“हँस के लिया पाकिस्तान कहने वाले सुनो ! “—-“नही मिलेगा हिंदुस्तान, जाना होगा पाकिस्तान “(भाग —३) इंजीनियर श्याम सुन्दर पोद्दार —————————————
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३१ जनवरी को सावरकर के घर की तलाशी ली गयी। उनके १० हज़ार पत्र पुलिस जब्त करके ले गई। १ फ़रवरी १९४८ से लेकर ५ फ़रवरी तक समस्त देश में हिन्दु महासभा तथा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेताओं एवं कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी का भीषण दौर चला। जिस पर तनिक भी संदेह हुआ अथवा किसी कांग्रेसी को किसी साधारण व्यक्ति से अपना बैर चुकाना था तो उसको हिन्दूसभाई बनाकर बंदी बनवा दिया। इस प्रकार २५ हज़ार लोगों को जबरन जेल में ठूँस दिया गया। उनमें बहुत से तो समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति भी थे। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर प्रतिबंध भी लगा दिया गया।
हिन्दु महासभा के सर्वोच्च नेता व भारतीय राष्ट्रीय सेना के रूपकार वीर सावरकर जी को बिना किसी कारण के ५ फ़रवरी १९४७ को मुँह अंधेरे पुलिस की गाड़ी आई और पुलिस अधिकारी ने सावरकर जी से कहा “बम्बई पब्लिक सिक्योरिटी मेजर्स ऐक्ट में आपको बंदी बनाया जा रहा है। इसके पहले ४ फ़रवरी की रात्रि एक डॉक्टर ने आकर उनका निरीक्षण -परीक्षण किया तथा बता दिया कि सावरकर सब प्रकार से स्वस्थ हैं। जबकि विगत एक वर्ष से सावरकर क्षीण ज्वर व हृदय की पीड़ा से ग्रस्त थे। जिस समय डॉक्टर उनका निरीक्षण कर रहा था उस समय भी उनको ज्वर था। यह क़ानून तो नेहरू के उन गुंडों
पर लगाना चाहिए था जिन्होंने गोडसे की जाति के १७००० चितपावन ब्राह्मणों की हत्या की। सावरकर को आर्थर रोड काराग़ार में रक्खा गया। ५ फ़रवरी १९४८ से २३ मार्च १९४८ तक उनकी पत्नी व पुत्र को उनसे भेंट करने नही दिया। उनके विषय में किसी को कोई समाचार नही मिलता था कि वे कहाँ हैं ? बहुत दिनों तक सावरकर पर आरोप भी नही लगाये जा सके।
अंत में ११ मार्च १९४८ को दिल्ली के मजिस्ट्रेट के आदेश से गाँधी वध षडयंत्र में सावरकर को प्रमुख बता कर उन्हें पुनः आर्थर रोड कारागार में लाया गया। उनकी ज़मानत की प्रार्थना अस्वीकार कर दी गई। हाँ, उनके वकील श्री देवधर को इस बात में सफलता मिली कि उनकी पत्नी व पुत्र उनसे भेंट कर सकते हैं। उनके प्रयत्न से सावरकर अपने पुत्र को अपने घर के संचालन हेतु ” पावर आफ अटर्नी”देने में सफ़ल रहे।
२४ मई १९४८ सावरकर को दिल्ली लाया गया तथा लाल क़िले में अन्य अभियुक्तों के साथ बंदी बना कर रखा गया। सावरकर की ब्रिटिश सरकार द्वारा जब्त सम्पति महाराष्ट्र के गृहमंत्री मोरारजी देसाई ने वापस करने से यह कहकर इनकार कर दिया कि सावरकर ने पहले से भी गम्भीर अपराध किया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में डॉक्टर अम्बेडकर को गाँधी हत्या में झूठा फंसाने का प्रतिवाद किया। नेहरू ने डॉक्टर अम्बेडकर से कहा “I want blood of Savarkar”। डॉक्टर अम्बेडकर ने नेहरू को जवाब दिया कि तुम सावरकर का बाल बाँका भी नही कर सकते। डॉक्टर अम्बेडकर ने सावरकर के वकील से मिलकर कहा कि घबराओ नही, नेहरू ने सावरकर को झूठा फँसाया है। राष्ट्रीय स्वयम सेवक संघ पर भी ४ फ़रवरी १९४८ को प्रतिबंध लगा दिया गया। वैसे तो इन २५ हज़ार क़ैद किये गये कार्यकर्ताओं में बहुसंख्यक हिन्दू महासभा के थे, पर राष्ट्रीय स्वयम सेवक संघ के भी कम नही थे। जिनमें से बाद में बहुत से छोड़ दिए गए। पर ५०० स्वयंसेवकों को फिर भी बंदी बना कर रखा। संघ ने पटेल के कहे अनुसार अपना संविधान बनाने पर संघ पर से प्रतिबंध हटा दिया गया। पर हिन्दु महासभा के प्रति १९५२ के चुनाव तक नेहरू -पटेल का शख़्त रवैया रहा। हिन्दु महासभा के सावरकर के अलावा सभी के सभी सर्वोच्च नेता यथा महंत दिग्विजयनाथ,आशुतोष लाहिरी,प्रोफ़ेसर राम सिंह देशपांडे, निर्मल चंद् चटर्जी अन्य सारे ज़ैल में डाल दिए गए। क़ानून उनके पक्ष में था इसलिए वे अदालत से छूट जाते, पर उन्हें फिर गिरफ़्तार कर लिया जाता। हिन्दु महासभा के कार्य कर्ताओं पर सरकार लाठी चार्ज करती। वे मिठाइयाँ बाँट रहे थे । सरकार के देश विभाजन जैसे ग़द्दारी पूर्ण कार्य का प्रतिवाद करने को वे घृणा फैला रहे थे। संघ का सामूहिक गीत पाठ भी अपराध था।
नेहरू के समान पटेल भी हिन्दू महासभा के मामले में समान दोषी हैं। पटेल नेहरू के हिन्दु महासभा पर किये जा रहे अत्याचारों में इसलिए साथ दे रहे थे क्योंकि नेहरू तो टेम्परेरी प्रधानमन्त्री था। बाद में तो पटेल को ही होना था। कांग्रेस अध्यक्ष जो चुना जायेगा, वही कांग्रेस का प्रधानमंत्री बनेगा। नेहरू कॉंग्रेस का बहुत छोटा सा नेता था। उससे बड़े सरदार पटेल तो थे डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद,आचार्य कृपलानी नेहरू से कांग्रेस में बहुत बड़ा क़द रखते थे। अंग्रेजों ने गाँधी से साफ़ साफ़ कह दिया कि हम पटेल के हाथ में सत्ता नही देंगे, नेहरू के हाथ में देंगे। इस बात का खुलासा गाँधी ने ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ के सम्पादक के एक प्रश्न के उत्तर में दिया था। एक मात्र नेहरू ही हमारे कैम्प में अंग्रेजों का आदमी था ।(Nehru was the only Englishman in our camp). यदि राजगोपलाचारी पटेल की मृत्यु पर यह नही कहते पटेल को तो प्रधान मन्त्री बनना था। यानी नेहरू अस्थायी प्रधानमन्त्री था।
पटेल ने गाँधी वध के २८ दिन बाद नेहरू को २७ फरवरी १९४८ के लिखे पत्र में लिखा कि इस कांड में सिर्फ़ दस आदमी संलिप्त हैं जिनमें से ८ पकड़ लिये गये हैं और २ भागे हुवे हैं। तब पटेल से सवाल पूछता हूँ कि २५००० हिन्दु महासभा व संघ के कार्यकर्ताओं को १९५१ तक जेल में बंदी बना कर क्यों रखा? पटेल ने डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के एरिक्वेस्ट वे दिल्ली में हिन्दु महासभा की कार्यकारिणिकी सभा बुलाना चाहते हैं। पटेल ने मना कर दिया। डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने ४ मई १९४८ को पटेल को लिखे पत्र में सावरकर के बारे में लिखा कि ऐसा न हो , उनको मत विरोध के चलते दंडित किया जा रहा हो ? पटेल ने इसके उत्तर में ६ मई १९४८ को जवाब दिया कि ऐसा कभी भी नही होगा। मैं स्वयं इस केस को देख रहा हूँ। मैंने साफ़ – साफ़ आदेश दे दिया है। सावरकर का गाँधी हत्या मामले में निष्कलंक बरी हो जाना व जज अतमाचरण का यह निर्णय दुर्भाग्यपूर्ण है। नेहरू-पटेल के मुँह पर ज़बरदस्त तमाचा है। नेहरू यही शांत नही हुए। सावरकर के लाल क़िला से निकलने को देखने के लिये ३ लाख हिंदू लाल क़िले पर इकट्ठे हो गए। नेहरू ने मजिस्ट्रेट के आदेश से लालक़िले के बाहर जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया ?
इतना ही नही कुछ घंटो बाद “Punjab Public Security Majors Act”उन पर लागू करके तीन मास तक उनके दिल्ली मे प्रवेश व निवास पर प्रतिबंध लगा दिया।गुपचुप तरीक़े से रेल में सावरकर जी को बैठा कर नेहरू सरकार ने उन्हें बम्बई पहुँचाया।
उनके घर से निकलने पर प्रतिबन्ध लगा दिया। कुछ समय बाद पंजाब पब्लिक सिक्यरिटी मेजर्स ऐक्ट लगा कर तीन महीने के लिये दिल्ली में रहने व प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया। नेहरू सरकार गुप-चुप तरीक़े से रेल द्वारा इन्हें बम्बई पहुँचाई। १९४९ कलकत्ता में सम्पन्न हुए हिन्दू महासभा सम्मेलन में उमड़े जनसैलाब को देखकर नेहरू घबड़ा गया। १९५० में झूठा आरोप हिंदुओं को मुसलमानों के विरुद्ध भड़काने के आरोप में बन्दी बना लिये गये। बेल में सरकार ने शर्त लगा दी कि आप राजनीति नही कर सकते। ब्रिटिश भारत में भी राजनीति करने पर प्रतिबंध। स्वाधीन भारत में भी प्रतिबंध। यही है नेहरू का गणतंत्र ? १९५२ के चुनाव के कुछ महीना पहले यह प्रतिबंध हटा। नाथूराम गोडसे सुभाष वादी था। इसलिए जिस समाचार पत्र का वह संचालन करता था उसका नाम अग्रणी था means Forward। वह पाकिस्तान में हिंदुओं पर हो रहे जुर्म प्रकाशित करता था। नेहरू-पटेल सरकार ने प्रेस सेन्सरसिप ऐक्ट कड़ाई से लागू कर रखा था, ताकि पाकिस्तान में चल रहे हिंदुओं का नरसंहार हिंदुस्तान के समाचार पत्रों में प्रकाशित न हो सके। नाथूराम गोडसे गाँधी को मारने दिल्ली नही आया था, उसके समाचार पत्र पर मोरारजी देसाई ने बड़ी पेनल्टी लगा दी थी। उसी की शिकायत गृहमंत्री से करने आया था। बाद में दिल्ली में पाकिस्तान से आये हिन्दुओं की हालत देख कर विचलित हो गया। उस हालत का एक मात्र ज़िम्मेदार गाँधी को मानकर गाँधी को मार डाला।
नेहरू हिन्दु महासभा के साथ इतना करने पर भी कांग्रेस की जीत के प्रति आश्वस्त नही थे। जिन्ना ने स्पष्ट घोषणा कर दी थी कि हिन्दु मुसलमानों की अदला बदली करो। हमारे पाकिस्तान में हम हिन्दुओं को रहने नही देंगे। नही करोगे तो नोवाखाली की तरह क़त्ले आम करेंगे । उसने जिन्ना की घोषणा अनसुनी कर दी। जिन्ना हिंदुओं का क़त्ले आम पाकिस्तान में आराम से करे हिंदुस्तान में प्रेस सेन्सर शिप लागू कर दी। जिन्ना ने २० लाख हिंदुओं को मौत के घाट उतार दिया। पाकिस्तान लगभग हिन्दु शून्य कर डाला। नेहरू-पटेल का १९५२ में अपनी हिन्दु महासभा के सामने हार से भयभीत थे वे जानते थे कि १९४५ में हिन्दु महासभा को १४ प्रतिशत वोट मिले थे जो कांग्रेस के हिंदुओं के साथ विश्वासघात के बाद हिन्दु महासभा को ही मिलने हैं।
इतना ही नही, भारत का विभाजन कराके पाकिस्तान बनाने वाली मुस्लिम लीग के नेता जिन्होंने ग्रेट कलकत्ता किलिंग, नोवाखाली हिन्दु किलिंग पंजाब उत्तर प्रदेस बम्बई हिन्दू किलिंग किया बची हुई मुस्लिम लीग को कांग्रेस में मिला दिया। उनके नेताओं को केंद्रीय मंत्री, राज्यों में मंत्री , गवर्नर और राजदूत बनाया।