देश पर सांस्कृतिक हमला और दुर्योधन की चौपाल के विधायक
कुछ समय पहले शिक्षा बचाओ आंदोलन समिति के द्वारा भारत के उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दाखिल की गई थी। जिसमें समिति ने माननीय न्यायालय से अनुरोध किया था कि बी0ए0 (ऑनर्स) इतिहास के द्वितीय वर्ष में पढ़ाया जाने वाला वह निबंध प्रतिबंधित किया जाए जिसका शीर्षक ‘थ्री हंड्रेड रामायण वीथ फाइव एग्जांपल’ था। इस निबंध के लेखक ए0 के0 रामानुजन रहे थे।
इस निबंध के माध्यम से भारतीय जनमानस में बहुत ही श्रद्धा और सम्मान प्राप्त रामायण के राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान जैसे चरित्रों पर आपत्तिजनक टिप्पणी की गई थी। लेखक ने काल्पनिक आधार पर और अपनी विद्वता का झूठा और पाखंड पूर्ण प्रदर्शन करते हुए अपने इस निबंध में लिखा था कि रावण और मंदोदरी की अपनी कोई संतान नहीं थी। संतान न होने की दशा में दोनों ने मिलकर शिवजी की आराधना की। शिवजी ने उनकी पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें आम खाने को दिया। जिसके खाने से उनको संतान हो सकती थी। तब गलती से उस आम को अकेले रावण ने ही खा लिया । जिससे वह गर्भवती हो गया। (वास्तव में किसी भी पुरुष का किसी भी तरीके से गर्भवती होना संभव नहीं है ,परंतु इस प्रकार की अवैज्ञानिक और अतार्किक बातों को भारत के अन्य प्राचीन साहित्य में भी देखा जा सकता है।) उस निबंध का लेखक आगे कहता है कि दु:ख से बेचैन रावण ने छींक मारी और सीता का जन्म उसकी छींक मारने से ही हो गया। इस निबंध के लेखक ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि इस प्रकार सीता रावण की पुत्री थी। रावण ने उसे जनकपुरी के एक खेत में त्याग दिया था।
निबंध के लेखक ने हनुमान जी पर भी काल्पनिक टिप्पणी की है। उसने लिखा है कि हनुमान एक छुटभैया बंदर था। जिस हनुमान जी के ब्रह्मचर्य की सारा हिंदू समाज ही नहीं विश्व भर के विद्वान भी मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हैं, उसके लिए इस निबंध का लेखक कहता है कि वह एक कामुक व्यक्ति था। वह लंका के शयनकक्षों में स्त्रियों और पुरुषों को आमोद – प्रमोद करते हुए बड़ी निर्लज्जता से देखता- फिरता था।
लेखक का यह भी कहना है कि रावण को राम ने नहीं, लक्ष्मण ने मारा था। रावण और लक्ष्मण ने सीता के साथ व्यभिचार किया था। लेखक का यह भी कहना है कि माता अहिल्या तो योनि की एक मूर्ति थी। जिसका इंद्र के साथ लज्जा पूर्ण ढंग से योन व्यभिचार हुआ।
भारत की युवा पीढ़ी को भारत के वेद आदि धर्म शास्त्रों और आर्ष ग्रंथों के अध्ययन से काट दिया गया है। जिसके चलते इस प्रकार के लेखों को या निबंधों को हमारी आज की युवा पीढ़ी बहुत शांत भाव से पढ़ रही है। नई-नई रिसर्च के नाम पर या शोध प्रबंध लिखे जाने के नाम पर इस प्रकार की मूर्खतापूर्ण, अवैज्ञानिक और अतार्किक बातों को नई पीढ़ी मॉडर्निटी या खुलेपन के नाम पर बड़ी शीघ्रता से पकड़ रही है। आज इसका कारण खोजने की आवश्यकता है। यदि कारण खोजने की तह में जाएंगे तो पता चलेगा कि आज की शिक्षा नीति ने हमारे युवा वर्ग को पैसे कमाने की मशीन बनाकर रख दिया है। यह एक सर्वमान्य सत्य है की मशीन संवेदनाशून्य और हृदयहीन होती है।
धर्मनिरपेक्षता के नाम पर जब हिंदू संस्कृति कोई आर्य संस्कृति को पढ़ना भी निषेध कर दिया जाता हो तो उसके वेद आदि धर्म शास्त्रों को पढ़ने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। एक षड्यंत्र के अंतर्गत वेद आदि सभी आर्य धर्म ग्रंथ रद्दी की टोकरी में फेंक दिए गए हैं या यह मान लिया गया है कि इनसे आज के समय में कुछ भी लाभ नहीं हो सकता। इस प्रकार आज के विद्यार्थियों को भारत के साथ जोड़ने की शिक्षा की पहली अनिवार्यता भंग कर दी गई है।
इससे भी बड़ा अपराध आज की शिक्षा नीति ने यह किया है कि वह मानव को मानव बनाने पर बल नहीं देती। वह हृदयहीन पत्थर की मूर्ति बनाकर युवा पीढ़ी का निर्माण कर रही है। इसका सबसे अधिक घातक प्रभाव यह देखने में आ रहा है कि भारत का युवा भारत से कट गया है। करण है कि उपरोक्त निबंध पर ना तो राजनीतिक स्तर पर कोई हलचल हुई और ना ही सामाजिक स्तर पर किसी प्रकार की हलचल देखने में आई। ऐसा नहीं है कि केवल एक यह निबंध ही भारत की संस्कृति को अपमानित करने के लिए लिखा गया हो, इसके अतिरिक्त अनेक ऐसी पुस्तकें भी लिखी जा चुकी हैं जो भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के चरित्रों को बदनाम कर रही हैं।
भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के नायकों को अपमानित करने के इस षड्यंत्र में मुस्लिम इसाई दोनों मिलकर भारत के हरिजनों को उकसाने का काम कर रहे हैं फोन करो बहुत बड़ी मात्रा में दलित साहित्य प्रकाशित किया जा चुका है। जिसके माध्यम से भारतीय संस्कृति का विनाश करने की प्रक्रिया अपनाई जा रही है। नए नए लेखक निकल कर आ रहे हैं और वेदों के मंत्रों या अन्य आर्ष ग्रंथों के श्लोकों का मनमाना अर्थ निकाल रहे हैं। सरकार इस ओर से पूर्णतया अपनी उदासीनता प्रकट कर रही है। कितने ही हिंदू धर्माचार्य प्रमुखों को इस बात की जानकारी है कि भारतीय संस्कृति को नष्ट करने का कितना घातक षडयंत्र कार्य कर रहा है और किस प्रकार ऐसे साहित्य का निर्माण किया जा रहा है जो भारत को समूल नष्ट करने के लिए एटम बम का काम करेगा।
हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हिरोशिमा नागासाकी पर जो बम वर्षा हुई थी उससे 3 लाख लोगों के मारे जाने का आंकड़ा जारी किया गया था। पर जब देश का बंटवारा सांप्रदायिक उन्माद के नाम पर हुआ था तो सरकारी आंकड़ों के अनुसार उस समय 11 लाख लोग सांप्रदायिक उन्माद के उस एटम बम से मारे गए थे। सरकार के इस आंकड़े से अलग जो आंकड़े अनुमान के आधार पर आए थे उनमें इन मरने वालों की संख्या 20 लाख से भी अधिक बताई गई थी। कुल मिलाकर कहने का अभिप्राय यह है कि सांप्रदायिक उन्माद एटम बम से भी अधिक घातक होता है। भारतवर्ष में जो लोग 2047 में देश का बंटवारा करके फिर एक मनचाहा देश लेने की योजना बना रहे हैं या सारे भारत को ही समाप्त कर इस्लामिक रंग में रंग देने की योजनाओं पर काम कर रहे हैं उनका सांप्रदायिक उन्माद ना तो रुका है और ना ही थमा है। सांप्रदायिक उन्मादियों की नई योजना भारत के इतिहास और सांस्कृतिक परंपराओं को नष्ट करने की है। ऐसे में सरकार और हिंदू समाज के धर्माचार्य प्रमुखों को इनके इस आक्रमण का प्रतिरोध करने के लिए कार्य करना चाहिए।
कुछ समय पहले तक एनसीईआरटी की कक्षा 11 की पुस्तक ‘मध्यकालीन भारत’ में हमारे विद्यार्थियों को यह पढ़ाया जाता रहा था कि “गुरु तेग बहादुर ने असम से लौटने के बाद शेख अहमद सरहिंद के एक अनुयायी हाफिज आमिद से मिलकर पूरे पंजाब प्रदेश में लूटमार मचा रखी थी और सारे प्रांत को उजाड़ दिया था।”
इस एक वाक्य से ही कितना जहर गुरु तेग बहादुर जी के विरुद्ध आज के युवाओं में फैल सकता है , यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। इस एक वाक्य से ही आज के युवाओं की धारणा गुरु जी के प्रति यह बन सकती है कि वह एक आतंकवादी किस्म के व्यक्ति थे, जिनके आतंकवाद को समाप्त कर शांति व्यवस्था स्थापित करने के लिए तत्कालीन मुगल सत्ता ने उनके विरुद्ध कार्यवाही की होगी।
इस पुस्तक में गुरु जी के विषय में यह भी लिखा गया है कि गुरु को फांसी उनके परिवार के कुछ लोगों की साजिश का परिणाम थी । जिसमें और लोग भी सम्मिलित थे। जो गुरुजी के उत्तराधिकार के विरुद्ध थे। किंतु यह भी कहा जाता है कि औरंगजेब गुरु तेग बहादुर से इसलिए नाराज था, क्योंकि उन्होंने कुछ मुसलमानों को सीख बना लिया था।
सांप्रदायिक तुष्टीकरण के नाम पर छद्म धर्मनिरपेक्षता की आत्मघाती नीति को अपनाना भारत की आज की सबसे बड़ी समस्या है। इसे आत्मघाती नीति ने हमसे सच को सच कहने का साहस भी छीन लिया है। इस संबंध में हमें उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष रहे हृदय नारायण दीक्षित जी की इन पंक्तियों पर विचार करना चाहिए कि जीवंत इतिहास बोध में ही राष्ट्र का अमृत्व है और विकृत इतिहास में राष्ट्र की मृत्यु। श्रीराम भारत के मन कर रहा और छंद है।
देश आज वास्तव में एक दूसरी क्रांति के मुहाने पर खड़ा है। हमें यह समझ लेना चाहिए कि देश में जितने भर भी राजनीतिक दल हैं उनमें से अधिकांश जिस प्रकार किसी परिवार की जागीर बन कर काम कर रहे हैं, ये सारी जागीरें दुर्योधन की चौपाल हैं और उसमें बैठकर अपशब्दों का प्रयोग करने वाले लोग दुर्योधन की तथाकथित चौपाल या राज्यसभा के विधायक हैं। इन विधायकों से मुक्ति दिलाना समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। क्योंकि ये सारे विधायक राष्ट्र के प्रति समर्पित न होकर किसी दल और दल के नेता के प्रति समर्पित रहते हैं । जिससे देश में सांप्रदायिक विद्वेष से भी भयंकर राजनीतिक सांप्रदायिकता फैलती जा रही है। इन सारी विसंगतियों और विषमताओं के बीच देश के युवा को विदेशी सांस्कृतिक हमला अपनी चपेट में ले रहा है। वह असहाय सा इस हमला के पंजे और शिकंजे में जकड़ा जा रहा है और दुर्योधन की चौपालों के सारे विधायक ताली बजा रहे हैं।
डॉ राकेश कुमार आर्य