सामाजिक समरसता व नारी सशक्तीकरण का अदभुत संदेश: द्रौपदी मुर्मू

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मृत्युंजय दीक्षित

केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली राजग गठबंधन की सरकार ने झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाकर सामाजिक समरसता व नारी सशक्तीकरण का अदभुत संदेश दिया है जिससे आदिवासी समाज व महिलाओं के बीच प्रसन्नता की लहर दौड़ गई है। संसद व विधानसभाओं की अंकगणित के अनुसार राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू की जीत महज औपचारिकता भर रह गयी है क्योंकि उन्हें ओड़िशा की बीजू जनता, आंध्र प्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस और बहन मायावती का समर्थन भी मिल चुका है। द्रौपदी मुर्मू छह साल तक झारखंड की राज्यपाल रह चुकी हैं इसलिए झारखंड की झारखंड मुक्ति मोर्चा सहित एनडीए में शामिल रहे सभी वर्तमान तथा पूर्व घटकों का सहयोग भी उन्हें मिलने जा रहा है।
भाजपा ने आदिवासी समाज की (अनुसूचित जनजाति )की महिला को अपना राष्ट्रपति प्रत्याशी बनाकर एक तीर से कई निशाने साध लिये हैं। राजनैतिक विष्लेशकों का अनुमान है कि आगामी दिनों में भाजपा को इसका राजनैतिक लाभ मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ झारखंड गुजरात और ओड़िशा जैसे आदिवासी बहुल राज्यों में मिलेगा। मणिपुर में 41 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 34 प्रतिशत, त्रिपुरा में 32 प्रतिशत, झारखंड में 26.2 प्रतिशत और गुजरात में 15 प्रतिशत आदिवासी हैं । आदिवासी समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग अभी भी विकास में बहुत पिछड़ा हुआ है । ऐसे समय पर राष्ट्रपति पद पर आदिवासी समुदाय की एक जुझारू महिला के होने का मात्र प्रतीकात्मक महत्व नहीं होगा बल्कि यह जनजातीय समाज के सर्वांगीण और वास्तविक विकास का भी स्वर्णिम अवसर बनेगा। इस निर्णय के साथ ही पार्टी अपनी शहरी पार्टी होने कि छवि से बहुत आगे निकल गयी है।
यह भारत जैसे महान लोकतांत्रिक देश व भाजपा जैसे सर्व समावेशी राजनैतिक दल में ही संभव है कि बेहद गरीबी व जमीन से उठी एक आदिवासी महिला राष्ट्रपति पद को सुशोभित करने जा रही हैं। 25 वर्ष के बेदाग राजनैतिक जीवन जीने वाली भारतीय संस्कारों से ओतप्रोत राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू उम्मीदवारी की घोषणा के साथ ही ओड़िशा में रायरंगपुर के जगन्नाथ मंदिर में पूजा अर्चना करती हैं। 18 मई 2015 को झारखंड का राज्यपाल बनने के पहले वह ओड़िषा में दो बार विधायक और एक बार राज्यमंत्री के रूप में कार्य कर चुकी हैं । अपने पूरे कार्यकाल में वह कभी विवादों में नहीं रहीं। झारखंड के जनजातीय मामलों, शिक्षा, कानून व्यवस्था ,स्वास्थ्य से जुड़े मुददों पर वह हमेशा सजग रहीं।
द्रौपदी मुर्मूं जी का जन्म 20 जून 1958 को ओड़िशा के मयूरभंज के एक आदिवासी परिवार में हुआ। रामा देवी वीमेंस कालेज, भुवनेश्वर से बीए की डिग्री लेने के बाद उन्होंने एक स्कूल शिक्षिका के रूप मे निःस्वार्थ सेवा की। ओड़िशा के राज्य सचिवालय में नौकरी की। 1997 में रायरगंपुर नगर पंचायत का चुनाव जीतकर राजनीति में पर्दापण किया। पार्षद बनने के बाद वह मानवता की सेवा में लगी रहीं।2000 में रायरंगपुर के के विधायक से वर्ष 2007 के सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकांठा पुरस्कार से सम्मानित होने तक उनका राजनीतिक सफर बहुत ही उज्ज्वल व बेदाग रहा जिसका कोई सानी नहीं है। इस प्रकार पार्षद से राष्ट्रपति पद तक उनकी यात्रा देश की सभी आदिवासी महिलाओं के लिए एक आदर्श व प्रेरणा भी हैं।
वह देश की ऐसी पहली महिला राष्ट्रपति उम्मीदवार है जिनका जन्म आजादी के बाद हुंआ है। जब से उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया है तब से उनके घर व गांव में हलचल है। लेकिन उनकी दिनचर्या में कोई बदलाव नहीं आया है। वह अपने आवास से थोड़ी दूर स्थित शिव मंदिर में झाडू लगाकर अपने दिन का प्रारंभ करती हैं। भगवान शिव में उनकी गहरी आस्था है। द्रौपदी मुर्मू जी तथा उनका परिवार पूर्ण रूप से शाकाहारी हैं। द्रौपदी एक बहुत ही गरीब आदिवासी परिवर की बेटी हैं। जो एक बड़ी उम्र तक शौच के लिए घर के बाहर जाने को अभिशप्त थीं। द्रौपदी जी अपने परिवार की एक ऐसी बेटी थीं जो केवल इसलिए पढ़ना चाहती थीं ताकि परिवार के लिए रोटी कमा सकें।
राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी ने अपने व्यक्तिगत जीवन में बहुत दुःख झेले। उन्होंने अपने पति और दो बेटों कि असमय मृत्यु मौत का दर्द सहा और दूसरे बेटे की मृत्यु के बाद वे ब्रह्मकुमारी परिवार से जुड़ गयीं । उस समय उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि वह एक दिन राष्ट्रपति के पद की उम्मीदवार बनेंगी और जीत के करीब पहुचं जायेंगी। 2009 में चुनाव हारने के बाद फिर से गांव जाकर रहने लगीं और जब वापस लौटीं तो अपनी आंखों को दान करने की घोषण की और अब वह भारत की राष्ट्रपति बनने जा रही हैं। वह जिस गांव में रहती थीं वहां कहा जाता था कि राजनीति बहुत बुरी चीज है औ महिलाओं को राजनीति से बहुत दूर रहना चाहिए, आज उसी गांव की महिला राष्ट्रपति बनने जा रही हैं।
दशकों तक पर्याप्त भोजन और वस्त्रों से भी दूर रहे समुदाय को देश के सबसे बड़े भवन तक पहुंचाकर भारत ने विश्व को एक बार फिर दिखा दिया है कि यहां रंग, जाति, भाषा, धर्म, जाति, संप्रदाय का कोई भेद नहीं चलता। जब देश में अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है उस समय एक आदिवासी समाज की महिला का राष्ट्रपति भवन तक पहुंचना एक सुखद संदेश है। द्रौपदी मुर्मू जी का राष्ट्रपति भवन तक पहुंचना भारतीय लोकतंत्र की एक शुभ घटना है।
द्रौपदी जी के नामांकन पत्र भरने के समय, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि, ”राष्ट्रपति पद के लिए उनकी उम्मीदवारी की देश भर में और समाज के सभी वर्गो द्वारा सहराहना की जा रही है। जमीनी समस्याओं के प्रति उनकी समझ और भारत के विकास को लेकर उनकी दृष्टि स्पष्ट है।

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