जब भी बोलें सोच समझकर बोलें

vijender-singh-aryaबिखरे मोती भाग-66

गतांक से आगे….

परमात्मा ऐसे सत्पुरूषों के भण्डारी की स्वयं रक्षा करते हैं। इसीलिए वेद कहता है-

‘‘शतहस्त समाहर: सहस्रहस्तं सं किर:’’ अथर्ववेद 3/24/5

श्रद्घा देयम् अश्रद्घया देयम् , मिया देयम् , हिृया देयम् संविदा देयम् (तैत्तिरीय उपनिषद)

अर्थात श्रद्घा से दे, अश्रद्घा से दे, भय से दे, लज्जा से दे, वचन निभाने के लिए दे। भाव यह है कि किसी न किसी प्रकार स्वयं उपार्जित संपत्ति में से दान अवश्य कर। दान ही परमधर्म है।

 

सभी गुणों की रक्षिका,

वाणी ऐसा उपहार।

वाकसंयम के कारनै,

अपना हो संसार।। 749 ।।

 

ध्यान रहे मनुष्य की श्रेष्ठता वाकचातुर्य के साथ साथ वाकसंयम से अधिकहोती है। इसीलिए हमारे ऋषियों ने माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी बसंत पंचमी को वाग्देवी सरस्वती का ‘आविर्भाव दिवस’ मनाने की परिपाटी डाली थी। यह तिथि जहां बसंत के शुभ आगमन पर उसके स्वागत की प्रतीक है, वहां इसे ‘वागीश्वरी जयंती’ के रूप में भी जाना जाता है। प्राचीनकाल में बच्चों के विद्यारंभ का भी यह शुभ दिन माना जाता था। सरस्वती माता का वास जिह्वा  लेखनी और पुस्तक में माना गया है। इसलिए इस दिन लेखनी पूजा का तात्पर्य भी यही है। पवित्र जिह्वा सरस्वती का आसन है। अत: इसे सदा पवित्र रखें, इस पर असत्य, कटुता, निंदा, चुगली और अनर्गल प्रलाप (बकवास) की मलिनता कभी न आने दें। सही मायनों में वाणी का संयम  ही वाग्देवी सरस्वती की सच्ची पूजा है। वाग्देवी सरस्वती विद्या, बुद्घि, ज्ञान और वाणी की अधिष्ठात्री है। इसके अतिरिक्त व्यक्ति का व्यक्तित्व जिन दिव्य गुणों के कारण दीप्तिमान होता है, उनकी यह सशक्त रक्षिका भी है। यह प्रभु का अनुपम उपहार है, जो परमपिता परमात्मा ने अपनी सर्वोत्तम कृति मनुष्य नाम के प्राणी को ही प्रदान किया है। यह प्रभु प्रदत्त ऐसा अमोघ अस्त्र है, जिसके सम्यक निष्पादन से मनुष्य महर्षि तक कहलाता है, यह संसार अपना हो जाता है, इतिहास में पूजा जाता है। यथा भगवान कृष्ण की वाणी जब गीता बन गई तो आज भी पूजी जाती है और आगे भी पूजी जाती रहेगी। ऋग्वेद के 10-125 सूक्त की आठवीं ऋचा के अनुसार वाग्देवी सरस्वती सौम्य गुणों की दात्री तथा वसु, रूद्र, आदित्य आदि सभी गुणों की रक्षिका है। वाणी राष्ट्रीयता की भावना जगाती है, तथा लोकहित में संघर्ष करने की प्रेरणा भी देती है। यह अज्ञान के अंधकार को अपने ज्ञान रूपी प्रकाश से नष्ट कर देती है। इसके अनुग्रह से मनुष्य ज्ञानी, विज्ञानी मेधावी, विद्वान जननायक, लोकनायक न जाने कितने विशेषणों से विभूषित होता है।

वाक संयम के अभाव के कारण संयुक्त परिवार टूटते जा रहे हैं। यहां तक कि समाज और राष्ट्र को विघटित करने वाली शक्तियां मुखर हो रही हैं। अत: आप जब भी बोलें सोच समझकर बोलें।

ध्यान रहे यह प्रभु का दिया हुआ अमोघ अस्त्र (वाणी) आत्मघाती न हो जाए, अपितु व्यक्ति परिवार, समाज और राष्ट्र की अस्मिता की रक्षा करने वाला सिद्घ हो। तभी यह संसार आपको हेय भाव से नही अपितु श्रेय भाव से देखेगा।  क्रमश:

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