मोहर्रम के अवसर पर रक्तदान किए जाने की मुहिम
निर्मल रानी
पिछले दिनों भारत सहित पूरे विश्व में दसवीं मोहर्रम अर्थात् यौम-ए-आशूरा के अवसर पर शहीद-ए-करबला हज़रत इमाम हुसैन व उनके परिजनों की शहादत को याद करते हुए विपभिन्न प्रकार के शोकपूर्ण आयोजन किए गए। खासतौर पर शिया समुदाय के लोगों द्वारा इस अवसर पर पारंपरिक रूप से ज़ंजीरों व तलवारों का मातम करते हुए हज़रत इमाम हुसैन को रक्तांजलि अर्पित की गई। शिया समुदाय के लोगों द्वारा मोहर्रम के अवसर पर अपना खून अपने ही हाथों से बहाकर हज़रत इमाम हुसैन की शहादत के गम में स्वयं को शरीक करने की परंपरा हालांकि सदियों पुरानी हो चुकी है। परंतु समय बीतने के साथ-साथ शिया समुदाय में सक्रिय अनेक उदारवादी व्यक्तियों की सक्रियता के परिणामस्वरूप अब रक्तांजलि अर्पित करने के इस तौर-तरीके में अमूल परिवर्तन आते देखा जा रहा है। तमाम सकारात्मक व उदारवादी सोच रखने वाले शिया विचारकों का मानना है कि यदि मोहर्रम के अवसर पर हज़रत इमाम हुसैन के नाम पर रक्तदान शिविर आयोजित किए जाएं तो ऐसा करना एक कल्याणकारी कदम होगा। ऐसा करने से रक्तदाता हज़रत इमाम हुसैन को अपनी श्रद्धांजलि भी दे सकेंगे तथा रक्तदान करने से किसी ज़रूरतमंद व्यक्ति की जान भी बचाई जा सकेगी। ऐसे लोगों का मानना है कि यह कदम सामाजिक सौहार्द्र की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम होगा तथा हज़रत इमाम हुसैन की शहादत के विषय में आम लोगों में जानने की जिज्ञासा भी बढ़ेगी।
मोहर्रम के अवसर पर रक्तदान किए जाने की मुहिम गत् एक दशक से भारतवर्ष में काफी तेज़ी से फैलती जा रही है। इस मुहिम की एक विशेषता यह भी है कि जो लोग ज़ंजीरों व तलवारों का मातम कभी भी नहीं करते अथवा करने से हिचकिचाते हैं वे भी स्वेच्छा से रक्तदान करने हेतु तैयार हो जाते है। खासतौर पर शिया समुदाय का शिक्षित वर्ग मुख्यतया इस अभियान के महत्व को समझता है तथा इसे आगे बढ़ाए जाने का पक्षधर है। दिल्ली,लखनऊ, बाराबंकी,इलाहाबाद,हैदराबाद,कश्मीर, कारगिल,अलीगढ़ तथा कानपुर जैसे कई सथानों से मोहर्रम के अवसर पर शिया समुदाय के लोगों द्वारा रक्तदान किए जाने के समाचार आते रहते हैं। और प्रत्येक वर्ष रक्तदाताओं की संख्या में वृद्धि भी दर्ज की जा रही है। शिया समाज से संबंध रखने वाले मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य तथा प्रखर विद्वान एवं धर्मगुरु मौलाना कल्बे सादिक़ साहब जैसे ज्ञानी व्यक्ति जहां मोहर्रम के अवसर पर रक्तदान किए जाने की मुहिम को तेज़ी से आगे बढ़ाने हेतु शिया समाज में समय-समय पर जागरूकता फैलाने का काम कर रहे हैं वहीं लेखक एवं स्तंभकार तनवीर जाफरी भी अपने लेखों के द्वारा गत् कई वर्षों से मोहर्रम पर रक्तदान किए जाने की आवश्यकता के महत्व को जन-जन तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। इन जैसे अनेक लोगों की सक्रियता तथा उनकी इस मुहिम के प्रति सकारात्मक सोच का ही परिणाम है कि मोहर्रम पर रक्तदान करने की मुहिम काफी तेज़ी से आगे बढ़ रही है।
परंतु बड़े दु:ख का विषय है कि जहां शिया समाज इस मुहिम को राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित करने तथा मोहर्रम का एक ज़रूरी अंग बनाए जाने की कोशिश में लगा हुआ है वहीं रक्त संग्रह करने वाली सरकारी संस्थाओं द्वारा इस संबंध में की जाने वाली अनदेखी निश्चित रूप से आश्चर्य एव चिंता का विषय है। गत् 6 नवंबर को यौम-ए-आशूरा के मौके पर शिया समुदाय द्वारा रक्तदान किए जाने के स्थानों में एक और नया नाम जुडऩे वाला था बिहार राज्य के दरभंगा जि़ले के चंदनपट्टी गांव का। शिया (सैय्यद)बाहुल्य गांव में दसवीं मोहर्रम के अवसर पर विशाल जुलूस बरामद किया जाता है। जिसमें सैकड़ों युवक ज़ंजीरों व तलवारों का मातम कर हज़रत इमाम हुसैन को अपनी श्रद्धापूर्ण रक्तांजलि भेंट करते हैं। इस वर्ष भी यह आयोजन प्रत्येक वर्ष की भांति किया गया। इस वर्ष चंदनपट्टी के शिया मोर्चा द्वारा जहां हिंदी भाषा में भारत के गैर मुस्लिम प्रतिष्ठित हस्तियों के हज़रत इमाम हुसैन के प्रति व्यक्त किए गए उद्गार का उल्ल्ेाख करने वाले परचे गैर मुस्लिम लोगों को प्रसाद के साथ बांटे गए वहीं शिया समाज के एक वर्ग ने इस अवसर पर रक्तदान करने की योजना भी बनाई। इस योजना को कार्यरूप देने हेतु चंदनपट्टी के स्थायी निवासी तथा अलीगढ़ में डॉक्टरी का पेशा अंजाम दे रहे डा.वसी जाफरी अपने साथियों के साथ दरभंगा स्थित मेडिकल कॉलेज के ब्लड बैंक विभाग के अधिकारियों से जाकर मिले तथा उन्हें यौम-ए-आशूरा के दिन सामूहिक रक्तदान करने की अपनी योजना से अवगत कराया। आश्यर्च की बात है कि इस विभाग के संबद्ध लोगों ने सामूहिक रक्तदान किए जाने की इस मुहिम को प्रोत्साहित करने तथा इसमें अपना सहयोग दिए जाने के बजाए यह कहकर टालमटोल करने की कोशिश की चूंकि िफलहाल विभाग के लोग छठ की छूट्टी पर गए हुए हैं लिहाज़ा सरकारी तौर पर रक्त संग्रहण किए जाने का कार्य नहीं हो सकता। इन कर्मचारियों ने मोहर्रम की छुट्टी का हवाला देते हुए भी यह बहाना किया कि मोहर्रम की छुट्टी के कारण भी स्टाफ उपलब्ध नहीं हो सकेगा। दरभंगा मेडिकल कॉलेज के ब्लड बैंक विभाग के लोगों की इस आनाकानी के परिणामस्वरूप शिया समुदाय के सैकड़ों रक्तदाता खासतौर पर नवयुकों को बड़ी मायूसी हाथ लगी और इसी लापरवाही के चलते रक्तदान करने की योजना धरी रह गई।
अब टालमटोल करने वाले इन लापनवाह व गैर जि़म्मेदार कर्मचारियों को यह बात कौन समझाए कि पूरे देश में मोहर्रम के अवसर पर सरकारी अवकाश होता है। उसके बावजूद ब्लड बैंक कर्मचारी मोहर्रम के अवसर पर लगने वाले रक्तदान शिविर में जाकर पूरी मुस्तैदी के साथ रक्त का संग्रहण करते हैं। फिर आिखर दरभंगा मेडिकल कॉलेज के रक्त विभाग के कर्मचारियों द्वारा छुट्टी का बहाना गढऩे का औचित्य क्या है? इस प्रकार तो कभी भी रक्तदान शिविर आयोजित नहीं हो सकेगा। क्योंकि मोहर्रम का अवकाश तो प्रत्येक वर्ष ही होता रहेगा्? कितने अफसोस की बात है कि कहां तो सरकारी स्तर पर पूरे देश में आम लोगों को रक्तदान हेतु प्रेरित किए जाने की मुहिम प्रत्येक स्तर पर चलाई जाती है। सरकार द्वारा इसके प्रचार में खर्च किए जाने हेतु करोड़ों रुपये का बजट निर्धारित किया जाता है। न केवल दुर्घटना में घायल लोगों तथा बीमार व्यक्तियों के जीवन की रक्षा हेतु हर वक्त रक्त की आवश्यकता होती है बल्कि हमारे देश के सैनिकों तथा सुरक्षाकर्मियों को भी किसी भी समय रक्त की आवयकता पड़ती रहती है। इस ज़रूरत को पूरा करने के लिए ही समय-समय पर देश के तमाम सामाजिक संस्थानों,संगठनों,विश्वविद्यालयों,महाविद्यालयों द्वारा किसी न किसी अवसर पर रक्तदान शिविर का आयोजन होता रहता है। इतना ही नहीं बल्कि देश में कई संस्थाएं तो ऐसी भी हैं जो रक्तदाताओं को समय-समय पर उनके इस महान कार्य के लिए सम्मानित भी करती रहती हैं ताकि रक्तदाताओं का भी मनोबल बढ़ सके। और दूसरे लोग भी इससे प्रेरित होकर रक्तदान में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले सकें। परंतु ऐसा सुनने में तो कभी भी नहीं आया कि रक्तदाता तो स्वेच्छा से रक्त दान करने हेतु उपलब्ध हैं परंतु रक्त संग्रह कर्ता टालमटोल कर रक्त संग्रहण नहीं करना चाह रहे। यह मिसाल संभवत: पहली बार इस वर्ष मोहर्रम के अवसर पर दरभंगा मेडिकल कॉलेज के ब्लड बैंक के कर्मचारियों की लापरवाही व उनकी गैर जि़म्मेदारी की बदौलत देखा व सुनी गई। गोया रक्तदानी चुस्त रक्त संग्रहण कर्ता सुस्त। आशा की जानी चाहिए कि स्वास्थय सेवाओं से जुड़े ब्लड बैंक कर्मचारी भविष्य में कहीं भी ऐसी गलती नहीं दोहराएंगे। तथा रक्त संग्रह करने में मुस्तैदी दिखाने के साथ-साथ इस प्रकार की मुहिम को बढ़ावा देने में अपनी उर्जा खर्च करेंगे।