध्यम से नई पीढ़ी इस संगठन के पापों को और भी अधिक खोद खोद कर देख रही है। जैसे जैसे नए नए तथ्य सामने आ रहे हैं वैसे वैसे ही लोग इसके पापों से घृणा करने लगे हैं। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी नई पीढ़ी को अपने साथ लगाने में असफल हो चुके हैं। वह जितना ही कांग्रेस को आजादी दिलाने वाले संगठन के रूप में लोगों के सामने प्रस्तुत करते हैं वैसे ही लोग उन पर मजे लेने लगते हैं। अच्छी बात होगी कि यह इस समय कांग्रेस अपना आत्म मंथन करे जो उसने पाप किए हैं उन पापों को जनता के सामने आकर खुले मन से स्वीकार करे।
।राजीव के नाम पर कितनी योजना, इंदिरा गांधी के नाम पर कितनी योजना, नेहरू के नाम पर कितनी योजना, परंतु जो राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र में जनजागृति का कार्य करने में अग्रणी भूमिका निभाने वाला विशाल व्यक्तित्व का धनी विजय सिंह पथिक का नाम रहा, उसके नाम पर कहीं कोई स्मारक, कोई योजना, कोई सरकारी भवन अथवा कोई संग्रहालय क्यों नहीं है?

राहुल जी! तनिक सुनें। मिथिला के राजपंडित गणपति के पुत्र विद्यापति अपने पिता की भांति धर्मशास्त्रों के ज्ञाता और परमधार्मिक व्यक्ति थे। उन्होंने किशोर अवस्था में ही काव्य साधना आरंभ कर दी थी। उनकी कविताएं सुनकर मिथिला नरेश शिवसिंह मंत्रमुग्ध हो उठते थे।

राजा प्राय: विद्यापति को अपने राजभवन में आमंत्रित कर उनसे धर्म, संस्कृति एवं साहित्य संबंधी वात्र्तालाप किया करते थे। एक दिन राजा ने कहा-‘‘पंडितराज! आपने सर्वधर्म शास्त्रों का व साहित्य का गहन अध्ययन किया है। शास्त्रों में सच्चे मानव के क्या लक्षण बताये गये हैं?’’

महाकवि विद्यापति ने बताया-‘‘सदगुणों से युक्त व्यक्ति ही सच्चा मानव कहलाने का अधिकारी है। जो विद्यावान, विवेकी, पुरूषार्थी, संयमी व सदाचारी हो, वही सच्चा पुरूष कहलाने का अधिकारी है। धर्मशास्त्रों में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों पुरूषार्थों की प्राप्ति मानव के लिए आवश्यक मानी गयी है। विवेकी, बुद्घिमान, संयमी और कत्र्तव्यनिष्ठ अर्थात पुरूषार्थी व्यक्ति ही इन चारों कत्र्तव्यों की पूत्र्ति करने की क्षमता रखता है। मूढ, आलसी, असंयमी और दुराचारी तो इनमें से एक की भी प्राप्ति नही कर सकता। अत: धर्मशास्त्रों में इन सब सद्गुणों से रहित पुरूष को पूंछ रहित पशु की संज्ञा दी गयी है। ’’ महाकवि के शब्दों में अदभुत चेतना थी। राजा समझ गया था कि एक राजा के लिए भी कैसे गुणों की आवश्यकता है? वह समझ गया कि जब एक साधारण व्यक्ति के लिए इतने गुणों का होना आवश्यक है तो राजा के लिए तो ये गुण प्राथमिकता पर होने चाहिए।

राहुल गांधी के साथ समस्या यह है कि उनके पास कोई ऐसा व्यक्ति नही है जो राजपंडित विद्यापति का स्थान ग्रहण कर सके। उनका दुर्भाग्य है कि उन्होंने विद्यापति वाली संस्कृति में प्रारंभ से ही विश्वास नही किया। उनकी ‘माता रानी’ सोनिया गांधी की छत्रछाया में वह पले बढ़े हैं, इसलिए उनके संस्कारों में विदेशीपन दिखायी देना आवश्यक है।

आज कांग्रेस में नवजीवन का संचार करने की आवश्यकता है। उसके लिए नायक का परिश्रमी, पुरूषार्थी और संघर्षशील होना आवश्यक है। राहुल गांधी को समझना चाहिए कि जैसे एक गेंद आकाश की ओर तभी तक जाती है जब तक उसके पीछे हमारे हाथ की शक्ति कार्य करती रहती है। जैसे ही हमारे हाथ की शक्ति या बल क्षीण होता है वैसे ही वह गेंद पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण बल के कारण तेजी से धरती की ओर लौट आती है। ऐसे ही किसी परिवार के या राष्ट्र के पूर्वजों के दिये संस्कार और पुण्य कार्यों का बल होता है जो अपने परिवार को या राष्ट्र को ऊंचाई की ओर ले जाते हैं। वे संस्कार जितनी देर तक कार्य करते रहते हैं-उतनी देर तक वह राष्ट्र ऊंचाई की ओर दौड़ता रहता है। इस देश के पास अनेकों ऋषियों, सम्राटों और श्रीराम व कृष्ण जैसे दिव्य महामानवों के पुण्यों का प्रताप है जिसके कारण यह आज भी विश्व में सम्माननीय हैं। हर देश अपनी विरासत के आधार पर ही आगे बढ़ता है। विरासत व्यक्ति का सम्बल होती है और उसके लिए पथ प्रशस्त किया करती है।
क्रमश:

देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट
चेयरमैन : उगता भारत समाचार पत्र

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