अंगकोर मंदिर का रास्ता मोरेह से होकर जाता है
डा0 कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
कुछ दिन पहले मैं मणिपुर गया था। शहीद मधुमंगल शर्मा फ़ाऊंडेशन की पाँचवी व्याख्यानमाला का भाषण देने के लिये मुझे निमंत्रित किया गया था। मधुमंगल शर्मा मणिपुर भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष थे और पूर्वोत्तर भारत के बड़े नेताओं में से थे। मणिपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्य विस्तार में उनकी भी भूमिका थी। बीस साल पहले आतंकवादियों ने उनकी गोली मार कर हत्या कर दी थी। मधुमंगल, पूर्वोत्तर भारत में विदेशी पैसे के बल पर ईसाई मिशनरियों द्वारा किये जा रहे मतान्तरण से चिन्तित थे और उसका विरोध करते थे। कहा जाता है कि इन्हीं कारणों से उनकी हत्या कर दी गई और सरकारी रिकार्ड में अभी भी वे हत्या तरने वाले अज्ञात हत्यारे के नाम से ही दर्ज हैं।
मणिपुर की सीमा म्यांमार से लगती है। चन्देल जि़ले का मोरेह नगर भारत-म्यांमार सीमा पर स्थित है और दोनों देशों के बीच होने वाले क़ानूनी-ग़ैर क़ानूनी व्यापार का बहुत बड़ा केन्द्र भी। इस नगर को लघु भारत भी कहा जा सकता है । नगर में गुरुद्वारा भी है और दक्षिण भारतीय शैली का एक विशाल मंदिर भी । बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग भी है और पूरे भारत की तरह ही अवैध बंगलादेशी भी अब बड़ी संख्या में आ पहुँचे हैं। मोरेह मुख्य तौर पर कुकी जनजाति के लोगों का इलाक़ा है। सीमा पार भी कुकी जनजाति के लोग हैं। लेकिन दोनों ओर के कुकी बहुत बड़ी संख्या में ईसाई मज़हब में मतान्तरित हो चुके हैं। इसलिये मोरेह में मिशनरियों ने उनको आकर्षित करने के लिये कुछ चर्च भी बना रखे हैं। लेकिन जो कुकी अभी भी अपनी सनातन परम्पराओं से जुड़े हुये हैं उनमें और मतान्तरित हो चुके कुकियों में थोड़ा तनाव भी चलता रहता है।
मोरेह से लेकर म्यांमार के कालेमऊ तक सडक़ का निर्माण भारत सरकार ने किया है। एक सौ साठ किलोमीटर लम्बी यह सडक़ भारत और म्यांमार को जोडऩे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। दोनों देशों के निवासी परमिट लेकर एक-दूसरी ओर कुछ दूर तक आ जा सकते हैं । मेरे साथ मणिपुर भारतीय जनता पार्टी के प्रादेशिक संगठन मंत्री प्रेमानन्द शर्मा थे। मोरेह और उससे आगे म्यांमार तक जाने की सारी व्यवस्था उन्होंने ही की थी । मोरेह से लगभग चार पाँच किलोमीटर दूर म्यांमार का तामु नाम का शहर है । यह इसी नाम के ज़िला का हैडक्वार्टर है । तामु में एक विशाल बौद्ध मठ है जिसमें गुरुकुल परम्परा का एक विद्यालय भी है । लेकिन तामु में सभी कुछ म्यांमारी भाषा में ही लिखा हुआ था , जबकि इसके विपरीत मोरेह में सब कुछ अंग्रेज़ी में था । तामु में कुकी बड़ी संख्या में है। लेकिन ईसाई मिशनरियों ने उन्हें भी बड़ी संख्या में मतान्तरित कर दिया है। उनके लिये मिशनरियों ने मोरेह की तर्ज़ पर कुछ चर्च भी बना रखे हैं । म्यांमार सरकार छल कपट से किये जा रहे इस मतान्तरण को रोकने की कोशिश करती है तो दुनिया भर में फैला हुआ मिशनरियों का नेटवर्क उसका विरोध करता है । यूरोप और अमेरिका में ईसाई मिशनरियों और वहाँ की सरकारों के बीच ज़बरदस्त तालमेल बना रहता है। म्यांमार की सैनिक सरकार और यूरोप के कुछ देशों की सरकारों के बीच तनाव का यह भी एक मुख्य कारण है। वैसे तो अमेरिका के राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा भी दिल्ली से जाते जाते भारत को मज़हबी सहिष्णुता का उपदेश देने लगे थे। कहा जाता है कि उसके पीछे भी ईसाई मिशनरियों के नेटवर्क का ही दबाव था। सैकड़ों साल पहले इसी मार्ग से होकर भारत के तीर्थ यात्री कम्बोडिया में स्थित विष्णु के ऐतिहासिक अंगकोर मंदिर की तीर्थयात्रा के लिये जाते थे। अंगकोर मंदिर दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर है । लेकिन कई सौ साल पहले हालात बदल जाने के कारण अंगकोर मंदिर की यह तीर्थयात्रा बंद हो गयी। जो भारतीय कभी दुनिया के हर देश में गये थे , इस्लामी आक्रमणों से उत्पन्न हुई स्थिति के कारण , उन्होंने सागर पार का ही निषेध कर दिया। ऐसे वातावरण में भला अंगकोर मंदिर की तीर्थ यात्रा कैसे बच पाती। यात्रा इतिहास के पन्नों में खो गई और मंदिर घने जंगलों में गुम हो गया।
अब उसी तीर्थ यात्रा को पुन: शुरु करने के प्रयत्न हो रहे हैं । दरअसल मैं स्वयं भी इन संभावित प्रयत्नों को देखने जाँचने के लिये ही म्यांमार के तामु में आया था । प्रेमानन्द बता रहे थे , यदि यह यात्रा शुरु होती है तो मणिपुर की अर्थ व्यवस्था में बहुत लाभ हो सकता है । मणिपुर का मैतयी समाज तो वैष्णव मताबलम्बी ही है । इसलिये इस तीर्थ यात्रा को लेकर सबसे ज़्यादा उत्साह तो उसी में है ।
मोरेह से कालेमऊ तक की यह सडक़ स्थलमार्ग से थाईलैंड से जुड़ी हुई है और वहाँ से कम्बोडिया के अंगकोर मंदिर तक सडक़ जाती है । भारत-थाईलैंड-कम्बोडिया में अंगकोर मंदिर की इस यात्रा को लेकर यदि कोई व्यवस्था बन जाती है तो इन तीनों देशों में पर्यटन को भी बढ़ावा मिल सकता है । प्रेमानन्द का कहना है कि इसके लिये इन्द्रेश कुमार से बात करनी चाहिये । इन्द्रेश कुमार सिन्धु दर्शन यात्रा को सफलता पूर्वक पुनस्र्थापित कर चुके हैं । वैसे मणिपुर की राजधानी इम्फ़ाल को असम से रेलमार्ग से जोडऩे के प्रकल्प पर भी कार्य चल रहा है और इम्फ़ाल से आगे रेल की पटडी को मोरेह तक लाने की भी योजना है। इस प्रकल्प के पूरा हो जाने से भारत म्यांमार रेल मार्ग से भी जुड़ जायेगा। तामु से वापिस भागने की जल्दी है। पाँच बजे के बाद मणिपुर के चन्देल जिला की सीमा से बाहर जाना कठिन हो जाता है। अर्ध सैनिक बल इसकी अनुमति नहीं देते । दरअसल इसी मार्ग से होकर अवैध नीले पदार्थों का व्यापार होता है। यह नशा तस्करी का अन्तर्राष्ट्रीय मार्ग है। पुलिस पकडऩे की कोशिश करती रहती है। लेकिन यहाँ आम धारणा यह भी है पुलिस पकडऩे की कोशिश भी करती है और नशा तस्करों को सुरक्षित रास्ता मुहैया करवाने की कोशिश भी करती है। सवाल केवल इतना ही है कि आपसी तालमेल की ‘डील’ सफलता से हो गई है या नहीं ? लेकिन यह कहानी शायद देश की सभी सीमाओं पर है । पंजाब में भारत की पाकिस्तान से लगती सीमा पर भी यही कहानी खेली जाती है और इधर मणिपुर में भारत म्यांमार सीमा पर भी यही खेल चल रहा है । मणिपुर भी बुरी तरह नशों की चपेट में आ चुका है । इस मामले में मुझे मणिपुर और पंजाब में समानता दिखाई देती है । मणिपुर सरकार के कुछ मंत्रियों पर आरोप लगते रहते हैं कि वे नशा तस्करों को या तो संरक्षण प्रदान करते हैं या फिर उन के साथ आर्थिक हिस्सेदारी निभा रहे हैं ।
लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि यदि मोरेह में भारत म्यांमार सीमा पर अतिरिक्त ईमानदार चौकसी बढ़ाई जाये तो नशा तस्करी को रोका जा सकता है ।