मुगलों के अत्याचार का शिकार एक विस्मृत लोकनायक दुल्ला भट्टी
सन्दल बार के इलाके (अब पाकिस्तान) में मुगल बादशाह अकबर के दौर में एक मुसलमान राजपूत बागी हुआ था, जिसका नाम था ‘दुल्ला भट्टी‘ (राय अब्दुल्ला भट्टी)। भट्टी कबीला राजपूतों की एक प्रसिद्ध शाखा है।
भारत-पाकिस्तान सरहद से लगभग 200 किलोमीटर दूर पाकिस्तान के पंजाब में ‘पिंडी भट्टियां’ गांव है। पंजाब की लोक-कथाओं का यह नायक ‘दुल्ला भट्टी‘ इसी गाँव में पैदा हुआ था। दुल्ले के पिता और दादा भी मुगलों के बागी रहे थे। मुगल बादशाह हुमायूँ के वक्त उनको मार कर उनकी खाल में भूसा भरवा के गांव के बाहर लटकवा दिया गया था, क्योंकि उन्होंने मुगल सरकार को लगान देने से मना कर दिया था। बाप और दादा की मौत के 4 महीने बाद सन 1547 में दुल्ला भट्टी का जन्म हुआ था।
जमींदारों और अमीरों को लूट कर गरीबों में बांट देने की दुल्ले की नीति की वजह से लोग अक्सर उसे पंजाब का राबिन हुड भी कह देते हैं। लड़कियों के अपहरणों को रोकने और इज्जत से उनकी शादियां एक पिता की तरह कराने की वजह से वह एक लोक-नायक बनकर उभरा।
दुल्ले से जुड़ी गाथाओं में सब से प्रसिद्ध कथा दो बहनों, सुन्दरी और मुंदरी की है। वे एक किसान की बेटियां थीं। गांव का नंबरदार उन लड़कियों से जबरन शादी करना चाहता था। लड़कियों के पिता ने दुल्ले से इस की शिकायत की। दुल्ले ने उस नम्बरदार पर हमला कर के उस के खेत जला दिये। दुल्ले ने खुद उन लड़कियों की शादी उनकी पसंद के लड़कों से करवाई और शादी में शगुन के तौर पर शक्कर दी, जैसा कि उन दिनों रिवाज था। पंजाब में मनाये जाते त्यौहार ‘लोहड़ी‘ का सम्बंध दुल्ले द्वारा सुंदरी और मुंदरी की शादी कराने की घटना से ही जुड़ा हुआ है।
सुन्दर मुंदरिए! – हो। तेरा कौण विचारा? – हो।
दुल्ला भट्टीवाला – हो। दुल्ले दी धी विआही। -हो।
सेर शक्कर पायी। – हो। (धी=बेटी)
दुल्ला भट्टी को सन 1599 में गिरफ्तार कर लिया गया। जल्दबाजी में ही उसे लोगों की एक भीड़ के सामने लाहौर शहर में फांसी पर लटका दिया गया। पंजाब की लोककथाओं के इस नायक दुल्ला भट्टी शहीद का मृतकशरीर लाहौर के मियानी साहिब कब्रिस्तान में दफन है।
साभार: स्वामी अमृतपाल सिंह (शांतिधर्मी में प्रकाशित)