जम्मू कश्मीर में हिन्दुओं के अस्तित्व का यक्ष प्रश्न-2
समस्या कश्मीर नही पाकिस्तान है :
भारत यदि पाकिस्तान को खण्ड-खण्ड करके उसे समाप्त नही करेगा तो कश्मीर समस्या कभी भी हल नही होगी। समस्या कश्मीर नही, पाकिस्तान है। ऐसा नही होने पर पाकिस्तान भारत को खण्ड-खण्ड करता रहेगा। अत: अखण्ड भारत का निर्माण करना, पाकिस्तान का विघटन करना तथा जम्मू कश्मीर से धारा 370 समाप्त करके उसे पूर्ण रूपेण हिंदू बहुल प्रदेश बनाकर (विशेषकर कश्मीर घाटी को) हम वर्तमान सभी समस्याओं पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। जब भारत का कोई लौहपुरूष ऐसा वज्र निश्चय लेकर आगे बढ़ेगा तो केवल भारत में ही नही विश्व में भी उसका जय जयकार होगा।
कश्मीर समस्या का जन्म कहां से हुआ?
भारत में ब्रिटिश शासन के समय देशी रियासतों के राजा महाराजाओं का एक प्रतिनिधि संगठन बनाया गया था-चैंबर ऑफ प्रिंसेस। महाराजा हरिसिंह इसके अध्यक्ष थे। अंग्रेज चाहते थे कि भारत के राजा महाराजा स्वाधीनता आंदोलन में सम्मिलित न हों। इस निमित्त लंदन में 1931 में एक ‘गोलमेज सम्मेलन’ अंग्रेजों द्वारा बुलाया गया, जिसके पीछे एकमात्र उद्देश्य अंग्रेजों का यही था कि ‘चैंबर ऑफ प्रिंसेस’ एकमत से ब्रिटिश शासन का साथ दे और स्वाधीनता संग्राम के आंदोलन को निर्बल बना दिया जाए। महाराजा हरिसिंह की अध्यक्षता वाले ‘चेम्बर ऑफ प्रिंसेस’ ने अंग्रेजों के सामने घुटने नही टेके और स्पष्टरूप से भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को महाराजाओं ने अपना समर्थन घोषित किया। इस घटना के बाद महाराजा हरिसिंह अंग्रेजों की आंखों में चुभने लगे।
शेख मुहम्मद अब्दुल्ला द्वारा मुस्लिम कांफ्रेंस का निर्माण
इस कालखण्ड में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से पढक़र लौटा एक युवक शेख मुहम्मद अब्दुल्ला श्रीनगर के एक हाईस्कूल में अध्यापक बन गया। कुछ समय बाद किसी आरोप में शेख को विद्यालय से निष्कासित कर दिया गया। निष्कासित अब्दुल्ला ने मुस्लिम राजनीति को अपना कार्यक्षेत्र बना लिया। अब्दुल्ला ने हिंदू विरोध, गोहत्या पर प्रतिबंध का विरोध तथा महाराजा हरिसिंह का विरोध करना अपना प्रमुख उद्देश्य बनाकर मुस्लिम साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देना प्रारंभ किया। इस काम में अंग्रेज सरकार ने अब्दुल्ला को आगे बढ़ाने में सहायता की, क्योंकि उसे महाराजा हरिसिंह को अपमानित करने का इससे सरल कोई अन्य उपाय नही लगा।
1931 में ही अब्दुल्ला ने ‘मुस्लिम कांफ्रेंस’ का निर्माण किया। शेख का कार्यक्रम था-प्रत्येक ग्राम में हिंदुओं को समाप्त करना, उनकी धन संपत्ति लूटकर उन्हें पलायन के लिए विवश करना।
31 जुलाई 1931 का शुक्रवार : मीरपुर के लिए खतरे की घंटी :
इस दिन आधी रात को मुस्लिम उपद्रवियों ने हिंदू बहुल मीरपुर कस्बे को चारों ओर से घेर लिया। संयोग से उस दिन महाराजा हरिसिंह की सेना की एक टुकड़ी उधर आ गयी, इसलिए किसी प्रकार हिंदुओं का बड़ा संहार होने से बच गया। परंतु पूरे कश्मीर रियासत में लूट और हत्याओं का क्रम चलता रहा। महाराजा ने लगभग एकवर्ष में सारी स्थिति पर नियंत्रण कर लिया और शेख अब्दुल्ला व मुस्लिम कांफ्रेंस के अनेक कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया। गांवों से उजाड़े गये हिंदुओं को पुन: स्थापित किया गया। 1939 में गोपाल स्वामी आयंगर ने जम्मू कश्मीर के प्रधानमंत्री के रूप में शेख अब्दुल्ला से जेल में भेंट वार्ता की और शेख की मुस्लिम कांफ्रेंस का नाम ‘नेशनल कांफ्रेंस’ रखवाने के लिए उन्हें तैयार कर लिया। कुछ हिंदू-सिखों को भी उसमें सम्मिलित करने का निर्णय लिया गया। कुछ दिन बाद शेख को रिहा कर दिया गया।
शेख अब्दुल्ला का कश्मीर छोड़ो आंदोलन :
शेख ने 1946 में महाराजा हरिसिंह के विरूद्घ ‘कश्मीर छोड़ो’ आंदोलन चलाया जिसे पंडित नेहरू ने भी सहयोग दिया। महाराजा ने 20 मई 1946 को शेख और उनके कारिंदों को फिर जेल में डाल दिया। कांग्रेस के अधिकतर नेता शेख के इस आंदोलन के विरूद्घ थे, परंतु अकेले नेहरू जी ने जम्मू कश्मीर जाकर शेख के समर्थन में मुकदमा लडऩे की घोषणा कर दी और महाराजा से कहा कि शेख को तुरंत जेल से रिहा करो। नेहरू ने जब कश्मीर रियासत में प्रवेश किया तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
लार्ड माउंटबेटन चाहते थे कि कि कश्मीर पाकिस्तान का भाग बन जाए। उसने नेहरू जी को परामर्श दिया कि कश्मीर का विषय अपने हाथ में रखो, सरदार पटेल के पास जम्मू कश्मीर नही रहना चाहिए। इस बीच शेख अब्दुल्ला सपरिवार इंदौर चले गये और वहीं से नेहरू जी से संपर्क बनाते रहे। क्रमश: