नारी-अस्मिता वोट बैंक नहीं जिसे…..
कौन कहता है कि महिलाएँ सशक्त नहीं हैं। मेरा अपना मानना है कि आदिकाल से ही महिलाओं की ही चलती आ रही है। ‘स्त्री-शक्ति’ की पूजा की जाती है। देवता भी इस शक्ति के आगे नतमस्तक थे। महिलाओं के बारे में नकारात्मक सोच वाले ही ऐसा कह सकते हैं कि नारी ‘अबला’ होती है। कितने उदाहरण दूँ, कितनों के नाम गिनाऊँ। सशक्त नारियों के बारे में लिखने में कई मोटे-मोटे बहुपृष्ठीय ग्रन्थ बन जाएँगे। नारी कभी भी अबला नही रही। देश-विदेश की अनगिनत महिलाओं की गाथाएँ लोग प्रायः गाते हैं। कोई ऐसा क्षेत्र नहीं जिसमें ‘नारी’ अग्रणी न हो। ब्रम्हाण्ड का चक्कर, एवरेस्टर फतेह, समुन्दर तैरना, धरती पर दौड़ लगाकर महिलाओं ने अपनी योग्यता/श्रेष्ठता साबित किया है। कला, ज्ञान-विज्ञान, शिक्षा, खेल, पर्वतारोहण, पत्रकारिता, राजनीति, बैंकिंग में अग्रणी रहने वाली ‘नारी’ को ‘अबला’ कहना कितना उचित है…? यह आप पर छोड़ा जाता है। क्या ये ‘सबला’ नहीं हैं….?
प्रायः सुना-पढ़ा जाता है कि पुरूष प्रधान समाज है, इसमें नारी पुरूष के पौरूष के आगे दोयम दर्जे की मानी जाती है। मेरा अपना मानना है कि नर और नारी दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। हर कोई एक दूसरे के बगैर अधूरा है। नारी न होती तो हम न होते, इसे क्यों विस्मृत किया जाता है..? नारी का चण्डी रूप देखकर बड़े से बड़े बलशाली पुरूष काँप जाते है। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई से लेकर फूलन देवी को इतिहास में पढ़ा जा सकता है।
इन्दिरा गाँधी से लेकर मायावती तक की नारियों के राजनीतिक कौशल को सहज भुलाया नहीं जा सकता। पत्रकारिता से सम्बद्ध अनेको महिलाओं के नाम जेहन में उतर आते हैं जिनको लिखने से अलेख काफी लम्बा हो सकता है। प्रिण्ट/इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में लोहा मनवाने वाली नारियों मृणाल पाण्डेय……आदि के युग उपरान्त वर्तमान में वेब मीडिया के माध्यम से धाकड़ पत्रकारिता करने वाली मीडिया मोर्चा की सम्पादक लीना, रेनबोन्यूज की सम्पादक रीता पर यदि दृष्टिपात किया जाए तो ऐसा प्रतीत ही नहीं होता कि ये नारियाँ अबला हैं। वेब साहित्यिक पत्रिका स्वर्गविभा की सम्पादक डॉ. तारा सिंह एक वरिष्ठ कवियत्री/साहित्यकार हैं, उनके बारे में जितना लिखा जाए वह कम ही होगा। साहित्य जगत में सरोजनी नायडू, सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, शिवानी, आदि नारियों के कृत्य मील का पत्थर बन चुके हैं।
पी.टी. ऊषा, मल्लेश्वरी, कल्पना चावला, अंजुम चोपड़ा, बछेन्द्र पाल, सानिया मिर्जा, साइना नेहवाल, अरूणिमा सिन्हा किसी पहचान की मोहताज नहीं। नरगिस दत्त, मधुबाला, वहीदा रहमान, आशा परेख, हेमा माहिनी, रेखा, माधुरी दीक्षित जैसी सिने कलाकारों के योगदान को नजरन्दाज कर पाना मुश्किल है। जब हम महिलाओं पर हो रहे कथित अत्याचार, उनके उत्पीड़न की खबरें सुनते या पढ़ते हैं, तब ऐसा प्रतीत होता है कि वर्तमान में प्रचार माध्यमों के जरिए तिल-मिलाया पुरूष नारियों के प्रति साजिश रचकर अत्याचार/उत्पीड़न को प्रमुख खबरें बनवाकर समाज में भ्रम की स्थिति पैदा कर रहा है। मैं सोचने पर मजबूर हो जाता हूँ कि-
जब किसी महिला का उत्पीड़न होता है, तब उसका चण्डीरूप कहाँ विलुप्त हो जाता है। आखिर उक्त नारी ने पुरूषों के पौरूष के आगे घुटने क्यों टेक दिया। कहाँ गई लक्ष्मीबाई और फूलन देवी, पुतली बाई, झलकारी बाई जैसी ‘नारी-शक्ति’? क्यों नहीं किया पुरूष द्वारा किए जाने वाले अत्याचार का विरोध, क्यों सहती रही उत्पीड़न और क्यों कर लिया ‘आत्महत्या’-? जब नारी इस तरह मरती है, तब मेरे जेहन में अनेकानेक सवाल कौंधते हैं।
महिलाओं के उत्पीड़न/अत्याचार/दुष्कर्मों की खबरें सुन-जानकर मन खिन्न हो उठता है। पुरूष के अत्याचार और उत्पीड़न से क्षुब्ध होकर जीवन लीला समाप्त करने वाली नारी की शक्ति कहाँ विलुप्त हो जाती है। आखिर कब तक ‘नारी-अस्मिता’ मीडिया की सुर्खियाँ बनकर कुत्सित और मनोविकृत लोगों के लिए पोषण का कार्य करेगी। राजनीति करने वालों के लिए ‘वोट बैंक’ बनेगी और मुझ जैसों के लिए ‘शोचनीय’ विषय वस्तु बनकर डिप्रेशन पैदा रकती रहेगी। यह स्थिति अत्यन्त दुःखद भी है- क्योंकि नारी अपने आप को विस्मृत करने लगी है। भूल रही है ‘नारी-शक्ति’।
हे नारी- हे मानव जननी- हे देवि स्वरूपा तुम्हें अवश्य ही स्वयं कुछ करना होगा ‘नारी-अस्मिता’ के संरक्षण के लिए। तुम तो स्वयं दया की सागर हो, तुम पर कोई दया करे यह कितने आश्चर्य की बात है। तुम्हारी ‘अस्मिता’ को अस्त्र बनाकर मनोरोगी पुरूष वर्ग धरना-प्रदर्शन कर तथा कथित समाज सेवा करने का स्वाँग करें- राजनीति करें, नारी अस्मिता को सड़क मार्ग पर रखकर नारेबाजी कर अपनी स्वार्थ सिद्धि करें? नहीं……! तुम भोग्या नहीं हो, यह तो पुरूषों का भाग्य है कि उन्हें तुम्हारा सहवास प्राप्त होता है।
अब बहुत हो गया। तुम नारी हो, जननी हो, तुम्हारी कोई जाति विशेष नहीं। तुम षडयन्त्रकारी समाज के छलावे में मत आवो। उठा लो अस्त्र, दिखा दो अपना रौद्र रूप, काँप जाएँ छद्मवेशी समाज के नारी उत्पीड़क। तुम किसी व्यवस्था की दया का पात्र नहीं हो, हे जननी तुम तो स्वयं व्यवस्थाओं की जन्मदात्री हो। तुम्हारे आगे राजतंत्र/प्रजातंत्र/लोकतंत्र…..सभी तंत्र निष्प्रभावी हैं। तुम्हारा उत्पीड़न, तुम्हारे ऊपर अत्याचार करने का साहस किसी में नहीं है। नारी जो जननी है कि कोख से जन्मा एक बच्चा….।