*यारों समझो देर नही है पुनः गुलामी आने में*

bharat_mata_by_mskumar-d5sfen7जब रोटी देने वाला खुद रोटी को मोहताज हो,
दर दर ठोकर खाती यारों भारत माँ की लाज हो ।
बचपन तक भी बिलख रहा हो सडकों पर भूखा नंगा,
धर्म दिखाकर संत मोलवी करवा देते हों दंगा।
नेता जी जब प्यास बुझाने जाते हों मयखाने में,
यारों समझो देर नही है पुनः गुलामी आने में।।

जब सरकारें रूपये पचहत्तर भूखे को भिजवाती हों,
गैया के भी खून से भारत में नदियां बह जाती हों
रिक्शा चालक भूखे प्यासे उल्टा सीधा खाते हों,
मंत्री के  नाती,बेटे सब  छप्पन भोग उडाते हों,
नेता जी खुद वजन घटाने जाते हों जिमखाने में,
यारों समझो देर नही है पुनः गुलामी आने में,

जहाँ कबीरा के भी घर में रोटी की हो लाचारी,
वाणी के जयचंद यहाँ पर कमा रहे हों धन भारी।
जब विद्वानों को इस युग में पडता हो बस विष पीना,
अमृत उसके हिस्से आये जिसने देखा नहीं पसीना।
जब अवसादी होकर जनता भटके पागलखाने में,
यारों समझो देर नही है पुनः गुलामी आने में।

जब काशी के बाजारों में अबला बेची जाती हों,
अब तक यहाँ दुशासन द्वारा साडी खींची जाती हों।
जब भारत के न्यायधीश तक गौ माता को खाते हों ,
काश्मीर में सिर्फ जिहादी तेवर देखे जाते हों।
दुश्मन का झंडा लेकर गद्दार जुटें फहराने में,
यारो समझो देर नही है पुनः गुलामी आने में।

जब बासंती चोले वाले भूल भगत सिंह को जायें,
आजादी के रक्षा खातिर हाथ नहीं जब उठ पायें।
विश्व बंधुता का नारा जब फूटी आँख न भाता हो,
विवेकानंद सरीखा साधू पीडा से मर जाता हो।
जब ढोंगी और पाखंडी लगे हो बस बहकाने में,
यारों समझो देर नही है पुनः गुलामी आने में।।

बनी लीक पर चलना ही जब सबकी मजबूरी हो,
कथनी करनी की भारत से न मिट पाती दूरी हो,
चरण वन्दना करने तक की सब की हो जब लाचारी,
चोगा पहने जग में पूजे जाते हों जब व्यभिचारी।
ब्रह्मचारी तक आ जायें जब योवन के बहकाने में,
यारों समझो देर नही है पुनः गुलामी आने में

संदीप वशिष्ठ
एक कदम गौ रक्षा और साहित्यिक सुचिता के लिए
(मौजपुर, दिल्ली)

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