आर्यसमाज-लक्ष्मण चौक में विवाह की स्वर्णजयन्ती पर आयोजन- “आर्य भजनोपदेशक सत्यपाल सरल सब भजनोपदेशकों में वरिष्ठ एवं आर्यसमाज के गौरव हैं: स्वामी आर्यवेश”
ओ३म्
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शुक्रवार दिनांक 20-5-2022 को आर्यसमाज के प्रसिद्ध भजनोपदेशक श्री सत्यपाल सरल जी के विवाह के 50 वर्ष पूरे होने पर देहरादून के आर्यसमाज लक्ष्मणचैक में यज्ञ एवं सत्संग का विशेष आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में अनेक गुरुकुलों के संस्थापक स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती, सार्वदेशिक प्रतिनिधि के सभा प्रधान स्वामी आर्यवेश जी, स्वामी आदित्यवेश जी तथा गुरुकुल पौंधा-देहरादून के आचार्य डा. धनंजय जी सम्मिलित हुए तथा उन्होंने इस अवसर पर श्री सत्यपाल सरल जी को अपनी शुभकामनायें एवं बधाई दी। कार्यक्रम के आरम्भ में आर्यसमाज लक्ष्मण चैक की भव्य यज्ञशाला में पुरोहित पंडित श्री गुरमीत आर्य ने विशेष यज्ञ सम्पन्न कराया जिसमें श्री सत्यपाल सरल जी के 2 मई 2022 को जन्म दिवस के उपलक्ष्य में विशेष आहुतियों सहित विवाह की वर्षगांठ की भी विशेष आहुतियां दी गईं। यज्ञ में श्री सरल जी के इष्टमित्र, संबंधी तथा पड़ोसी आदि बड़ी संख्या में उपस्थ्ति थे। कार्यक्रम के बाद परिवार की ओर से सबके लिये प्रीतिभोज की व्यवस्था भी की गई थी।
श्री सत्यपाल सरल जी व उनके परिवार को शुभकामनायें देते हुए स्वामी आर्यवेश जी ने कहा कि अनुभव व आयु की दृष्टि से श्री सत्यपाल सरल जी सब भजनोपदेशकों से वरिष्ठ हैं। वह आर्यसमाज के गौरव हैं। 50 वर्ष तक इन्होंने वेद प्रचार किया है। स्वामी जी ने कहा कि सरल जी ने पुराने भजनोपदेशकों की प्रचार शैली को बढ़ाया है। इनकी वेद प्रचार व व्याख्या शैली प्रभावपूर्ण है। श्रोता सरल जी के कार्यक्रमों को ध्यान से सुनते हैं। सरल जी आर्यसमाज के प्रसिद्ध भजनोपदेशकों में वरिष्ठतम हैं। स्वामी जी ने सरल जी के दोनों पुत्रों को साधुवाद दिया। उन्होंने सरलजी के दोनों पुत्रों को अपने माता-पिता के विवाह की पचासवीं वर्षगांठ वा स्वर्णजयन्ती के अवसर पर इस कार्यक्रम को आयोजित करने के लिए आशीर्वाद दिया। उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम आयोजित करना बहुत आवश्यक था। सरल जी के बच्चों ने यह बहुत बड़ा काम किया है। ऐसे बच्चों व उनके ऐसे कार्यों से माता-पिता की आयु बढ़ती है। स्वामी जी ने सरल जी के बच्चों के वैदिक मार्ग पर चलने की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि भजनोपदेशकों के परिवार के सभी सदस्य यदि आर्य मान्यताओं पर आधारित आर्य वैदिक जीवन व्यतीत करते हैं तो यह प्रशंसनीय है। स्वामी जी ने इसका श्रेय श्री सत्यपाल सरल जी की धर्मपत्नी माता सुशीला जी को दिया। स्वामी जी ने सरल जी के स्वास्थ्य की चर्चा भी की। उन्होंने ईश्वर से सरल जी के स्वस्थ जीवन की कामना की। स्वामी जी ने सरल जी के शतायु होने की कामना भी की। स्वामी जी ने कार्यक्रम में उपस्थित लोगों को इस कार्यक्रम से प्रेरणा लेने को कहा और यह भी प्रेरणा की कि वह अपने जीवन के सभी कार्यक्रम वैदिक सिद्धान्तों एवं मान्यताओं के अनुरूप ही करेंगे। स्वामी जी ने सभी उपस्थित बन्धुओं को अपने अपने माता-पिता की सेवा पूर्ण श्रद्धा व निष्ठा करने की प्रेरणा की।
स्वामी आर्यवेश जी ने कहा कि आज हमारे परिवारों से पितृयज्ञ की परम्परा समाप्त हो रही है। स्वामी आर्यवेश जी ने अपनी हालैण्ड की यात्रा में प्राप्त अनुभव के आधार पर बताया कि वहां एक व्यक्ति अपनी सन्तानों के होते हुए अकेलेपन से ग्रस्त था। बच्चे उससे बातें नहीं करते थे। उसे नींद नहीं आती थी। इसके लिये उसने एक व्यक्ति को फोन पर बात करने के लिए मनाया जो रात्रि सोने से पूर्व बात करने के लिए प्रति दिन के 4000 गिल्डर अर्थात् लगभग 80,000 अस्सी रूपये प्रतिदिन लेता था। रात को उस व्यक्ति को फोन पर बातें करते-करते नींद आ जाती थी। स्वामी जी ने श्रोताओं को प्रेरणा की कि उन्हें अपने माता-पिता के पास बैठकर रात का भोजन करना चाहिये और उनसे विस्तार से बातें करनी चाहियें। स्वामी जी ने कहा वेदमन्त्रों में मनुष्य को ऊपर उठने की प्रेरणा की गई है। उन्होंने कहा कि जो मनुष्य विद्या व पुरुषार्थ से तप चुका है उसे समाज में प्रविष्ट होकर वेद प्रचार एवं समाज सुधार के कार्यों को करना चाहिये। स्वामी जी ने कहा कि सरल जी ने सिद्ध किया है कि उन्होंने अपना 50 वर्षों का जीवन सुखपूर्वक व्यतीत किया है। उन्होंने कहा कि हम सरल जी के परिवारिक जीवन की सफलता को देखकर अभिभूत हो गये हैं। सरल जी का गृहस्थ जीवन पूरी तरह से सफल हुआ है।
स्वामी जी ने कहा कि वानप्रस्थ होने का अर्थ है कि ऐसे विचार जो हममें विरक्ति पैदा करें। हमें वानप्रस्थी बन कर साधना करनी है। जीवन का शेष समय हमें समाज के कार्यों में बिताना है। यदि हम वैदिक विचारों से पृथक रहेंगे तो हमारे कार्य बन्धन व दुःखों का कारण बनेंगे। उन्होंने कहा कि जब तक स्वास्थ्य तथा वाणी साथ दे, देश भर में वेद प्रचार का कार्य करें। स्वामी जी ने कहा कि इसके साथ हमे स्वाध्याय तथा साधना का कार्य भी करना चाहिये। स्वामी जी ने आर्यसमाज लक्ष्मण चैक के अधिकारियों व सदस्यों की समाज की सुन्दर व्यवस्थाओं के लिए प्रशंसा की। स्वामी जी ने कहा कि उत्तराखण्ड की भूमि देव भूमि है, इसे वास्तव में देव भूमि बनायें और इसके लिए प्रदेश से शराब तथा मांसाहार का सेवन पूरी तरह से बन्द कराने के लिए प्रयत्न करें। उन्होंने कहा कि आर्यसमाज के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने की आवश्यकता है। अपनी वार्ता को समाप्त करते हुए स्वामी जी ने श्री सत्यपाल सरल जी के परिवार को सरल जी के 75 वे जन्म दिवस तथा विवाह की 50वी वर्षगांठ की बधाई दी। उन्होंने कहा कि सरल-दम्पती स्वस्थ रहें तथा शतायु हों।
स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि इहलौकिक एवं पारलौकिक उन्नति के लिए मनुष्य गृहस्थ आश्रम को धारण करता है। स्वामी जी ने कहा कि ऋषि भक्त श्री सत्यपाल सरल ऋषि के वचनों को साकार एवं सार्थक कर रहे हैं। श्री सरल जी जी का जीवन, कार्य एवं व्यवहार वैदिक संस्कृति के अनुरूप हैं। सरल जी ने देश के अनेक भागों में जाकर वेद प्रचार किया है। उनका जीवन व्यस्त रहता रहा है। स्वामी जी ने कहा कि यदि आपको एक आदर्श गृहस्थ को देखना है तो श्री सत्यपाल सरल जी के गृहस्थ को देखो। स्वामी जी ने एक कथा सुनाते हुए कहा कि एक बार स्वामी शंकाराचार्य जी महाविद्वान मण्डल मिश्र जी का घर ढूंढ रहे थे। उन्होंने किसी से पूछा कि मण्डन मिश्र जी का घर कौन सा है? उन्हें बताया गया कि इस रास्ते पर सीधे चले जाओ। जिस घर के सामने आपको तोता व मैना बैठे जगत के रहस्यों सहित आध्यात्म पर चर्चा करते हुए मिलें, जानो कि वही घर मण्डन मिश्र का है। स्वामी जी ने कहा कि सरल जी का परिचय भी यही है कि यदि प्रातःकाल इनके घर के निकट पहुंचों तो जिस घर से वेदमन्त्रों की ध्वनि आती सुनाई दे, वही घर सरल जी का घर होगा। स्वामी जी ने श्री सत्यपाल सरल जी को अन्तिम श्वास तक वेद प्रचार का कार्य करने की प्रेरणा की। उन्होंने कहा कि पति व पत्नी में सदैव सौहार्द होना चाहिये। आयु के सौ वर्षों तक स्वामी जी ने सरल दम्पति को आनन्दपूर्वक जीने का आशीर्वाद दिया। स्वामी जी ने कहा कि यह संसार पथरीली नदी के समान है। स्वामी जी ने एक मन्त्र बोला और सरल जी को सौ वर्ष की आयु को प्राप्त करने का आशीर्वाद दिया।
गुरुकुल पौंधा के यशस्वी आचार्य आचार्य धनंजय जी ने इस अवसर पर कहा कि हमारे लिए यह हर्ष का विषय है कि हमारे आदरणीय श्री सत्यपाल सरल जी की आज विवाह की पचासवीं वर्षगाठ हैं। आचार्य जी ने वैदिक वर्णाश्रम व्यवस्था की चर्चा की और उस प्रकाश डाला। आचार्य जी ने कहा कि जीवन के प्रथम 25 वर्ष ब्रह्मचर्य का काल कहलाते हैं। ब्रह्मचर्य काल में हम धर्ममय जीवन को धारण कर ज्ञान व शारीरिक सामर्थ्य को बढ़ाते हैं। ब्रह्मचर्य के बाद गृहस्थ आश्रम भी पच्चीस वर्ष का किया जाता है। आचार्य जी ने वानप्रस्थ आश्रम के 25 वर्ष के काल की चर्चा की और इसमें आत्मा की उन्नति के लिए किये जाने वाले कार्यों पर प्रकाश डाला। आचार्य जी ने कहा कि वानप्रस्थ आश्रम में मनुष्य को अपने जीवन को परमात्मा की उपासना में लगाना होता है। आचार्य जी ने संन्यास आश्रम पर भी प्रकाश डाला। आचार्य धनंजय जी ने वर्णाश्रम व्यवस्था को संसार की सर्वोत्तम व्यवस्था बताया। उन्होंने कहा कि संन्यास परम्परा शाश्वत है और यह वैदिक परम्परा है। आचार्य जी ने कहा कि आज का दिवस परिवार को एक उद्देश्य दे रहा है। आचार्य धनंजय जी ने बताया कि जो पूर्णता को प्राप्त कराता है उसे पर्व कहते हैं। उन्होंने गन्ने के बीच जो पर्व व गांठे होती हैं उनका उदाहरण दिया। आचार्य धनंजय जी ने अपने वक्तव्य को विराम देते हुए कहा कि आज विवाह की पचासवीं वर्षगांठ का पर्व श्री सरल जी एवं उनके परिवार को सुख व शान्ति प्रदान करे। आचार्य जी ने अपनी ओर से श्री सरल जी एवं उनके परिवार को हार्दिक शुभकामनायें प्रदान की।
युवा सन्यासी स्वामी आदित्यवेश जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि श्री सत्यपाल सरल जी ने अपने जीवन में कठोर मेहनत की है। उनके द्वारा प्रचार के लिए 50 वर्षों का समय देना महत्वपूर्ण है। उन्होंने आधी शताब्दी तक प्रचार किया है। स्वामी जी ने कहा कि मनुष्य को संकल्प लेकर अपने जीवन के महत्वपूर्ण कार्यों को करना चाहिये। स्वामी आदित्यवेश जी ने माता सुशीला जी की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने अपने बच्चों को उत्तम संस्कार दिये और सरल जी को वैदिक धर्म के प्रचार करने में प्रेरणा देकर सहयोग किया है। स्वामी जी ने सरल जी के परिवार के संस्कारों की भी प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि आर्यसमाज की आवश्यकता समूचे देश को है। उन्होंने आगे कहा कि वैदिक संस्कृति को बचाने के लिए देश को आर्यसमाज तथा आर्य संन्यासियों की आवश्यकता है। स्वामी आदित्यवेश जी ने श्री सत्यपाल सरल जी के परिवार को उनकी विवाह की पचासवीं वर्षगांठ के लिए बधाई दी। वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून के मंत्री श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी ने भी श्री सत्यपाल सरल जी के परिवार को इस अवसर पर अपनी शुभकामनायें एवं बधाई दी। शर्मा जी ने बताया कि कुछ वर्ष पहले सरल जी ने उनके निवास पर पांच दिनों तक राम कथा की थी जिसे वहां के निवासियों ने बहुत पसन्द किया था। शर्मा जी ने कहा कि सरल जी पूरे देश में वेद प्रचार करते हैं। उन्होंने सरल जी को अपने पूरे परिवार को आर्यसमाज लक्ष्मण चैक देहरादून से जोड़ने का आग्रह भी किया। श्रीमती डा. सुखदा सोलंकी जी, श्री शत्रुघ्न सिंह मौर्य एवं श्रीमती सुषमा शर्मा जी ने भी श्री सत्यपाल सरल जी को शुभकामनायें एवं बधाई दी। कार्यक्रम की समाप्ति पर शान्तिपाठ किया गया। इसके बाद सभी ने मिलकर स्वादिष्ट भोजन किया और सरल जी को शुभकामनायें देकर अपने अपने अपने निवास स्थान के लिये विदा हो गये। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य