‘विटप एवं वसुधा’
‘ये प्रथ्वी एक नगीना है,
जिसमें सबको जीना है !
इसमें सबको खाना है,
इसी मे सबको पीना है !!’
‘इस पीने की प्यास ने हमसे,
बहुत बहुत कुछ छीना है !
जीवन रूपी इस उपवन का,
हर इक पंक्षी रीना है !! ‘
‘वृक्ष काटकर हमने इस पर,
जुल्मों को जो ढाया है !
किया उत्खनन इसका हमने,
इसको बहुत सताया है !!’
‘इसी राह में न चलने को,
अब हमने बोल उठाया है !
वृक्ष लगाकर इसे सँवारें,
यही हमें अब भाया है !!’
‘वृक्षों से ही पानी मिलता,
इन्हीं से हमको छाया है !
वृक्षों से है धरा ये सुन्दर,
निर्मल सबकी काया है !!’
‘विटप लगाओ अरे प्रियेवर,
ये ईश्वर का इक साया है !
दुख दरिद्र्ता दूर होयेगी,
चहुं दिश होगी माया है !!’
कवि – ‘चेतन’ नितिन खरे
महोबा, उ.प्र.
+९१ ९५८२१८४१९५