*इस्लामिक कट्टरपंथियों, तुम ही हो अपनी कौम के असली दुश्मन!*
*कट्टरपंथियों के साथ एक तरह की आत्मघाती मासूमियत जुड़ी होती है। कट्टरपंथी जब भी पहला वार कर नुकसान पहुंचाता है तो उसे लगता है कि मकसद पूरा हो गया।*
*2001 में अलकायदा ने जब Twin Tower गिराकर तीन हज़ार से ज़्यादा लोगों की जान ली, तो पूरी दुनिया में अलकायदा के हमदर्द लोगों ने इसे अमेरिका की हार माना।*
*फिर क्या हुआ, इसके तीन हफ्ते के अंदर अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला कर दिया। बीस साल से ज़्यादा अमेरिकी फौजें अफगानिस्तान में बनी रही। पौने दो लाख लोग अफगान युद्ध में मारे गए और 50 हज़ार आम अफगानी नागरिकों ने युद्ध में अपनी जान गंवा दी जिनका इस हिंसक सोच से कोई लेना देना नहीं था।*
*इस्लामिक आतंकवाद से अपनी लड़ाई के उसी क्रम में अमेरिका ने केमिकल हथियारों का बहाना बनाकर इराक पर भी हमला कर दिया। इराक युद्ध में भी डेढ़ लाख लोग मारे गए। 7 साल तक अमेरिकी सेनाएं इराक में तांडव मचाती रही। हज़ारों लोग बेघर हुए। इराक की अर्थव्यवस्था ऐसी तबाह हुई कि आज तक नहीं संभल पाई।*
*आपने अमेरिका को एक ज़ख्म दिया और अमेरिका ने आपको बीस साल गुलाम बनाकर रखा। आपने उसके तीन हज़ार मारे, बदले में आपने अपने लाखों लोगों को मौत के हवाले कर दिया।*
*आप तो ठोकते रहे 9/11 के लिए अपनी पीठ लेकिन उन मांओं को कौन हिसाब देगा जिन्होंने इन युद्धों में अपने सैकड़ों बच्चे खो दिए।*
*अब भारत में आ जाइए। 27 फरवरी 2002 को इस्लामिक कट्टरपंथियों ने गोधरा में कारसेवकों से भरी बोगी को आग के हवाले कर 50 से ज़्यादा राम भक्तों की जान ले ली। वो अपने मकसद में सफल हो गए। ये उनकी जीत थी। मगर हुआ क्या, इसके बाद महीने भर तक चले गुजरात दंगों में 790 के करीब मुसलमान मारे गए !*
*2013 में मुजफ्फरनगर दंगा इसी का एक और उदाहरण है। महापंचायत से लौट रहे किसानों पर एक भीड़ ने हमला कर दिया। 6 लोगों की जान चली गई। इसके बाद मुजफ्फरनगर में जो दंगा फैला उसने 62 लोगों की जान ले ली और हज़ारों को बेघर कर दिया। मरने और बेघर होने वालों में ज़्यादातर मुस्लिम ही थे।*
*फरवरी 2020 में ट्रंप की यात्रा के दौरान दिल्ली को जानबूझकर साम्प्रदायिक दंगों की आग में झोंका गया। फिर क्या हुआ, इसकी प्रतिक्रिया में हुए दंगों में हिंदुओं से ज़्यादा आम मुसलमानों की जानें गईं। कईयों की दुकानें जला दी गईं। उनके काम धंधे चौपट हो गए। कई ऐसे बर्बाद हुए कि आज तक नहीं संभल पाए।*
*अफगानिस्तान हो, इराक हो, गुजरात हो, मुजफ्फरनगर हो या दिल्ली जहां भी निर्दोष मुसलमान मारे गए उनका खुद का कोई कसूर नहीं था लेकिन वो एक ऐसी हिंसा का शिकार हुए जो उनके अपने ही लोगों की तरफ से शुरू की गई थी।*
*पाकिस्तान के मशहूर पत्रकार हसन निसार कहते हैं कि पाकिस्तानी फौज हिंदुस्तान से तीनों युद्ध इसलिए हारी क्योंकि वो आज भी पांच सौ साल पुरानी ज़हनियत में जी रहे हैं। यहां के जनरलों को लगता था कि एक-एक मुसलमान पांच-पांच हिंदुओं को नीचे लगा देगा। इस गफलत और नफरत में पाकिस्तान ने तीनों युद्ध हिंदुस्तान पर थोपे और अपने दो टुकड़े करवा लिए।*
*उदयपुर की कल की घटना के बाद हत्यारे जिस तरह अपने चाकू लहराकर इसे अपनी जीत बता रहे थे, तो ये देखकर मुझे गुस्सा भी आया और उनकी मासूमियत पर तरस भी। उन्होंने अपने धार्मिक विश्वास के चलते इस हत्याकांड को अंजाम दे दिया। ऐसा करने पर उन्हें जन्नत मिलेगी या नहीं, हम नहीं जानते।*
*हम तो इतना जानते हैं कि दुनिया में ऐसा कोई अल्लाह, ईश्वर नहीं हो सकता है जो हत्या करने पर जन्नत का टिकट देता होगा इस पर मुझे भारी संदेह है। किसी का भी ईश्वर इतना आत्ममुग्ध और रक्तपिपासू नहीं हो सकता।*
*लेकिन इस हत्याकांड से आम मुसलमानों की मुश्किलें ज़रूर बढ़ सकती हैं। उदयपुर क्या पूरे देश में लोगों में भारी गुस्सा है। फर्ज़ कीजिए एक गरीब मुसलमान जो फलों की रेहड़ी लगाकर अपना और बच्चों का पेट भरता है। इस घटना की नाराज़गी में अगर स्थानीय लोग तय कर लें कि हमें इससे सामान नहीं खरीदना, तो उस गरीब का क्या होगा?*
*आप दंभ भरते हैं कि हम तो पैदाइशी लड़ाके हैं। जान लेना आपके बाएं हाथ का खेल है। लेकिन रोज़मर्रा की ज़िंदगी में आपको किसी की जान नहीं लेनी होती है। वहां हर कदम पर आपको दूसरों की ज़रूरत पड़ती है। क्या आप सामाजिक बहिष्कार झेलते हुए समाज में एक दिन भी रह सकते हैं?*
*लेकिन इस घटना के विरोध में अगर वाकई बहिष्कार जैसा ऐसा हुआ, तो सबसे ज़्यादा तकलीफ कौन झेलगा। वही आम मुसलमान, जो मारे गए कन्हैया टेलर की तरह ही छोटा-मोटा काम करके अपनी ज़िंदगी बसर करता है।*
*आपने एक आदमी का कत्ल किया और ऐसा करके आपने करोड़ों मुसलमानों को शक के दायरे में ला दिया। लोगों के मन में उन्हें लेकर और शंका बढ़ा दी। जिस Islamophobia पर मुस्लिम जगत इतनी चिंता जताता है, ऐसा करके आपने उसी Islamophobia को कई गुणा और बढ़ा दिया है।*
*लेकिन कत्ल करने वाले ये नहीं सोच रहे। वो जन्नत के सपनों में इतना मशगूल रहते हैं कि अपने पीछे लाखों लोगों के लिए जो जहन्नुम छोड़कर जाते हैं उसका उन्हें रत्ती भर भी अंदाज़ा नहीं होता। ये कट्टरपंथी इस आत्मघाती हद तक मासूम हैं कि इनकी मासूमियत इनके प्राण ले रही है लेकिन ये अब भी पहले वार की खुमारी में डूबे हुए हैं।*
*धर्मनिरपेक्ष नहीं धर्मप्रेमी बनिए याद रखें धर्म सुरक्षित रहेगा तभी आप सुरक्षित रहेंगे !*
संजय
गौ सेवा गतिविधि नोएडा
जय भारत हिन्दू राष्ट्र
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