धर्मवीर ‘हकीकत राय’ का बलिदान
‘‘गायन्ति देवा: किल गीतकानी धन्यास्तुते भारत भूमिभागे’’ ऐसा हमारा भारतवर्ष देश, जिसके बारे में देवों ने भी भूरि-भूरि प्रशंसा की है और ऐसी कामना की है कि यह भारतभूमि धन्य है और हमारा जन्म बारंबार केवल ऐसी भारत भूमि में ही हो। इस देश की सौंधी मिट्टी में ऐसी उर्वरा शक्ति है कि जब-जब इस देश की अखण्डता, सार्वभौमिकता स्वाभिमान पर किसी आक्रांता ने आंख उठाकर देखा है तब -तब इस वीर प्रसूता वसुंधरा ने रक्तबीजों की तरह ऐसे महान बलिदानी वीर पुत्रों को जन्म दिया है जिनकी गौरवगाथाएं, महान बलिदानों की श्रंखलाओं ने सतत् इस देश के युवाओं को भारत के परमवैभव के शिखर तक आसनारूढ़ होने में एक बलिदानी परंपरा की स्पर्धा पैदा की है और उन्हें सतत् प्रेरणा दी है।
बाल वीर हकीकत राय का बलिदान हमारे देश के बाल वृद्घ युवाओं के लिए सदैव एक सतत मातृभूमि की सेवा में अपने प्राणों को उत्सर्ग करने के लिए प्रेरित करता रहेगा। शाहजहां का शासन काल था भारत में मदरसा शिक्षा पद्घति का बोलबाला था। पंजाब के एक शहर में ऐसे ही एक मदरसे में हिंदू मुसलमान बच्चे सब मिलकर एक साथ पढ़ते थे। मुल्ला और मौलवी के माध्यम से उन्हें शिक्षा दी जाती थी। मदरसे का दृश्य है भागमल और कौरा का दस साल का सीधा सरल स्वभाव का पुत्र धोती कुर्ता के परिधान में सभी छात्रों के साथ बैठा हुआ पढ़ रहा था। बालक हकीकत राय। ऐसे तीन चार हिंदू बच्चे थे परंतु बहुतायत में मुस्लिम बच्चे ज्यादा थे। हकीकत राय पढऩे में कक्षा में सभी छात्रों से अव्वल था। मुस्लिम छात्रों ने मंत्रणा की कि चलो हकीकत राय! खेलने के लिए ले चलें। उन्होंने सोचा कि यह पढ़ता बहुत है। कक्षा में अव्वल आता है और मौलवी साहब इसकी नजीर देते हुए हम सबको डांटते हैं।
मुस्लिम बच्चे कक्षा में बैठे हुए हकीकत के पास जाकर कहते हैं-यार हकीकत! हमेशा पढ़ते रहते हो। चलो, हमारे साथ खेलने चलो। हकीकत ने कहा-हमें पढऩे दो, अभी हम खेलने नही जाएंगे। मुस्लिम विद्यार्थी जोर जबरदस्ती करने लगे। तब हकीकत ने कहा दुर्गा माता की कसम हम नही खेलेंगे। इस पर मुस्लिम छात्रों ने कहा-ऐसी तैसी तेरी दुर्गा माता की। हकीकत ने भी अपने प्रत्युत्तर में उनकी रसूलजादी फातिमा को भी वैसे ही कह दिया। बस फिर क्या था? बात बच्चों-बच्चों की थी, छोटी सी थी, जो खत्म हो जानी चाहिए थी। पर बात का बतंगड़ बनाया गया, मुल्ला जी को मुस्लिम छात्रों ने कहा कि इस काफिर हकीकत राय ने हमारी रसूलजादी फतिमा को अपशब्द कहे हैं।
मुल्लाजी इस मामले को मौलवी के पास ले जाते हैं। मौलवी कहते हैं हकीकत राय एक रास्ता है, बचने का कि तू इस्लाम कबूल करले तो तेरी जो बख्शी हो सकती है, नही तो मौत की सजा मिलनी तय है। हकीकत राय धर्म परिवर्तन को मना कर देता है। मुकदमा काजी की अदालत में जाता है। हकीकत के हाथ पांवों में हथक ड़ी बेड़ी डाल दी जाती हैं, उसके बूढ़े माता-पिता भागमल और कौरा आते हैं, हकीकत से और काजी से प्रार्थना करते हैं कि हकीकत हमारे बुढ़ापे का सहारा है, इसे छोड़ दीजिए रहम करियों हकीकत राय काजी के दरबार में कहते हैं।
फकत लफ्जों का है असलियत एक है लेकिन महादेव हिंदुओं कानों वही अल्लाहां अकबर हे मदीना कानो काशी है और काशी मदीना भी न यह स्थान ईश्वर का न व अल्लाह का घर है यहां पत्थर वहां पत्थर न पत्थर से बचे तुम भ्ी यहां पर संगमर है वहां पर संगे असद है।
परंतु काजी के दरबार में इस फरियाद का कोई असर नही होता। मुकदमा नोजिम की अदालत में जाता है वहां भी मौत की सजा बरकरार रखते हुए हकीकत राय की मौत के घाट उतार दिया जाता है।
बात छोटी सी थी बच्चों की थी लेकिन धार्मिक कट्टरता के मुगल कालीन हिंदुस्तान ने हिंदू समाज निरीह था दबा कुचला था। बसंत पंचमी के दिन वीर हकीकत राय ने अपना धर्म परिवर्तन न करते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया क्योंकि कहा गया है। स्वधर्मे निघरम श्रेय: पर धर्म भयावहा:’’ की कसौटी पर खरे उतरते हुए अपने प्राणों को उत्सर्ग करने वाले ऐसे वीर हकीकत राय को नमन करते हैं। भारत की आने वाली संतति धर्मान्धता रीढ वादिता को समाप्त करते हुए उदार चरितानाम पृथ्वीयाम् सर्व मानवा का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए भारत को मिल जुलकर परम वैभव पर पहुंचाने का प्रयास करेंगे ऐसी देशवासियों से मेरी कामना है। ओउम् शांति शांति शनि।