‘चाणक्य’ को ‘नंदवंश’ के समूलोच्छेदन के लिए ‘शिखाबंधन’ खोलना ही होगा
नोएडा प्राधिकरण का प्रभावशाली अधिकारी यादव सिंह इस समय चर्चा में है। उसका चर्चा में आने का कारण उसकी कार्यक्षमता नही है, अपितु भ्रष्टाचार की ‘कलाकारी’ है। उसके पास से अब तक करोड़ों के आभूषण और नकदी प्राप्त की जा चुकी है। पर प्रश्न किसी को पकड़ लेना या चोर केे रूप में आरोपित करने का नही है, प्रश्न है कि यहां चोर चोर कैसे बन जाता है? हमारी व्यवस्था में अंतत: ऐसे कौन से छिद्र हैं जिनका लाभ उठाकर एक साधारण व्यक्ति ‘महाघोटाला’ कर जाता है? बात ये भी है कि अब तक जितने ‘यादव सिंह’ पकड़े गये हैं उनमें से कितनों को फांसी दी गयी है? हम ‘यादव सिंह’ पकड़ते हैं और कह देते हैं कि कानून अपना काम करेगा। पर कानून करता क्या है? ये भी सब जानते हैं। कानून और हमारी व्यवस्था जो कुछ भी करते हैं, वो इतना ही है कि एक नया ‘यादव सिंह’ थोड़ी ही देर में पैदा हो जाता है। जनता को केवल माथे पर हाथ मारना पड़ता है, इसलिए वह पहले ‘यादव सिंह’ केे लिए माथा पीटकर जैसे ही रूकती है, उतनी ही देर में अगला ‘यादव सिंह’ आ धमकता है। जनता माथा पीटते-पीटते थक और थक और थम चुकी है। अब यह सीधे व्यवस्था से प्रश्न कर रही है कि ये सब कुछ अंतत: कब तक चलेगा?
देश के सत्ताधीशों की गलत नीतियों के कारण और व्यवस्था का दुरूपयोग करने के कारण देश में ‘यादव सिंह’ जन्म लेते हैं। हर व्यक्ति जानता है कि नोएडा में स्थानांतरण कराने का अर्थ क्या है? यहां की हर सरकारी सीट की लखनऊ में बैठकर बोली लगती है, और बोली के समय ही यह निश्चित हो जाता है किकितनी धनराशि कितने माह में कमाकर ‘साहब’ ‘ऊपर’ भेजेंगे? जैसे ही वह कार्यावधि समाप्त होती है, वैसे ही या तो नये सिरे से ‘नया अनुबंध’ लिखा जाता है और नये अनुबंध में नई शर्तों के साथ या तो सेवा विस्तार किया जाता है या फिर कोई नई जगह ‘कार्य में लापरवाही’ के कारण दिखा दी जाती है। इस प्रकार भ्रष्टाचार फैलता है। जो ईमानदार हैं वे पूरे प्रदेश में कहीं भी जाने को तैयार रहते हैं, इसलिए नोएडा आकर ‘माता के दरबार में नित्य ज्योति जगाने’ और किसी की चरण वंदना की उनकी प्रवृत्ति नहीं होती है, तो उन्हें इधर-उधर भटकना पड़ता है। सारी व्यवस्था ‘जुगाड़’ से चलती है और ‘जुगाड़’ में कुशल लोग कई-कई वर्ष तक नोएडा में मौज करते हैं।
एक ‘यादव सिंह’ पकड़ा गया है, पर अभी यहां ही और भी कई ‘यादव सिंह’ हो सकते हैं, जो चुपचाप ‘प्रापर्टी डीलिंग’ कर रहे हैं और अपने भूमािफया लोगों के माध्यम से जमीनों को हड़पवा रहे हैं। व्यवस्था में भारी छेद हैं और उनमें से मोटी धनराशि ही नही बल्कि पूरा का पूरा आदमी निकल जाता है जो द्वार पर खड़े हैं, वह सोने का नाटक कर रहे हैं और ‘चोर’ उनके सामने से ही निकल रहा है। इसीलिए नोएडा के गांव तिलपता में ए.टी.एम. को उखाड़ लिया जाता है। चोरों को ‘कोतवाल’ ने ही बाहर निकाल दिया और अब ‘चोर कोतवाल को डांट रहा’ है कि मुझे चोर क्यों कहते हो? चोर तो तुम हो, तुमने अपने हिस्से के लिए मुझे ‘मोहरा’ बनाया और मैंने काम कर दिया। चोर कौन हुआ? ‘कोतवाल’ चुप है। इस चुप्पी से पूरी व्यवस्था पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया है।
जनता इस प्रश्न का ही उत्तर चाहती है। ‘मूर्ख बनाओ और मौज उड़ाओ’ की नीति अधिक देर तक नही चला करती। कालचक्र तेजी से घूम रहा है और वह अखिलेश को पीछे जाता देख रहा है, समय आगे बढ़ रहा है और अखिलेश पीछे छूटते जा रहे खम्भा हैं। पर जिस खम्भा पर (भाजपा) लोगों की नजर है वह भी ‘वोटों की राजनीति’ तो कर रही है, पर यह नही बता रही है कि और यादव सिंह जन्म ना लें इस पर उसका चिंतन क्या है? जबकि जनता अब अपने राजनीतिज्ञों से स्पष्ट उत्तर मांग रही है।
व्यवस्था को भ्रष्टाचार की बंधक बनाकर और अधिक देर नही रखा जा सकता। व्यवस्था रूपी ‘चाणक्य’ को भ्रष्टाचार रूपी ‘नंदवंश’ के समूलोच्छेदन के लिए ‘शिखा बंधन’ खोलना ही पड़ेगा।
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।