*भाजपा की दक्षिणांचल चाल की शिकार होंगी क्षेत्रीय पार्टियां
*राष्ट्र-चिंतन*
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*आचार्य श्री विष्णुगुप्त*
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भाजपा की केन्द्रीय कार्यकारिणी की हैदाराबाद मे हुई बैठक के कई संदेश हैं। पहला सदंश यह है कि भाजपा अपना विस्तार दक्षिण में करने को लेकर अति गंभीर है, दूसरा संदेश यह है कि दक्षिण में भाजपा की चाल बहुत ही आक्रामक होगी, तीसरा संदेश यह है कि भाजपा अपनी आक्रामक दक्षिणांचल चाल से वैसे क्षेत्रीय पार्टियों का अपना शिकार बनायेगी जो सत्ता में बैइे हुए हैं, चौथा संदेश यह है कि अब केन्द्र की भाजपा सरकार दक्षिण के राज्यों में अपनी धनराशि का बड़ा भाग खर्च करेगी, पांचवा संदेश यह है कि दक्षिण में अब भाजपा अपना मूल हथियार हिन्दुत्व को लेकर जनता के बीच वातावरण तैयार करेगी। इन पांचों संदेशों के अलावा भी कई अन्य संदेश भी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में हैदराबाद का नाम भाग्यनगर लेकर भावी रणनीति का अहसास भी करा दिया है। टीपू सुल्तान, निजाम की अराजकता व घृणित इतिहास , पूजा स्थलों की पवित्रता आदि प्रश्न गंभीर राजनीतिक जागरूकता के विषय बनेंगे।
भाजपा अपना विस्तार दक्षिण में करना चाहती है और अपने विस्तार को लेकर आक्रामक होगी, इसमें अस्वाभाविक कुछ भी नहीं है। कोई भी पार्टी लोकतत्र में अपना विस्तार करने के लिए स्वतंत्र हैं और अपने विस्तार के लिए तरह-तरह की नीतियां बनाती हैं, कुछ नीतियां लोकप्रिय भी होती हैं, कुछ नीतियां अलोकप्रिय भी होती हैं, नीतियां उफान भी पैदा करती हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनाधार का विस्तार एक अनवरत प्रक्रिया है। किसी का जनाधार खिसकता है तो किसी का जनाधार बढ़ता है। जहां तक केन्द्रीय सत्ता पर राज करने वाली पार्टी भाजपा का प्रश्न है तो उसका जनाधार विस्तार के राह पर अग्रसर है, जनाधार के मामले में भाजपा देश की सबसे बड़ी पार्टी है, देश के आधे से अधिक राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं। पहले भाजपा को हिन्दी प्रदेशों की ही पार्टी मानी जाती थी और भाजपा की पहचान हिन्दू और हिन्दी के प्रतीक समर्पित होने वाली पार्टी जानी जाती थी। भाजपा ने अपनी यह छवि बदली है और अब भाजपा हिन्दी प्रदेशों से बाहर भी सफलता के झंडे गांडी हैं, अंग्रेजी वर्चस्व और तमिल, तुलगू व कन्नड, मलयालम जैसी देशज भाषाओं से भाजपा को अब कोई परहेज भी नहीं है।
भाजपा की दक्षिणांचल चाल की आक्रमकता की ध्वनी अभी से ही सुनाई पड़ रही है और खासकर क्षेत्रीय पार्टियों के लिए यह आक्रामक ध्वनी खतरे की घंटी हैं। इस खतरे की घंटी नहीं सुनने वाली पार्टियों को वही हाल होगा जो बिहार में लालू, उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की पार्टियों को हुआ है। तेलंगाना राष्ट्र समिति इस खतरे की घंटी को सुन रही है। तेलंगाना राष्ट्र समिति ने भाजपा की इस चाल का नोटिस भी लिया है। इसलिए भाजपा और तेलंगाना राष्ट्र समिति के बीच तल्खी भी बढ़ रही है और राजनीतिक रार का नया मोर्चा भी खुला हुआ है। कुछ घटनाओं का यथार्थ भी यहां प्रस्तुत है। भाजपा की हैदराबाद में हुई केन्द्रीय कार्यकारिणी की बैठक में तेलंगाना सरकार का एक जासूस पकड़ा गया। वह जासूस पुलिसवाला था। पुलिसवाले ने अनाधिकार प्रवेश करते हुए गोपनीय प्रस्ताव फाइल की फोटो भी मोबाइल से खंीच लिया था। भाजपा कार्यकताओं ने उस जासूस पुलिसवाले को पकड़ कर पुलिस को सौंप दिया। भाजपा ने सीधे तौर पर इस जासूसी के लिए तेलंगाना राष्ट्र समिति की सरकार पर आरोप लगाया। भाजपा ने अपने आरोप में कहा कि तेलंगाना की सरकार जासूसी करा कर राजनीतिक शिष्टाचार को कंलकित किया है और भाजपा कार्यकारिणी की बैठक में जरूरी सुरक्षा व्यवस्था को संकट में डाला है। दूसरी घटना प्रधानमंत्री के प्रोटोकॉल का है। प्रधानमंत्री जब किसी प्रदेश में जाते हैं तो प्रोटोकॉल के अनुसार मुख्यमंत्री हवाई अड्डे या फिर नीयत स्थल पर आगवानी करते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैंदराबाद कार्यकारिणी की बैठक में हिस्सा लेने के लिए हैदराबाद पहुंचे पर मुख्यमंत्री स्वागत के लिए उपस्थित नहीं थे। भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक को लेकर मुख्यमंत्री और तेलंगाना राष्ट्र समिति को आखिर परेशानी क्या है? तेलंगाना के मुख्यमंत्री को परेशानी है कि उनके जनाधार पर डाका डालने की कोशिश भाजपा क्यों कर रही है? जानना यह भी जरूरी है कि 2019 के लोकसभा चुनावो में तेलंगाना में भाजपा को चौंकाने वाली सफलता मिली थी। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि हैदराबाद नगर निगम के चुनावों में भाजपा ने लंबी छलांग लगायी थी और तेलंगाना राष्ट्र समिति को भयंकर चुनौती दी थी। हैदराबाद में भाजपा की स्थिति बहुत ही मजबूती होती जा रही है, क्योंकि ओवैशी और ओवैशी के कूनबे की मजहबी बयानबाजी से भाजपा का जनाधार तेजी से विकसित हो रहा है और हिन्दुओं के बीच जागरूकता भी आ रही है।
तेलंगाना के अलावा आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु पर भाजपा का विशेष ध्यान है। आंध प्रदेश में जगन रेड्डी की सरकार है। जगन रेड्डी भाजपा के खिलाफ उस तरह के मोर्चा नहीं खोले हुए हैं जिस तरह के आक्रामक मोर्चा तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने खोल रखे हैं। जगन रेड्डी इस मामले में थोड़ा चालाक भी हैं और होशियार भी है, उन्हें भविष्य की चुनौतियों का भी ख्याल है। जगन रेड्डी को मालूम है कि भाजपा आगे भी देश की सबसे बड़ी पार्टी रहेगी। इसके अलावा जगन रेड्डी का विरोधी तेलगू देशम पार्टी और उसके सरगना चन्द्रबाबू नायडू है। चन्द्रबाबू नायडू की नरेन्द्र मोदी सरकार के प्रति दुश्मनी कैसी है? यह भी उल्लेखनीय है। कभी चन्द्रबाबू नायडू ने मोदी के खिलाफ राष्ट्रव्यापी मोर्चा खोला था और मोदी को पराजित कर प्रधानमंत्री बनने का सपना देखा था। दुष्परिणाम क्या हुआ। दुष्परिणाम यह हुआ कि चन्द्रबाबू नायडू की खुद की सरकार चली गयी और जगन रेड्डी उनके सिने पर चढ़ कर बैठ गये। जगन रेड्डी को डर है कि अगर वे मोदी का अनावश्यक विरोध करेंगे तो फिर केन्द्रीय सरकार की कुदृष्टि का शिकार उन्हें होना पड़ेगा, इसका सीधा लाभ उनके घूर विरोधी चन्द्रबाबू नायडू को होगा। इसी कारण जगन रेड्डी ने भाजपा के साथ गुण-दोष के आधार पर संबंध बनाये रखे हैं। सबसे बडी बात यह है कि राष्ट्रपति पद के चुनाव में जगन रेड्डी ने भाजपा उम्मीदवार द्रौपदी मूर्मू का समर्थन किया है। फिर भी भाजपा की दृष्टि आंध प्रदेश में लगी हुई है।
तमिलनाडु में कांग्रेस और कम्युनिस्टों के साथ करूणानिधि कुनबे की सरकार है। इसलिए वहां पर भाजपा की संभावनाएं बहुत ही अधिक है। पिछले विधान सभा चुनावों में भी भाजपा ने अपने बल पर अच्छी सफलताएं हासिल की हैं। तमिलनाडु मे नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की कई संभाएं हो चुकी है। नरेन्द्र मोदी ने अपनी सरकार की तरफ से तमिलनाडु के लिए कई सुविधाएं और योजनाएं दी हैं। नरेन्द्र मोदी की नीति अपनी सरकार की जन योजनाओं का लाभ तमिलनाडू की सरकार को देकर अपनी पार्टी के जनाधार को विकसित करना है। सत्ता विरोधी वोट किधर जायेंगे? सत्ता विरोधी वोट का एक विकल्प भाजपा भी हो सकती है।
दक्षिण में भाजपा की दो राज्य सरकारें हैं। एक राज्य सरकार कर्नाटक की है। दूसरी राज्य सरकार त्रिपुरा की है। कर्नाटक और त्रिुपरा में फिर से वापसी करने की नीति भाजपा की होगी। कर्नाटक और त्रिपुरा में भाजपा गंभीर नजर रखती है। त्रिपुरा में भाजपा ने मुख्यमंत्री बदल कर संकेत भी दे दिया है। त्रिपुरा में अब भाजपा जनांकाक्षी बनने के लिए गंभीर प्रयास कर रही है।
भाजपा लगातार तीसरी बार केन्द्रीय सत्ता पर बैठना चाहती है तो फिर दक्षिणांचल में हर-हाल में जनाधार विकसित करना ही होगा। हिन्दी क्षेत्रों में निश्चित तौर पर कुछ सीटें कम होगी, पश्चिम बंगाल में भी सीटें कम होगी। हिन्दी क्षेत्रों, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र आदि प्रदेशों में सीटें घटेगी तो फिर घटी सीटें दक्षिण से पूरी हो सकती हैं। पर सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि दक्षिणांचल की जनता भाजपा पर विश्वास करेगी कि नहीं? भाजपा को दक्षिणांचल में भाषा और जन कल्याणकारी योजनाओं पर गंभीरता के साथ ध्यान रखना होगा। निश्चित तौर पर भाजपा की दक्षिणांचल नीति-चाल से दक्षिणांचल की क्षेत्रीय पार्टियों में हाहाकार है, उन्हें अपने अस्तित्व पर संकट दिखने लगा है। क्षेत्रीय पार्टियां न तो लोकतांत्रिक होती हैं और न ही वे अराजकता से मुक्त होती है। क्षेत्रीय पार्टियां प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह चलती है। यही कारण है कि जब विकल्प मिलता है तब जनता क्षेत्रीय पार्टियों को लात मारना ही अच्छा समझती है।
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