वैदिक संस्कृति को अपनाकर ही हो सकती है विश्व शांति स्थापित : आलोक कुमार गुप्ता

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ग्रेटर नोएडा। (अमन आर्य) उगता भारत समाचार पत्र परिवार की ओर से आयोजित किए गए यजुर्वेद पारायण यज्ञ का ध्वजारोहण एसडीएम दादरी श्री आलोक कुमार गुप्ता द्वारा किया गया। जबकि दीप प्रज्जवलन की रस्म तहसीलदार दादरी श्री विवेकानंद मिश्र द्वारा पूरी की गई। उनके साथ इस अवसर पर नायब तहसीलदार सचिन कुमार पवार भी उपस्थित रहे।
अवसर पर एसडीएम दादरी श्री आलोक कुमार गुप्ता ने कहा कि भारत ने अपने आदर्श ‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम्’ के संस्कार को कभी छोड़ा नहीं और उसे अपने क्षत्रिय धर्म का एक आवश्यक अंग बनाकर इसी के आधार पर कार्य करते रहने को प्राथमिकता दी। हम उन ऋषियों की संतानें हैं, जिन्हें सृष्टि के प्रारंभ में वेदों का ज्ञान प्राप्त हुआ। अग्नि ,वायु, आदित्य और अंगिरा हमारे पूर्वज हैं। जिनके हृदय में ईश्वरीय वाणी वेद का आविर्भाव हुआ।
उन्होंने कहा कि ऋग्वेद का पहला मंत्र है कि :-

ॐअग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम् | होतारं रत्नधातमम् || 1 ||

इस प्रथम मंडल के प्रथम मंत्र की शुरुआत अग्निदेव की स्तुति से की गई है और कहा गया है कि हे अग्निदेव ! हम सब आपकी स्तुति करते है. आप ( अग्निदेव ) जो यज्ञ के पुरोहितों, सभी देवताओं, सभी ऋत्विजों, होताओं और याजकों को रत्नों से विभूषित कर उनका कल्याण करें।
उन्होंने कहा कि वैदिक संस्कृति को अपनाकर ही विश्व शांति स्थापित की जा सकती है। यज्ञ के माध्यम से मानव का स्वास्थ्य भी सुरक्षित रह सकता है। पर्यावरण संतुलन को भी ठीक किया जा सकता है और मानव रोगरहित और शोकरहित परिवेश को प्राप्त कर सकता है।
तहसीलदार दादरी श्री विवेकानंद मिश्र ने कहा कि हम अपनी संध्या में यह मंत्र बोलते हैं :-
ओं शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।शंयोरभिस्रवन्तु नः।
      जिसका अर्थ है कि सर्वव्यापक एवं सर्वप्रकाशक प्रभु ,अभीष्ट फल और  उत्तम आनंद की प्राप्ति के लिए हमें कल्याण कारी हों। प्रभु  हम पर  सदा सर्वदा  सुख की वृष्टि करें।
इस मंत्र का अभीष्ट फल हमको तभी मिल सकता है जब हम ईश्वरीय आज्ञा का पालन करते हुए अपनी रक्षा करने में स्वयं समर्थ हों।


श्री मिश्र ने कहां की वेद संपूर्ण वसुधा के लोगों को अपना परिवार मानने की शिक्षा देता है। जिसके आधार पर हम इस भाव से भर जाते हैं कि मानव जाति ही नहीं बल्कि सभी प्राणी एक ही परमपिता परमेश्वर की संतान हैं। इसलिए जाति, संप्रदाय, वर्ग आदि के झगड़ों को बढ़ावा देने की आवश्यकता नहीं है। उस एक तत्व को खोजने की आवश्यकता है जो हम सब को एक साथ जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य करता है। उन्होंने कहा कि मानवता का कल्याण संपूर्ण विश्व को श्रेष्ठ पुरुषों का समाज बनाने से हो सकता है ।जिसके लिए आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद के महान कार्य को हमें नमन करना चाहिए।

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