यज्ञ के माध्यम से हो सकती है असाध्य बीमारियों की चिकित्सा : दयाशंकर आर्य

संभल। ( ज्योति वसु आर्य ) भारत स्वाभिमान के राज्य संगठन मंत्री उत्तर प्रदेश (पश्चिम) दयाशंकर आर्य का कहना है कि मधुमेह, रक्तचाप, सरदर्द, पुराना जुखाम, बुखार एवं जोड़ों के दर्द सहित विभिन्न शारीरिक व्याधियों का उपचार यज्ञ के माध्यम से किया जा सकता है।
यज्ञ के प्रति पूरी तरह समर्पित श्री आर्य कई प्रकार के यज्ञ करने में पारंगत हैं। उनका कहना है कि यज्ञोपैथी के माध्यम से असाध्य बीमारियों को दूर किया जा सकता है। आयुर्वेदिक औषधियों का यज्ञ करने से उनका धुम्र नेनोमेडिसिन के रूप में प्रभावकारी होता है।यह प्रभाव आसपास के वातावरण में उपस्थित समस्त प्राणियों पर सकारात्मक होता है। सर्व रोग निवारण के लिए गुग्गल, वच, गंध, नीम के पत्ते, आक के पत्ते, अगर, राल, देवदारू एवं मसूर का उपयोग यज्ञ में करना चाहिए।
श्री आर्य ने कहा कि प्राचीन काल से यज्ञ के माध्यम से हमारे ऋषि लोग स्वस्थ रहते थे और समाज को भी स्वस्थ रखते थे। जबसे यह परंपरा टूट गई है तब से देश में विभिन्न प्रकार की बीमारियां पैदा हो गई है।
उन्होंने कहा कि यदि हम आज भी यज्ञ और प्राकृतिक वन औषधियों के प्रति समर्पित हो जाएं तो समाज में व्यापक परिवर्तन आ सकता है। श्री आर्य का मानना है कि टाइफाईड के लिए नीम, चिरायता, पितपापडा एवं त्रिफला, ज्वर के लिए अजवायन, जुखाम एवं सरदर्द के लिए मुनक्का, दिमाग तेज करने के लिए शहद एवं चंदन, वात रोग के लिए पिप्पली, मनोविकार के लिए गुग्गल एवं अपामार्ग, मानसिक उन्माद के लिए सीताफल के बीज एवं जटामांसी, पीलिया के लिए देवदारू, चिरायता, नागरमोथा, कुटकी एवं वायविडंग, मधुमेह के लिए गुग्गल, लोबान, जामुन की छाल एवं करेला के डंठल, चित्त भ्रम के लिए कचूर, खस, नागरमोथा, महुआ, सफेद चंदन, गुग्गल, अगर, बड़ी ईलायची, नरवी एवं शहद तथा टीबी के लिए गुग्गल, सफेद चंदन, अडूसा एवं कपूर की यज्ञ में आहूति देने से लाभ होता है।
इसी प्रकार मलेरिया के लिए गुग्गल, लोबान, कपूर, कचूर, हल्दी, दारूहल्दी, अगर, वायविडंग, जटामांसी, वच, देवदारू, कठु, अजवायइन एवं नीम के पत्ते, निमोनिया के लिए पोहकर, वच, लोबान, गुग्गल एवं अडूसा, जुखाम के लिए खुरासानी अजवायइन, जटामांसी, पसमीना कागज एवं लाल बूरा, सायनस के लिए बरगद के पत्ते, तुलसी, नीम के पत्ते, वायविडंग एवं सहजना छाल, कफ के लिए बरगद के पत्ते, तुलसी, वच, पोकर एवं अडूसा, सरदर्द के लिए काले तिल एवं वायविडंग, खसरे के लिए गुग्गल, लोबान, नीम के पत्ते, गंधक, कपूर, काले तिल एवं वायविडंग, दमे के लिए अदरक के पत्ते, तुलसी, वच, पोहकर एवं अडूसा तथा कैंसर के लिए गूलर, अशोक, अर्जुन, लोध्र, माजूफल, दारूहल्दी, खोपरा, तिल, जौ, चिकनी सुपारी, शतावर, काकजंगा, मोचरस, खस, मंजिष्ट, अनारदाना, सफेद चंदन, लाल चंदन, गंधा, विरोजा, नरवी, जामुन पत्ते, धाय के पत्ते एवं केसर की आहुति दी जाती है।
श्री दयाशंकर आर्य वैदिक विधि विधान से यज्ञ को कराने के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने इस परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए अपने पिताजी के नाम से अपने गांव भीकमपुर जैनी में एक विद्यालय टीकम सिंह आर्य पूर्व माध्यमिक विद्यालय भीकमपुर जैनी भी चलाया हुआ है, जिसमें बच्चों को प्रारंभ से ही वैदिक संस्कार दिए जाते हैं।

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