‘कमल’ की पंखुड़ी में फंसे राहुल गांधी
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भारत की संसद में बोलते हुए कहा है कि भारतीय संविधान में ‘राष्ट्र’ शब्द का कहीं प्रयोग नहीं किया गया है। कांग्रेस के नेता का कहना है कि भारत ‘यूनियन ऑफ स्टेट्स’ है ना कि एक ‘नेशन’। राहुल गांधी के प्रशंसकों ने चाहे उनके इस भाषण को कितना ही क्यों न सराहा हो, पर सच यह है कि इस प्रकार की उनकी मानसिकता ने कांग्रेस के वैचारिक दिवालियेपन को सामने लाकर पटक दिया है। देश ने समझ लिया है कि कांग्रेस किस मानसिकता से देश के भीतर देश खड़े करने की चेष्टा करते हुए देश की राष्ट्रीय भावनाओं के साथ खिलवाड़ करती रही है ? देश के लोगों ने यह भी समझ लिया है कि यदि भविष्य में सत्ता कांग्रेस के हाथों में फिर गई तो कांग्रेस के नेता राहुल गांधी किस प्रकार देश की अंतश्चेतना अर्थात राष्ट्रीय भावना को विलुप्त करने का प्रयास करेंगे ?
हमारा मानना है कि भारत को ‘यूनियन ऑफ स्टेट्स’ कहना उस दृष्टिकोण से उचित नहीं है जैसा कि सोवियत संघ के लिए कहा जाता था। वहां पर विभिन्न राज्य समूहों के द्वारा एक देश का निर्माण किया गया और जब समय आया तो उन देशों ने सोवियत संघ के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। सोवियत संघ का निर्माण किन्ही देशों या राज्य समूहों की आम सहमति के आधार पर हुआ । जबकि भारत के संदर्भ में ऐसा नहीं कहा जा सकता कि विभिन्न राज्य समूहों की सहमति के आधार पर भारत देश का निर्माण हुआ । भारत संसार का सबसे पहला देश नहीं, राष्ट्र है। इसने संसार को ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का जीवंत दर्शन दिया है। इसने संपूर्ण भूमंडलवासियों को लेकर राष्ट्र का निर्माण किया। इसकी इस विचारधारा को काट-काटकर लोगों ने विभिन्न देशों और राष्ट्रीयताओं का निर्माण किया। संपूर्ण संसार पर चक्रवर्ती सम्राटों के माध्यम से शासन करने वाले भारत के भागों को काट -काटकर ईसाइयत और इस्लाम को मानने वाले लोगों ने आज अनेकों देशों का निर्माण कर लिया है। इन लोगों ने उग्र राष्ट्रीयता को जन्म दिया है, जो एक दूसरे के विरुद्ध लड़ने लड़ाने का काम करते हैं। उनके यहां वसुधा को परिवार मानने की अवधारणा दूर-दूर तक भी नहीं है। इस प्रकार उनकी तथाकथित राष्ट्रीयताओं का अस्तित्व होने के उपरांत भी उन्हें राष्ट्र नहीं कहा जा सकता। यद्यपि भारत अपना बहुत कुछ खोने के उपरांत भी आज तक एक राष्ट्र है। क्योंकि यह सबको साथ लेकर चलने में विश्वास रखता है और संपूर्ण भूमंडल के निवासियों को यहां तक कि प्राणीमात्र के हितार्थ चिंतन यदि किसी के पास में है तो वह केवल भारत के पास है।
राहुल गांधी जैसे नेताओं के साथ सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि वह भारत के मूल को जानने में पूर्णतया असफल रहे हैं। भारत के वैदिक चिंतन को उन्होंने छुआ तक नहीं है । जिसमें अनेकों स्थानों पर राष्ट्र शब्द का प्रयोग किया गया है। यह तब और भी अधिक प्रशंसनीय और महत्वपूर्ण हो जाता है जबकि संसार के सभी विद्वान वेदों को संसार की सबसे पहली पुस्तक स्वीकार करते हैं। यहां पर यह बताने की कोई आवश्यकता नहीं है कि वेदों में विश्वास रखने की यदि सबसे अधिक संभावनाएं कहीं हैं तो वे केवल भारतवर्ष में हैं। भारत को ‘वेदों वाला देश’ कहा जा सकता है। ऐसे में भारत में राष्ट्र की अवधारणा ना हो या राष्ट्र के बारे में लोगों का चिंतन ना हो – यह कैसे कहा जा सकता है ? इस प्रकार राहुल गांधी जैसे नेता का देश की संसद के भीतर खड़े होकर देश को ‘यूनियन ऑफ स्टेट्स’ कहना और यहां पर ‘नेशन’ की कोई अवधारणा ही ना होने की बात कहना बहुत दुखद है।
भारत में विभिन्न कालों में अनेक आंचलिक विविधताएं विकसित होती चली गईं। कभी किसी राजा ने तो कभी किसी सुल्तान ने या किसी बादशाह ने अपने संप्रदाय या मजहब को प्रमुखता देते हुए इन विविधताओं को और भी अधिक पाला पोसा तो कभी अन्य दूसरे ऐतिहासिक या भौगोलिक कारणों से ऐसी विविधताएं जन्म लेती चली गईं। स्पष्ट रूप से इन विविधताओं ने देश की मूल सांस्कृतिक विरासत अर्थात वैदिक संस्कृति को बहुत क्षति पहुंचाई । यहां तक कि देश का बंटवारा भी एक बार नहीं कई बार मजहब के आधार पर होता चला गया। जब देश का संविधान बना तो देश के संविधान निर्माताओं ने भारत की ‘सामासिक संस्कृति’ को बढ़ावा देने पर विचार किया और उसके लिए आवश्यक प्राविधान संविधान में किया। सामासिक संस्कृति को बढ़ावा देने का अभिप्राय है कि हम देश की वैदिक विचारधारा को प्रोत्साहित करेंगे और उसके मूल्यों को अपनाकर देश, समाज व राष्ट्र का निर्माण करने में अपनी विशिष्ट भूमिका का निर्वाह करेंगे।
देश के संविधान निर्माताओं ने यह भी समझा था कि जब- जब केंद्र कमजोर हुआ है तब-तब देश को तोड़ने वाली शक्तियों ने उत्पात मचाया है । इसलिए केंद्रीय सत्ता को मजबूत करने के लिए उन्होंने ‘यूनियन ऑफ स्टेट्स’ की बात कहकर भी केंद्र को शक्तिशाली बनाने के लिए उसे विभिन्न शक्तियों से सुसज्जित किया है। धारा 356 का प्रावधान इसीलिए किया गया। यद्यपि राहुल गांधी की दादी इंदिरा गांधी ने धारा 356 का एक बार नहीं, कितनी ही बार अनुचित प्रयोग किया। इसके उपरांत भी इस धारा को संविधान से हटाने का कांग्रेस सहित किसी भी सरकार ने कभी निर्णय लेना उचित नहीं माना। क्योंकि यह किसी भी अलगाववादी प्रांत या देश या किसी भी अंचल को सुधारने और देश की मुख्यधारा में उसे जोड़े रखने का एक कारगर हथियार है। यदि ‘यूनियन ऑफ स्टेट्स’ का अर्थ यह होता कि कोई भी राज्य जब चाहे देश से अलग हो सकता है तो देश के संविधान में धारा 356 के प्रावधान को स्थापित करने की आवश्यकता संविधान निर्माताओं को कभी नहीं होती। देश के संविधान निर्माताओं ने इस धारा का संविधान में प्रावधान ही इसलिए किया कि वे राष्ट्र की भारतीय अवधारणा को चोटिल करने के पक्षधर नहीं थे और किसी भी स्टेट या राज्य या प्रांत को ऐसे अधिकार देना उचित नहीं मानते थे जो देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा पैदा कर सकता है।
राहुल गांधी इस समय सत्ता के लिए उतावले हैं और अपने इसी उतावलेपन के लिए वे देश के किसी भी स्टेट, वर्ग ,संप्रदाय या आंदोलनकारी लोगों को केंद्र के विरुद्ध इसलिए उकसाते हैं कि ऐसा करके वे सत्ता में शीघ्र पहुंचने में सफल हो जाएंगे।
यही कारण है कि कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को ‘टुकड़े टुकड़े गैंग’ के लोगों से हाथ मिलाने में भी इस समय कोई परेशानी नहीं दिखाई देती है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसीलिए कहा है कि कांग्रेस आज टुकड़े-टुकड़े गैंग की नेता हो गई है। उन्होंने ‘भारत राष्ट्र नहीं है’ वाले बयान पर राहुल गांधी को उन्हीं के पड़नाना और देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के कथन से जवाब दिया। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी विभाजनकारी राजनीति पर आगे बढ़ रही है। मोदी ने कहा कि कांग्रेस को अब लग गया कि उसे सत्ता मिलनी नहीं है, इसलिए वह अब जितना संभव हो, बिगाड़ने में जुट गई है। मोदी ने राहुल का नाम लिए बिना कहा कि सदन में तमिल भावानओं का भड़काने की कोशिश की गई है। मोदी ने चेतावनी दी कि इतिहास में जिसने भी भारत को नुकसान पहुंचाना चाहा, उसने कुछ-न-कुछ जरूर खोया है जबकि भारत अजर-अमर है और आगे भी रहेगा।
सचमुच भारत सनातन राष्ट्र है। क्योंकि यह सनातन में विश्वास रखता है और यह सनातन से, सनातन के द्वारा, सनातन के लिए बना है, अर्थात सनातन के लिए ही काम करते रहने के लिए बना है। इसके सनातन मूल्यों को किसी कल परसों के नेहरू गांधी के विचारों से तोड़ा मरोड़ा नहीं जा सकता। इसका कोई पिता नहीं। यह सनातन है और सनातन होने के कारण परमपिता परमेश्वर ही इसका पिता है। यही इसके लोकतंत्र की खूबसूरती है। क्योंकि जैसे ईश्वर सबके साथ न्याय करता है वैसे ही भारत की सनातन राज्य-व्यवस्था सब के साथ न्याय करने वाली होती है। इसी विचारधारा से भारतीय राष्ट्र का निर्माण होता है। अपने शाश्वत सनातन मूल्यों की रक्षा के लिए और वैदिक ज्ञान की रक्षा के लिए यह राष्ट्र तब तक काम करता रहेगा जब तक यह सृष्टि है। भारत के सनातन शाश्वत मूल्यों के बारे में राहुल गांधी जैसे नेता से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वे इन्हें समझ पाएंगे। यही कारण है कि वह भारत के संविधान की मूल आत्मा को भी समझने में असफल रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को उनके परनाना नेहरू के एक भाषण का एक उद्धरण भी याद दिलाते हुए कहा कि यह जानकारी बेहद हैरत में डालने वाली है कि बंगाली, मराठे, गुजराती, तमिल, आंध्र, उड़िया, असमी, कन्नड़, मलयालयी, सिंधी, पंजाबी, पठान, कश्मीरी, राजपूत और हिंदुस्तानी भाषा भाषी जनता से बसा हुआ विशाल मध्य भाग कैसे सैकड़ों वर्षों से अपनी अलग पहचान बनाए हैं, इसके बावजूद इन सबके गुण-दोष कमोबेश एक से हैं। इसकी जानकारी पुरानी परंपरा और अभिलेखों से मिलती है। साथ ही, इस पूरे दौरान वे स्पष्ट रूप से ऐसे भारतीय बने रहे जिनकी राष्ट्रीय विरासत एक ही थी और उनकी नैतिक और मानसिक विशेषताएं भी समान थीं।
पीएम ने कहा, ‘हम भारतीयों की विशेषता बताते हुए इस कोटेशन में दो शब्द गौर करने वाले हैं- राष्ट्रीय विरासत। यह कोट पंडित नेहरू जी की है। ये बात कही थी नेहरू जी ने और उनकी किताब ‘भारत की खोज’ में है। हमारी राष्ट्रीय विरासत एक है, हमारे नैतिक और मानसिक विशेषताएं एक है। क्या बिना राष्ट्र के यह संभव है? इस सदन का यह कहकर भी अपमान किया गया कि हमारे संविधान में राष्ट्र शब्द नहीं आता।’
हम यहां पर यह भी कहना चाहेंगे कि कांग्रेस ने अपने इतिहास को लिखवाते समय अनेकों बार इस बात पर बल दिया है कि उसने भारत में राष्ट्र और राष्ट्रवाद की भावना को बलवती किया ।उसने अपने आंदोलन को भी राष्ट्रीय आंदोलन कहकर महिमामंडित करने का प्रयास किया है। यदि कांग्रेस के इतिहासकार और कांग्रेस के नेता अपने आंदोलन को राष्ट्रीय आंदोलन कहते रहे हैं तो यह बात राहुल गांधी की समझ में क्यों नहीं आई कि हमारे देश में संविधान बनने से पहले भी राष्ट्र की भावना थी और वह कश्मीर से कन्याकुमारी व कामरूप से कंदहार तक समान रूप से पाई जाती रही है।
लगता है कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने देश के सांस्कृतिक इतिहास का गुड़ गोबर करने का ठेका ले लिया है। बड़े घराने में पैदा होने का अर्थ बड़ा होना नहीं होता है। बात सही है कि बड़ा बनने के लिए आंदोलन करने पड़ते हैं, सड़क पर उतरना पड़ता है, अनेकों प्रकार के पापड़ बेलने पड़ते हैं , अनेकों लोगों की शागिर्दी करनी पड़ती है , अनेकों लोगों से उनके अनुभवों का ज्ञान अर्जित करना पड़ता है। निश्चय ही राहुल गांधी के पास बड़े घर में पैदा होने के अतिरिक्त अन्य कोई ऐसी विशेषता नहीं है जिससे उन्हें बड़ा कहा जा सके। हो सकता है उनके इसी मानसिक दिवालियापन के कारण लोगों ने उन्हें ‘पप्पू’ कहना आरंभ कर दिया है। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि वे स्वयं भी पप्पू बने रहना चाहते हैं। पप्पू की परिधि से बाहर निकलने के लिए संघर्ष करने वाले राहुल गांधी की चाहे देश में उनके अनेकों प्रशंसक प्रतीक्षा कर रहे हों, परंतु राहुल गांधी स्वयं ‘पप्पू’ के घरौंदे में अपने आपको कैद किये रखना चाहते हैं ।
संस्कृत के कवि ने कहा है कि :-
रात्रिर्गमिष्यति भविष्यति सुप्रभातम् भास्वानुदेष्यति हसिष्यति पंकजश्रीः।
इति विचारयति कोषगते द्विरेफे हा हंत हंत नलिनीं गज उज्जहार॥
एक भौंरा जो कि कमल की पंखुड़ी में फंसकर रह गया है, वह कह रहा है कि रात चली जाएगी, सुनहरी सुबह होगी, उसके पश्चात सूर्य उदय होगा, कमल मुस्कुराएंगे (तो मैं भी बाहर की दुनिया का आनंद लूंगा।) परंतु यह क्या ? भौंरा अभी ऐसा सोच ही रहा था कि इतने में ही एक मदमस्त हाथी आया और उसने जिस कमल की पंखुड़ी के भीतर भौंरा कैद था, उसे उखाड़कर समाप्त कर दिया।
कहीं राहुल गांधी भी उसी भौंरे की तरह सुनहरा सपना तो नहीं देख रहे हैं कि नरेंद्र मोदी को लोग सत्ता से बाहर करेंगे, मुझे प्रचंड बहुमत मिलेगा और मैं सत्ता की सुंदरी पर सवार होकर देश पर शासन करूंगा ? यदि वह ऐसा सोच रहे हैं तो उन्हें भी यह ध्यान रखना चाहिए कि जैसे मदमस्त हाथी ने कमल के पौधे को उखाड़कर नष्ट कर दिया और भौंरे के सपने सपने ही रह गए, वैसे ही मौत का मदमस्त हाथी भी बाहर घूम रहा है। बिना पुरुषार्थ, बिना परिश्रम और बिना ठोस चिंतन के काम किए बिना लिए गए सपने सपने ही रह जाते हैं? कब मौत का मदमस्त हाथी झपट्टा मारकर सारा खेल बिगाड़ देगा ? – कुछ कहा नहीं जा सकता।
वैसे यह सच है कि राहुल गांधी इस समय ‘कमल’ की पंखुड़ी में फंस चुके हैं। इससे बाहर निकलने के लिए वह जितना ही छंटपटाएंगे, ‘सुबह’ उनसे उतनी ही दूर होती जाएगी। वह अभिमन्यु की भांति चक्रव्यूह में प्रवेश करना जानते हैं, निकलना नहीं। उनके लिए ‘कमल की पंखुड़ी’ इस समय एक चक्रव्यूह बन चुकी है ।जिसमें वह प्रवेश तो कर गए हैं पर बाहर निकलने के लिए उन्हें रास्ता नहीं मिल रहा है। दु:ख की बात यह है कि उन्हें उनके ही महारथी मिलकर मारने की तैयारी कर रहे हैं अर्थात सारा विपक्ष कांग्रेस के नेता को कमल की पंखुड़ियों से बाहर निकालने में सहायता देने की बजाय उनकी ‘मौत’ का इंतजार कर रहा है। कांग्रेस और कांग्रेस का नेता जैसे-जैसे दम तोड़ते जा रहे हैं, वैसे वैसे ही कांग्रेस के विपक्षी साथी आनंद की अनुभूति कर रहे हैं।
ऐसे में राहुल गांधी को अज्ञानता भरे भाषण देने की बजाए देश के सामने उस चिंतन को प्रस्तुत करना चाहिए जिससे देश का ही नहीं बल्कि मानव मात्र का कल्याण हो सकता है। सस्ती राजनीति और सस्ती लोकप्रियता हमेशा अच्छी नहीं होती।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत