पानीपत में हुए युद्ध में मराठों की ऐसी उपेक्षा क्यों
राजीव कुमार
मूवी का ट्रेलर रिलीज हो चुका है ,साथ ही #लिबरलगैंग , “अहमद शाह अब्दाली” की शान मे कसीदे पढने की चिर परिचित #गद्दारी वाली हरकतो पर उतर आया है । सदाशिव राव भाऊ का रोल , गोल मटोल बेडौल सा “अर्जुन कपूर ” निभा रहा है , जबकि अब्दाली के रोल मे दमदार और #सशक्त अभिनय के लिए जाना जाने वाले एक्टर संजय दत्त को दिया गया है ।
ट्रेलर देखकर ही पता चल रहा है ,कि मूवी मे अब्दाली तथा अफगानो को बडा #तोपखान , शूरमा ,साबित करने की कोशिश की जायेगी । 1761 मे मराठो की हार का एकमात्र कारण #रसद ना मिल पाने के कारण फैली #भुखमरी थी। बाकी वीरता के मामले मे मराठे , अफगानो के बाप थे।
सभी इतिहासकारो ने 1761 ई. मे मराठो की पराजय पर , विस्तृत #वृत्तांत लिखे हैं । मगर किसी कमजर्फ ने आज तक , पानीपत की लड़ाई से मात्र चार साल पहले , 1757 ई. मे मराठों की भगवा पताका के लाहौर और अटक तक फहराने का जिक्र , मात्र दो #लाईनो तक समेट दिया है । कितने लोगों को मालूम है ,कि 1757 ई. मे पेशवा बाजीराव बल्लाल के छोटे पुत्र #रघुनाथराव ने अहमद शाह अब्दाली को पंजाब से खदेड़ दिया था । मराठो की भगवा पताका लाहौर से आगे सिंन्धु नदी पर गाड़ दी थी , तब #मराठों के घोडे़ सिंधु नदी मे पानी पी रहे थे ।
दूसरी को बाजीराव बल्लाल के छोटे भाई चिमनाजी अप्पा के पुत्र “सदाशिव राव भाऊ” ने दक्षिण भारत मे मराठो की विजय पताका , सूदूर तमिलनाडु के तंजावुर ,तिरूचिरापल्ली और मदुरई तक फहरा दी थी । भाई अपने पिता चिमनाजी अप्पा की तरह , मराठा साम्राज्य के सर्वकालिक #सर्वश्रेष्ठ सेनानायको मे एक था ।
मराठा भारत भूमि की हाहाकारी ताकत के पुलिंदे थे । जिन्होने हर हर महादेव के नारे से , पूरे भारत की रणभूमियो को #गुंजायमान रखा ,और शानदार जीतो से पूरे भारत पर अपनी विजय पताका फहराई । मराठों ने पानीपत जरूर हारा था , मगर टूटे नहीं , थके नहीं , #आत्मविश्वास नही टूटने दिया , पानीपत के हार के बीस सालो के अंदर , एक नई पीढ़ी उठ खडी हुई और मराठा फिर से भारत की सर्वोच्य ताकत बनकर उभरे ।
पानीपत में मराठों की हार नही हुई थी , बल्कि #हिदुत्व हार गया था । जहाँ एक ओर अवध , रूहेलखंड आदि सभी मुस्लिम शासक अब्दाली के खेमे मे उसके #झंडे के नीचे लडने के लिए एकत्र हो गये थे । यहाँ तक कि मराठो के टुकडो पर पलने वाला दिल्ली का नाममात्र का बेशर्म मुगल बादशाह भी अब्दाली के साथ मिल गया था । सिक्ख सरदारो की फौजे भी , मराठो के खिलाफ , #अब्दाली के लिए लड़ रही थी ।
वहीं , जाट राजा सूरजमल , राजपूतो और सिक्खो ने मराठो का साथ नही दिया , रसद नही दी , ना ही किसी प्रकार का सहयोग दिया । पूना से 1800 किमी. दूर मराठे महीनो तक भूखे रहकर भी जिस वीरता , बहादुरी और समर्पण से लडे । वो हारकर भी जीत गये । दोपहर बाद , एक भूगौलिक परिस्थिति यानि सूर्य की #दक्षिणायन स्थिति ने जीत की बाजी को अब्दाली के पक्ष मे पलट दिया । अन्यथा भाऊ की जीत सुनिश्चित थी । जाटों , राजपूतो ,और सिक्खों को आज , अपने पूर्वजो की गलती पर शर्मिन्दा होना भी चाहिये । पानीपत मे मराठो की हार के बाद ,अब्दाली ने रूहेले नजीबुद्दौला को अपना #प्रतिनिधि नियुक्त किया था । मात्र दो साल बाद ही , जब महाराजा सूरजमल अकेले दम पर नजीबुद्दौला का खात्मा करने निकले , तो इसी नजीब के बेटे #जाबिता_खान ने शाहदरा दिल्ली मे धोखे से महाराजा सूरजमल का सिर काट लिया था । वो बात अलग है कि बाद मे जाटो ने रूहेलो को उनकी औकात जरूर बताई । और #नजीबाबाद ,से रामपुर तक उन्हे रगडा ।
आज सोचता हूँ , कि जिस प्रकार , भारत के सभी मुस्लिम शासक ,अब्दाली से जाकर मिल गये थे ,अगर जाट , राजपूत और सिक्ख मराठा झंडे ने नीचे आये होते , तो भारत भूमि का #नक्शा बहुत पहले ही बदल जाता । सदाशिवराव राव भाऊ से नाराजगी के चलते महाराजा सूरजमल ने मदद नही की , और कमाल देखिये ,कि मात्र दो ही साल बाद उन्ही रूहेलो के खिलाफ #अभियान मे अपनी जान गवाँ दी । काश वो दो साल पहले ही , मराठो के साथ मिलकर पानीपत लड़े होते । मल्हार राव होल्कर जैसा बेहद तेज तर्रार और जंगो मे तपा हुआ , जिसने अपने जीवन का पूरा समय जंग के मैदान मे ही बिताया , बूढा ,लाचार, मगर महान सेनानायक , स्थानीय राजाओ के झगडो मे पडकर , सबसे रंगदारी वसूलने वाला क्षत्रप बनकर रह गया ।
भारत का इतिहास , आपसी फूट , षड़यंत्रो , आपसी सर फुटौवल की कहानियों से भरा पड़ा है।
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